शनिवार, 18 अप्रैल 2015

मैंने देखा, मैंने मनन किया, मैंने सीखा


प्रणाम मित्रों ,


मित्रों जब विज्ञान वर्ग से स्नातक और तदुपरान्त बीएड करने के पश्चात प्राथमिक पाठशाला की सेवा में आया तब कई लोग कहते थे । अब तुम्हारा सारा ज्ञान बेकार हो जाएगा । केवल छोटा अ , बड़ा आ और 1,2,3,4 ही याद रह जाएँगे । अब आगे कुछ नहीं कर पाओगे ।


पर जैसी कि मेरी चिर – परिचित अभिवृत्ति है कि निराशा में भी आशा है । उसी के अनुसार मैंने इन अक्षरों और गिनतियों से ही मित्रता करने का प्रयास किया और विश्वास करिए इन अक्षरों और गिनतियों की मित्रता ने मुझे बहुत कुछ सिखाया । यूँ कहिए कि जीवन का पूरा दर्शन मैंने इन्हीं में देखा । बहुत कुछ सीखा इनसे और सीखने का क्रम लगातार जारी है ।


तो आइए देखिए इस औघड़ दार्शनिक ने अक्षरों और गिनतियों से क्या सीखा –


प्राय: कहा जाता है कि हर सुख के बाद दुख आता है और हर दुख के बाद सुख भी आता है । जानते हैं गणित में सम और विषम संख्याएँ भी यही तो सिखाती हैं । देखिए

2 , 3 , 4 , 5 , 6 , 7 , 8 हर सम संख्या के बाद एक विषम और हर विषम संख्या के बाद एक सम संख्या आ रही है ।

सुख ===> दुख ===>सुख.................................


बीएड में पढ़ते समय मैंने जाना था कि हर शिक्षक पहले एक विद्यार्थी है फिर एक शिक्षक । जिस दिन शिक्षक ने स्वयं को एक विद्यार्थी मानना छोड़ा उसी दिन से वह अच्छा शिक्षक नहीं रहेगा । यह भी जाना कि एक सच्चा शिक्षक , आजीवन विद्यार्थी ही रहता है । मेरे लिए इस बात को मानना सरल था पर समझना मुश्किल । पर जब मैंने Alphabets को ध्यान से देखा तो समझ आया कि कितने सरल तरीके से इसे समझाया जा सकता है । आइए देखिए जब आप Alphabets को देखेंगे तो पाएँगे कि S , T से पहले आता है । S से होता है Student और T से Teacher . S और T साथ हैं बिल्कुल वैसे ही जैसे कि Student और Teacher साथ रहते हैं । साथ ही ये भी अद्भुत है कि Alphabets ही सिखा रहे हैं कि पहले आप एक Student हैं और बाद में एक Teacher .


ये तो बात हुई आंग्ल भाषा की । परंतु यदि आप हिंदी की वर्णमाला देखेंगे तो पाएँगे कि उसमें भी बिल्कुल ऐसा ही है । वर्णमाला में पहले आता है व और उसके पश्चात श । व से होता है विद्यार्थी और श से शिक्षक । यानि कि पुन: वही संयोग कि विद्यार्थी और शिक्षक साथ – साथ और पहले आप विद्यार्थी हैं फिर शिक्षक ।


ऐसा अद्भुत संयोग दोनों भाषाओं में बिल्कुल एक जैसा होना निसंदेह इस बात का प्रतीक है कि वर्णमाला में अक्षरों का क्रम ऐंवे ही नहीं है । बल्कि बहुत सोच समझकर रखा गया है ।

आइए आंग्ल भाषा के एक और शब्द पर विचार करते हैं – Elephant


हम सब जानते हैं कि धरती पर सबसे बड़ा थलचर हाथी ही है और ये भी जानते हैं कि एक छोटी सी चींटी ही हाथी का अंत करने के लिए पर्याप्त होती है । Elephant की स्पेलिंग ही इस बारे में बहुत कुछ कह जाती है । Elephant के अंत के तीन अक्षर हैं ant जिसका अर्थ होता है चींटी । अब यदि उपरोक्त प्रकरण को एक ही वाक्य में बोलें तो वो ऐसा होगा कि Elephant जैसे बड़े पशु का अंत एक छोटी सी ant कर सकती है , सम्भवतया इसीलिए Elephant के अंत में ant आता है ।


