बुधवार, 11 मई 2016

कश्ती

“ बस यही घुमाने की हैसियत है हमारी । ”

“ जन्नत की सैर कराने वाले अपनी हैसियत को नहीं कोसा करते । ”

लटकाए हुए मुँह के साथ नदी में गिर रहे राजू के आत्मविश्वास को चिलरी ने सहारा दिया ।
राजू ने नजरें झुकाते हुए कहा - “ हम क्या दे पाएँगे तुम्हें , तुमने बियाह को हाँ क्यों बोला ? ”

“ न बोलकर किसी राजा से बियाह जाते क्या ? ” कहकर चिलरी ने ठहाका लगाया । फिर आगे कहा - “ अरे ! गरीब तुम भी , गरीब हम भी । जिंदगी तो यूँ ही गरीबी में ही कटनी है । पर साथी ऐसा हो जो गरीबी की गठरी के बोझ को साध ले तो जिंदगी कोई मुश्किल न लगेगी । ”

बीच नदी, चाँदनी रात और मद्धम गति की हवा में उड़ते हुए चिलरी के बाल राजू को चिलरी के प्रति और आकर्षित कर रहे थे । पर राजू के मन में एक अपराध बोध - सा था । वो इस बोझ से मुक्त होना चाहता था । दो पल के मौन के बाद राजू की जिव्हा शब्दों को और पकड़कर न रख सकी , उसने कहा - “ अच्छा चिलरी तुम तो गुनी छोरी हो । पूरे गाँव में तुम्हारा नाम है - मसाला पीसने से लेकर सुंदर गोल कण्डे बनाने तक । अच्छी छोरियों को तो अच्छा घर मिल ही जाता है और तुम तो घर पर 12वीं भी पढ़ रही थीं न । ऊपर से कई छोरे चाहते थे तुम्हें । वो जगन वो तो तुम्हारे आगे - पीछे घूमता था । वो पैसे भी हमसे अच्छे कमाता है तुम्हें खुश रखता । ”

चिलरी ने मुँह बिचका लिया - ” क्या खुश रखता जगन । दो बार पिट चुका है वो मेले में लड़की छेड़ने में । ऐसे लड़कों का कोई ईमान नहीं होता । हमें चमड़ी से प्यार करने वाला नहीं चाहिए था । हमारे दिल से प्यार करने वाला चाहिए । चमड़ी की रौनक को कित्ते दिन पकड़कर रख सका है कोई । अरे ! चमड़ी का हिसाब तो दौलत जैसा होता । जित्ती बार गिनो उत्ती ही कम होती जाती और हाँ अब दुबारा ये बात मत करना कि हमें तुम से बियाह नहीं करना चाहिए था । ”

राजू के मन की हालत ऐसी थी मानो उसे कोई हीरा मिल गया हो और वो उसकी चमक को सम्भाल न पा रहा हो । पर हीरे ने ही कह दिया था कि उसे धूल फांककर कोयला जैसा बनना पसन्द है पर तिजोरी में रहना नहीं । तो राजू के मन में कोई सन्देह नहीं था । अब तक हीरे को धरोहर मानकर चलने वाला राजू अब हीरे के मालिक सरीखे था । राजू के मन से ये विचार कोसों दूर हो चुका था कि चिलरी कभी भी उससे अलग हो सकती है । अब राजू को चिलरी के साथ सपने सजाने का पूरा अधिकार था ।

राजू - “ अच्छा तुम्हारे का - का सपने हैं हमारे साथ ? कछु तो सोची होगी । ”

चिलरी - “ सोचे काहे न हैं । जिस दिन से बापू रिश्ता पक्का किए हैं तब से बस तुम्हारे और अपने बारे में सपने ही तो देख रहे हैं । हमें तुम्हारे साथ खेत में गन्ना खाना है , कश्ती तो अपनी है ही कभी - कभी घुमा दिया करना , हरिया की दुकान पर हर हफ्ता नई चूड़ी आतीं हैं वो कभी - कभी दिला दिया करना और हाँ वो कान्हा जी के मेले में इमली वाला खट्टा बताशा आता है वहाँ पेट भर के बताशे खिला दिया करना बस । ”

“ औ.....और साड़ी ?........साड़ी तो औरतें सबसे पहले मांगतीं हैं वो न माँगीं तुमने । ” - राजू ने विस्मय से पूछा ।

चिलरी - “ साड़ी कैसे माँगें तुमसे ऊ तो महँगी आत है न । दूजे तुम्हारी दुई-दुई बहनें हैं । तुम्हें उनकी शादी को भी तो पैसा जोड़ना है । ”

