शनिवार, 1 दिसंबर 2012

जोरु का गुलाम

                                  बचपन में ही सिखा दिया 

 

फोटू देखा ?

कुछ स्मरण आया ।

ये हम सबके बचपन की प्रिय कहानी है मित्रों  "बंदर और मगरमच्छ"  की । अगर आपको स्मरण हो तो ये कहानी कुछ ऐसी थी कि मगरमच्छ घूमने का आदि था । सो एक दिन घूमते-घूमते वो पहुँच गया नदी के किनारे वहाँ उसकी मित्रता हो गयी एक बंदर से । जब मगरमच्छ ने बंदर से ले जाकर मीठे बेर अपनी पत्नी को खिलाये तो उसने कहा कि उसे अब बंदर का मीठा कलेजा खाना है । पहले तो मगरमच्छ  ने अपने आदर्शों का हवाला देकर कहा कि मैं ऐसा नहीं करूँगा।  पर बाद में मगरमच्छ की पत्नी ने हड़काया तो वो एक अच्छा ज़ोरु का गुलाम बनकर बंदर का कलेजा लेने निकल पड़ा ।

इस कहानी से क्या शिक्षा मिलती है - यही ना कि मगरमच्छ ज़ोरु का इतना बड़ा गुलाम था कि अपने मित्र की ही जान का दुश्मन बन गया ।  अब बच्चों को जब बचपन में ही ऐसी कहानी पढ़ा दी जायेगी तो बच्चे आगे चलकर क्या बनेंगे जी.......................................................................................................................................................................................
 सब के सब जोरु के गुलाम ना बन जायेंगे ? हाय रे ! बेचारे बच्चे ।

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