प्राथमिक स्तर पर हम ‘ बारहखड़ी ‘ भी पढ़ाते हैं । जो और किसी स्तर पर नहीं पढ़ाई जाती । जब बार – बार ये आँखों से गुजरी तो मैंने पाया कि ये वास्तव में एक अद्भुत जीवन दर्शन प्रस्तुत करती हैं । देखिए कैसे –


इसे समझने के लिए कोई एक अक्षर ले लीजिए मानिए मेरे ही नाम का प्रथम अक्षर ‘ प ‘ ,


प ===> इस दुनिया में हम अकेले आते हैं ।


पे ===> जब दुनिया से हमारा सामना होता है तो हमें पता चलता है कि कोई न कोई सदैव हमसे ऊपर रहता है ।


पै ===> पर हमसे ऊपर रहने वाला भी जान ले कि उसके ऊपर भी कोई न कोई अवश्य रहता है ।


पु ===> कुछ लोग ऐसे भी होते हैं जो सदैव हमारे नीचे रहते हैं ।


पू ===> वो चाहें कितने भी बड़े हो जाएँ पर फिर भी हमसे नीचे ही रहते हैं ।


पा ===> ये हमारा सौभाग्य ही है कि हमारे जीवन में कुछ मित्र भी होते हैं । जो न हमसे बड़े होते हैं न ही हमसे छोटे । चाहें कैसी भी परिस्थिति हो वो हमारे साथ कंधे से कंधा मिलाए खड़े रहते हैं ।


पि ===> हमारे जीवन में कुछ नारियाँ भी होती हैं जिनका हाथ हमारी पीठ पर सदा रहता है और वो हमें आगे बढ़ने को प्रेरित करती हैं ।


पी ===> कुछ ऐसी भी नारियाँ होतीं हैं हमारे जीवन में जो हमारा संरक्षण करती हैं और किसी समस्या के आने पर हमारे आगे आकर खड़ी हो जाती हैं उस समस्या से टकराने को ।


पो ===> हमारे कुछ गुरू भी होते हैं जिनका यदि आदर किया जाए तो वे सदैव हम पर आशीष बनाए रखते हैं ।


पौ ===> सबसे अधिक भाग्यशाली हम तब होते हैं जब हमें अपने गुरू के गुरू का भी आशीष प्राप्त होता है ।


तो देखा आपने कि क्या कुछ नहीं है अपनी हिंदी की बारहखड़ी में ।


हिंदी में हर अक्षर के ऊपर एक लाइन का होना दो बातें सिखाता है पहली तो ये कि हम चाहें कुछ भी बन जाएँ पर हमें फिर भी अपनी सीमा में रहना चाहिए । दूसरी ये कि सब कुछ पा लेने के बाद भी हम तब तक अधूरे हैं जब तक हमारे ऊपर बड़ों का आशीर्वाद नहीं है ।


हिंदी वर्णमाला में प्रथम अक्षर होता है – अ और अंतिम अक्षर होता है ज्ञ । जब हम इस दुनिया में आते हैं तो ऐसे ही चिल्लाते हुए आते हैं --- अअअअ............... और जीवन भर जाने अनजाने अनेकानेक स्त्रोतों से ज्ञान प्राप्त करते ही रहते हैं । अ की चिल्लाहट से आरम्भ हुई यात्रा ज्ञ से ज्ञान की यात्रा पर समाप्त होती है । ज्ञान के ज्ञ का सबसे अंत में होना यह भी संकेत करता है कि मनुष्य का सारा जीवन ज्ञान प्राप्त करने के लिए ही है और एक बार ज्ञान प्राप्त करने के बाद फिर कुछ भी शेष नहीं रह जाता है ।


हिंदी ही नहीं किसी भी भाषा की वर्णमाला में उपस्थित विभिन्न अक्षर हमें यही सिखाते हैं कि जीवन में कुछ कर दिखाने के लिए किसी और जैसा होना आवश्यक नहीं । अपनी विशेषता को पहचानिए और समाज में अपना स्थान बनाइए । सबके पास कोई न कोई विशिष्ट प्रतिभा अवश्य होती है । सवेरा शब्द क से नहीं लिखा जा सकता और कलम शब्द स से नहीं लिखा जा सकता । यानि सबका स्थान अलग है और विशिष्ट है , साथ ही मूल्यवान भी है ।