राजू - “ अरे ! तो इत्ते कम थोड़े ही न कमात हैं कि साड़ी भी न पहना पाएँ तुम्हें । कभी-कभी सैलानी जेब भर के पईसा दे जात हैं । ”

चिलरी - “ अच्छा ठीक है बाबा जिस दिन सैलानी तुम्हें भर जेब पैसा दें उस दिन हमें साड़ी भी ले आना । ”

बीच नदी में हिचकोले लेती नाव में राजू के साथ प्रेमपूर्ण संवाद का कोई अवसर चिलरी गंवारा नहीं करना चाहती थी , उसने कहा - “ अच्छा राजू तुम भी तो कुछ सपने देखे होंगे न । बताओ न हम तुम्हारे सपने कैसे पूरे करें ? ”

राजू ने शर्माकर कहा - “ अरे ! हम का सपने देखते । हम तो कभी ये ही न सोचे कि हमारा बियाह होगा और अब बियाह भी हुआ वो भी तुम जैसी गुनी छोरी से यही बहुत है । ”

चिलरी - “ फिर वही बातें । अच्छा जब बियाह तय हुआ तब तो कुछ सोचे होगे न । ”

राजू - “ हम का सोचते । बस जैसे रामू , दीपू और मलखान अपना खाने का डिब्बा लाते हैं । वैसे ही हमारे लिए भी बना दिया करना । ”

चिलरी - “ अरे ! बस इत्ती सी बात । हम तुम्हारे लिए रोज बढ़िया खाना बनाकर दिया करेंगे और साथ में अचार और चटनी भी । ”

राजू - “ अरे ! जे अचार और चटनी की क्या जरूरत है । बस छाह रोटी और एक ठो सब्जी , पेट भरे खातिर इत्तो काफी । ”

चिलरी - “ हाँ - हाँ तुम तो हमारी इज्जत खराब करवा दोगे । नया - नया बियाह हुआ है , अब खाने का डिब्बा लेकर जाओगे तो तनिक खाना खबसूरत तो लगना चाहिए । ”

राजू - “ अच्छा जैसी तुम्हारी मरजी । ”

कुछ रुककर राजू ने कहा - “ वैसे तुम्हें बुरा लग रहा होगा न कि हमारी पहली रात है और खटिया पर जोराजोरी के बजाय तुम्हें यूँ कश्ती में घुमा रहे । ”

चिलरी - “ अरे ! हमें काहे बुरा लगेगा हमें तो अच्छा लग रहा है । ” चिलरी मुस्कुराई फिर कहा - “ शहरी लोग पहली रात को क्या - क्या न करते । फूल लाते , नरम बिस्तर पर सोते , तरह - तरह के इत्र छिड़कते । पर हमारी पहली रात हमें हमेशा याद रहेगी । तुम रिश्तेदारों से बचाकर खिड़की के रस्ते हमें खुली हवा में लाए । फिर रात के 2 बजे अपनी कश्ती में हमें घुमा रहे हो । इस समय पूरी नदी में न कोई सैलानी है न कोई कश्ती । हम यहाँ तुमसे खुलकर अपने दिल की बात कह सकते हैं । घर में गहरी साँस भी ले लेते तो बाहर सबकी नींद खुल जाती । ”

तभी एक तेज लहर आई और कश्ती डांवाडोल हुई । राजू घबरा गया और बातें छोड़कर गम्भीरता से पतवार को सही दिशा में चलाने लगा ।

इसी बीच राजू की नजर चिलरी की ओर गई । राजू जितना घबराया हुआ था चिलरी उतनी ही शांत थी । राजू ने कहा - “ तुम्हें डर नहीं लग रहा अभी पल भर में कश्ती पलट जाए तो । ”

चिलरी ने पूरे विश्वास से कहा - “ ऐसे कैसे पलट जाएगी । हमें पता है कि तुम कितनी अच्छी कश्ती चलात हो । इसीलिए तो अपनी जिंदगी की बागडोर तुम्हारे हाथ में दिए हैं । जैसे कश्ती अच्छी चलात हो वैसे ही गृहस्थी भी चला लोगे हमें यकीन है । ”

राजू - “ पता है लहर के बड़े - बड़े झोंके झेले हैं हमने । आज तक बड़े से बड़े पैसे वाले को बिठाने के बाद भी झोंको से ऐसे नहीं डरे पर इस छोटी सी लहर से डर गए क्योंकि तुम साथ थीं । हम समझ गए अब हमें प्यार हो चला है तुमसे । ”

