सोमवार, 9 नवंबर 2015

आओ चलो मनतेरस मनाएँ



आओ चलो मनतेरस मनाएँ ,
आओ चलो मनतेरस मनाएँ ।

हर वर्ष यूँ ही तो करते हैं ,
कि परम्पराओं पर ही चलते हैं ।
लाते हैं आभूषण या बर्तन ,
सांयकाल में पूजन वन्दन ।
चलो अबकि कुछ करें नया ,
हृदय में भरें स्नेह और दया ।

अबकि कुछ अलग कर जाएँ ,
आओ चलो मनतेरस मनाएँ ।

बर्तन चमचम और मन कलुषित ,
स्वच्छ पूजाघर , भावनाएँ प्रदूषित ।
तो कैसे तेरस पर बरसेगा धन ,
जब मैल से ही भरा होगा मन ।
देखो त्यौहार की घड़ी है आई ,
मन को भी स्वच्छ कर लो भाई ।

भरो मन में पवित्र भावनाएँ ,
आओ चलो मनतेरस मनाएँ ।

घर में कितनी साफ़-सफाई ,
अभी-अभी तो हुई है पुताई ।
पर यदि मन में हो कूड़ा-करकट ,
बातों में गर हो झूठ और कपट ।
तब कैसे पूरा होगा त्यौहार ,
जब मन में न हों शुद्ध विचार ।

चलो मन को शुद्ध बनाएँ ,
आओ चलो मनतेरस मनाएँ ।

धनतेरस की हो चुकी तैयारी है ,
पर अब मनतेरस की बारी है ।
पहले तो मन की करें सफाई ,
जिसमें ईर्ष्या की पौध है जम आई ।
फिर द्वेष , घमण्ड को मन से निकालें ,
प्रेम के रंग से मन को रंग डालें ।

स्वयं में कुछ परिवर्तन लाएँ ,
आओ चलो मनतेरस मनाएँ ।

हर धनतेरस कुछ न कुछ लाते हैं ,
अबकि बिन खर्च घर सजाते हैं ।
मन में एक नया सुविचार लाएँ ,
जो सबको हर्षित कर जाए ।
जिसमें निहित हो सबका अच्छा ,
जो हो गंगाजल से भी सच्चा ।

आज मन को निर्मल बनाएँ ,
आओ चलो मनतेरस मनाएँ ,
आओ चलो मनतेरस मनाएँ ।


रचनाकार
प्रांजल सक्सेना 
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शुक्रवार, 30 अक्तूबर 2015

मैं कैसे करवा चौथ मनाऊँ

मेरा पति तो ग्रुप एडमिन है,

व्हाट्सएप्प पर रात दिन है।
फेसबुक पर भी ऊँगली चलावै,
भले ही घर में राशन न लावै।
उसने मेरी कर दी है दुर्गत,
बात करने की न है फुर्सत 

कैसे इन्हें जिम्मेदार बनाऊँ,
मैं कैसे करवा चौथ मनाऊँ।

सुबह उठते ही पकड़ें फोन,
पढ़ें मैसेज रहकर मौन।
फटाफट-फटाफट करते टाइप,
फेसबुक, लाइन या हो स्काइप।
बिना कुल्ला और बिना मंजन,
दो घण्टे करते मोबाईल वन्दन।

कैसे इनकी ये आदत छुड़ाऊँ,
मैं कैसे करवा चौथ मनाऊँ।

इन्हें आदमी कहूँ या कहूँ पायजामा,
दिन भर व्हाट्सएप्प पर कारनामा।
न खाने की चिंता न बीवी की फ़िक्र,
सुबह शाम बस ग्रुपबाजी का जिक्र।
इससे अच्छा तो मिलता दारूबाज,
पल्ले पड़ा हे नेट का कलाबाज।

किस दीवार में सिर फोड़ आऊँ,
मैं कैसे करवा चौथ मनाऊँ।

जिस दिन से हुई है मेरी शादी,
झेल रही हूँ ये नेट का आदी।
रोज आती हूँ सामने श्रृंगार करके,
पर एक बार भी न देखे नजर भरके।
देखेगा तब जब छोड़ेगा मोबाइल,
किसे दिखाऊँ ये नखरे ये स्माइल।

हे प्रभु क्या करूँ मैं कहाँ जाऊँ,
मैं कैसे करवा चौथ मनाऊँ।

सुबह से सोफ़ा तोड़ रहे हैं सड़ियल,
दो हफ्ते से बने फिर रहे हैं दढ़ियल।
सूरज देखो सर पर चढ़ आया है,
पर न ये धोया न ही नहाया है।
अरे पतिदेव बाद में चला लेना नेट,
धो लो मुँह साफ़ कर लो पेट।

इस नेटकीट को कैसे समझाऊँ,
मैं कैसे करवा चौथ मनाऊँ।

कल करवा चौथ के बारे में बताया,
बाजार से कुछ सामान मँगवाया।
न ये चूड़ी लाया न बिन्दी लाया,
3
जीबी का रिचार्ज करा आया।
एडमिन से तो बियाह करे वोए,
स्वयं भी जो एडमिन ही होए।