आइए अब तनिक इन तीन अक्षरों को ध्यान से देखिए -






इन तीन अक्षरों से कोई शब्द आरम्भ नहीं होता पर हाँ ये कई शब्दों के मध्य व अंत में अवश्य आते हैं । जो इस बात को सिखाता है कि यदि आपमें नेतृत्व का गुण नहीं है तो भी कोई बात नहीं , आप एक अच्छे सहायक तो बन ही सकते हैं ।


( यहाँ यह स्पष्ट कर दूँ कि ण से कुछ बहुत ही दुर्लभ शब्द आरम्भ होते हैं ; जैसे - णमोकार । हो सकता है कि ड़ और ढ़ से भी कुछ दुर्लभ शब्द हों । परन्तु सामन्य बोलचाल की भाषा में इनसे आरम्भ होने वाले शब्द चलन में नहीं हैं । )


आइए अब कुछ शब्द देखते हैं –

न्यौता

व्यक्ति

उपरोक्त शब्दों में कुछ अर्द्ध अक्षर हैं । यद्यपि ये अपने में पूर्ण नहीं हैं तथापि इनके बिना कई शब्द भी अपूर्ण हैं । जो हमें सिखाते हैं कि यदि कोई विकलांग है तो भी वह मूल्यवान है ।


इसी सम्बंध में एक और शब्द लिखता हूँ –

लड्डू

इसमें ड् का अभिप्राय आधे ड से है । जो शिक्षा देता है कि आपके व्यक्तित्व में अगर कोई अवगुण अधिक है तो वह भी आपका महत्त्व घटा सकता है ।


यदि । को पैर की संज्ञा दें तो हम पाएँगे कि अधिकतर अर्द्ध अक्षर तब बनते हैं जब उनका एक पैर नहीं होता , जैसे – म , न , त............................। केवल क और फ ऐसे अक्षर हैं जिनका पैर हटाने के बजाय एक हाथ हटाकर उन्हें आधा बनाया जाता है । वहीं ड् जैसे आधे अक्षर दर्शाते हैं कि अधिकता भी विकलांगता ला सकती है । पौराणिक कथाओं में शकुनि के अलावा किसी विकलांग के विषय में मेरी जानकारी नहीं है और वर्णमाला तो शकुनि के जन्म से भी सहस्त्रों वर्ष पूर्व बनी होगी । सम्भवतया उस समय के लोगों को भविष्य में विकलांग लोगों का अनुमान होगा । इसीलिए अर्द्ध अक्षरों का निर्माण भी किया गया होगा ताकि लोग विकलांगों का भी महत्त्व समझ सकें ।


देखा आप लोगों ने हिंदी कितनी बड़ी दार्शनिक भाषा है , क्या है आंग्ल भाषा इतनी समृद्ध ?


मित्रों मैंने उपरोक्त जो भी लिखा है हो सकता है आप उन सभी बातों से सहमत हों , हो सकता है कि कुछ बातों से सहमत हों या फिर किसी बात से भी सहमत न हों । यह भी सम्भव है कि ये बातें मैंने जिस दृष्टिकोण से कही हों उस संदर्भ में आपका दृष्टिकोण बिल्कुल अलग या विपरीत ही हो । यदि ऐसा कुछ भी है तो यह आपके और मेरे दर्शन में अंतर या समानता के कारण हो सकता है । पर हाँ इन अक्षरों को एक दार्शनिक की दृष्टि से देखना निसंदेह आवश्यक है ।


एक बात तो निश्चित है कि जीवन का हर पल सिखाने के लिए ही होता है । यदि मैं प्राइमरी की सेवा में न आता तो उपरोक्त जो कुछ भी सीखा है उसके अंश मात्र को भी सीखना असम्भव सा ही था । इसलिए इस सेवा में आना इतना बुरा भी न रहा ।


अंत में यही कहूँगा कि मैंने अब तक जो भी खोजा है वो बहुत ही थोड़ा सा है , अभी बहुत कुछ खोजना और समझना बाकि है । मैं लगातार प्रयासरत हूँ , आप भी सहायता करिएगा ।


धन्यवाद ।
 
लेखक
प्रांजल सक्सेना 
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