चिलरी - “ प्यार की इकलौती यही तो बुराई है राजू कि दिल को कमजोर कर देती है जबकि नफरत दिल को मजबूत । पर फिर भी प्यार है तो तभी तो जिंदगी में रंग हैं ।.......अच्छा अब कश्ती किनारे भी ले चलो । घर भी जाना है । कहीं सब उठ गए तो शरम के मारे इसी नदी में डूबकर मरना पड़ेगा । ”

चिलरी और राजू खिलखिलाकर हँसे । राजू ने फटाफट कश्ती किनारे लगाई , रस्सी से बाँधी और दोनों घर को चल दिए । बड़ी सफाई से खिड़की के रस्ते अपने कमरे में दाखिल हुए और बिस्तर पकड़ा । बिस्तर पर लेटते ही बाहर मुर्गे ने बाँग दे दी । सब नाते रिश्तेदार ऊँघते हुए उठ पड़े ।

राजू - “ पहली रात जिंदगी की यादगार होती है । आखिर बीत ही गई अब दुबारा न आएगी । ”

चिलरी - “ रात तो बीतनी ही थी । बखत को रोकना तो हाथ में नहीं होता पर हर पल को जीना इंसान के अपने हाथ में होता है । जिंदगी में कई रातें जागकर गुजारी हैं पर वो मैय्यत के शोक की होती थीं । लगता था जल्दी से ये रात गुजरे । पहली बार ख़ुशी में रात गुजारी है और एक - एक पल जिया है । गुजरा हुआ कोई भी पल दुबारा नहीं आता इसलिए गुजरने से पहले हर पल को यादगार बना लेना चाहिए । ”

चिलरी की आशावान बातों ने राजू के चेहरे पर भी आशा का दीप प्रज्वलित कर दिया था ।

राजू - “ तुम इत्ती अच्छी - अच्छी बातें कैसे कर लेती हो । हम तो अपनी गरीबी से हमेसा परेशान रहते । ”

चिलरी - “ करेंगे न तो जिएँगे कैसे । वैसे भी कश्ती चलाने वाले को न तो घबराने की इजाजत होती है न ही परेशान होने की । उसे तो तूफान में भी पतवार को कसकर पकड़ना पड़ता है और किनारे तक पहुँचना होता है । अब हम ठहरे कश्ती चलाने वाले की बीवी तो ये गुन हममें भी होने चाहिए न । वैसे भी आज से हमें भी तो गृहस्थी की कश्ती चलानी सीखनी है । ”

तभी इन प्रणय भरे पलों में एक रिश्तेदार ने व्यवधान डाल दिया , दरवाजा खटखटाकर कहा - “ अरे ! अब बाहर न निकलोगे क्या , भोर हो गई है । सुहागरात खतम , काम शुरू । हा हा हा....... ”

चिलरी - “ अब बखत आ गया है कि हम दोनों अपने - अपने काम पर निकलें । कश्तियाँ इंतजार कर रही हैं । ”

लेखक
प्रांजल सक्सेना 
 कच्ची पोई ब्लॉग पर रचनाएँ पढ़ने के लिए क्लिक करें-  
कच्ची पोई ब्लॉग 
 गणितन ब्लॉग पर रचनाएँ पढ़ने के लिए क्लिक करें- 
गणितन ब्लॉग 
कच्ची पोई फेसबुक पेज को लाइक करने के लिए क्लिक करें-  
कच्ची पोई फेसबुक पेज 
गणितन फेसबुक पेज को लाइक करने के लिए क्लिक करें-   
गणितन फेसबुक पेज
 

शनिवार, 7 मई 2016

साँच को आँच कहाँ

पिछले कई दिनों से कोई लेख आप सबके समक्ष प्रस्तुत नहीं किया है । कारण कि एक तो जब से पदोन्नति हुई है , व्यस्तता बढ़ गई है । दूजे आजकल एक उपन्यास लिखने में व्यस्त हूँ । उसी उपन्यास की एक छोटी - सी घटना प्रस्तुत कर रहा हूँ । पढ़ते समय बस इस बात को ध्यान में रखिएगा कि ये दृश्य लगभग 1995 का है -