क्या मैं भी एडमिन बन जाऊँ,
मैं कैसे करवा चौथ मनाऊँ।

करवा चौथ पति की आयु बढ़ाए,
पर कौन-सा व्रत मोबाइल छुड़वाए।
उठो पतिदेव चाँद निकल आया,
व्रत तोड़ने का समय है आया।
दो मिनट का समय दे दो दान,
पेट में चूहे मचा रहे घमासान।

मैं कैसे इन्हें छत पर ले जाऊँ,
मैं कैसे करवा चौथ मनाऊँ,
मैं कैसे करवा चौथ मनाऊँ।

 


रचनाकार
प्रांजल सक्सेना 
 
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शनिवार, 3 अक्तूबर 2015

पहली बार बने पीठासीन



पहली बार बने पीठासीन ,
पहली बार बने पीठासीन ।

क्या हुआ ये कैसे हुआ ,
इसे दुआ मानूँ या बद्दुआ ।
बना दयो पीठासीन अधिकारी ,
पीठ पर बिठाए तीन कर्मचारी ।
ढेर सारी लाद दी जिम्मेदारी ,
उस पर लिफ़ाफ़े भारी - भारी ।

हालत हो गई कतई दीन ,
पहली बार बने पीठासीन ।

ये डायरी मिली है कि डायरिया ,
मानो अंग्रेजी की हैं शायरियाँ ।
हम काम करते - करते डरें ,
या फिर डर से काम करें ।
लिफ़ाफ़े गिनें कि लाख लगाएँ ,
या पुरुष स्त्री के आँकड़ें भिड़ाएँ ।

ड्यूटी की बातें बड़ीं महीन ,
पहली बार बने पीठासीन ।

बात ससुरी समझ न आवे ,
थर-थर-थर बदनवा काँपे ।
बज गई मेरे फोन की घण्टी ,
ध्यान रखना मुन्नी और बंटी ।
पापा आएँगे दो दिन बाद ,
चुनाव का हुआ है शंखनाद ।

दो दिन धूनी जमेगी पराई जमीन ,
पहली बार बने पीठासीन ।

क्या खाऊँ कौन सी पियूँ घुट्टी ,
कि बढ़िया हो पीठासीन की ड्यूटी ।
सोच - सोच मेरा दिल घबड़ा रहा ,
घबराहट में पेट भी गड़बड़ा रहा ।
क्या होगा कैसे कराऊँगा चुनाव ,
होगी अधिकारियों की काँव - काँव ।

दो दिन जिंदगी बनी कमीन ,
पहली बार बने पीठासीन ।

मास्टर ट्रेनर झाड़ पर चढाएँ ,
सेक्टर मजिस्ट्रेट डाँट पिलाएँ ।
एक मुस्काए एक आँखें दिखाए ,
कुल मिलाकर दोनों बड़ा डराएँ ।
ढेर नियम ढेर सारी धाराएँ ,
कैसे सबको दिमाग में घुसाएँ ।

करूँ नागिन डांस बिन बाजे बीन ,
पहली बारे बने पीठासीन ।

अभी - अभी तो ग्रेड था बदला ,
नए ग्रेड से एक ही वेतन निकला ।
इत्ती जल्दी पीठासीन बनाया ,
दिमाग को दही में मिलाया ।
कौन सी गलती कब के गुनाह ,
किसी न पूछी अंतिम चाह ।

ड्यूटी ससुरी बड़ी जहीन ,
पहली बार बने पीठासीन ।

भुने चने लूँ या बिस्कुट ले जाऊँ ,
मोमबत्ती बन्द कर कछुआ जलाऊँ ।
घर से दो - दो चद्दर ले जाऊँ ,
एक ओढूँ और एक बिछाऊँ ।
छोटे से बैग में क्या - क्या ठुसाऊँ ,
मानो एक दिन को गृहस्थी बसाऊँ ।

ये रात गुजरेगी संगीन ,
पहली बार बने पीठासीन ।

प्रथम वाला काम न जाने ,
वोटर को सही से न पहचाने ।
टेंडर वोट धड़ाधड़ पड़वावे ,
हमरी कुछ समझ न आवे ।
दूजा स्याही धीमे - धीमे लगावे ,
तीजा मतदान पेटी न उठावे ।

हो गई हालत अत्यंत दीन ,
पहली बार बने पीठासीन ।

चूर हो गया मैं तो थकके ,
अब खाने हैं बस के धक्के ।
पहुँचना है पेटी जमा करने ,
कई सारे प्रपत्र हैं भरने ।
जाकर केंद्र पर बिस्तर है बिछाना ,
वहीं बैठकर हिसाब है लगाना ।

चुस गया मेरा सारा प्रोटीन ,
पहली बार बने पीठासीन ।
पहली बार बने पीठासीन ।


रचनाकार
प्रांजल सक्सेना 
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