शहर में शोभित समाचार – पत्र बाँटकर लौट रहा होता है । मार्ग में उसे एक चौराहे पर नारद दिखाई देता है । नारद अजीब तरह से सड़क पर इधर – उधर जाते हुए लोगों को देख रहा था । उसके इस व्यवहार ने शोभित के कदम बढ़ने के स्थान पर रोक दिए और वो नारद को एकटक देखने लगा कि वो करना क्या चाहता है ? तभी एक बूढ़ी औरत जो सिर पर कुछ सब्जियाँ रखकर बेचने जा रही थी । उससे साईकिल सवार एक किशोर टकरा गया । बुढ़िया उससे टकरा गई और उसकी सारी सब्जियाँ बिखरकर गिर गईं ।
नारद मानो ऐसी ही किसी घटना की फिराक में था । वह भागता हुआ उसके पास पहुँचा । वहाँ भीड़ तो एकत्र हो ही गई थी । अब बुढ़िया और साईकिल सवार के मध्य शास्त्रार्थ आरम्भ हो गया । बुढ़िया जमीन पर तो गिर ही गई थी । अपने तलवे पकड़कर बोली – “ अरे ! मार दयो रे , नाशपीटे ! धीरे ही चला लेता साईकिल । ”
साईकिल वाला बोला – “ अरे ! अम्मा हम का करते हम तो सीधे ही चल रहे थे । तुम ही अचानक से मोड़ से निकलीं । ”
बूढ़ी अम्मा अपने तलवे दबाते हुए बोलीं – “ अरे ! तो मोड़ पर तुम्हें साईकिल को हवाई जहाज बनाने की क्या जरूरत थी ? धीरे ही चला लेते साईकिल । ”
अब भीड़ से स्वयंभू न्यायाधीशों की दलीलें आरम्भ हो गईं । एक व्यक्ति ने कहा – “ आजकल के लौंडों को कुछ दिखता थोड़े ही है । बस अड़ापेल चले जाते हैं । ”
दूसरे व्यक्ति ने कहा – “ साईकिल तो आजकल नैक – नैक से लड़कों को दे देते हैं । चाहें चलानी आए या नहीं पर सड़क पर चल देंगे तूफान बनकर । ”
भीड़ में सभी बूढ़ी अम्मा के ही पक्ष में थे । किशोर समझ गया कि उसके तर्क कोई न सुनेगा । इसलिए उसने क्षमा माँगने में ही भलाई समझी । उसने हाथ जोड़कर कहा – “ अच्छा अम्मा तुम्हारे हाथ जोड़ते हैं हमारी ही गलती थी । हम ही गलत साईकिल चला रहे थे । आगे से किसी भी मोड़ पर साईकिल से उतर जाया करेंगे और मुड़ने के बाद ही बैठा करेंगे । ”
अतिश्योक्ति अलंकार से परिपूर्ण शब्दों में किशोर ने क्षमा माँग ली थी । भीड़ का उद्देश्य पूरा हुआ तो वो तितर – बितर होने लगी । उसी समय नारद ने कहा – “ माफी तो हो गई पर नुकसान का क्या ? उसका मुआवजा तो नहीं मिला ? ”
किशोर ने कहा – “ नुकसान ? कैसा नुकसान ? अरे ! सब्जियाँ ही तो जमीन पर गिरी हैं । मैं उन्हें उठाकर रखने को तैयार हूँ । ”
कहकर किशोर साईकिल से उतरा और जमीन पर बिखरी सब्जियाँ उठाकर टोकरी में रखने लगा । सारी सब्जियाँ टोकरी में रखकर वो उठा और उसने कहा – “ लो हो गया गलती सुधार । माफी भी माँग ली और सारी सब्जियाँ भी वापिस टोकरी में रख दीं । अब जाऊँ.....ऊँ ? ”
नारद ने कहा – “ सारी कहाँ रख पाए ? उन टमाटरों का क्या जो नाली में गए ? उन तीन टमाटरों का क्या जो नाली में गए । उनके पैसे तो देते जाओ । ”
किशोर बोला – “ नाली में ? ”
नारद ने कहा – “ हाँ नाली में । जब अम्मा की टोकरी गिरी तो तीन टमाटर नाली में गए । लगभग 250 ग्राम टमाटर नाली में गए उनका मुआवजा तो देते जाओ ।
बूढ़ी अम्मा ने अपनी टोकरी देखी और कहा – “ लग तो पूरे रहे हैं । ”
किशोर ने कहा – “ लो ये अम्मा भी कह रही हैं कि पूरे हैं और फिर किसने देखा कि टमाटर नाली में गए हैं ? ”
नारद ने कहा – “ मैंने , मैंने देखा नाली में टमाटर जाते हुए । ”
फिर नारद ने अब तक जमीन पर ही बैठी अम्मा के दोनों कंधों पर हाथ रखा और उनके पीछे घुटनों पर बैठ गया । भीड़ में वो अम्मा का पूर्ण हितैषी लग रहा था । उसने कहा – “ अम्मा की नजर कमजोर है , अम्मा अंदाज नहीं लगा पा रही हैं कि कितना सामान था ? इसका ये मतलब कतई नहीं है कि कोई भी उन्हें धोखा दे दे । मैं साथ हूँ अम्मा के । मैंने देखा है टमाटरों को नाली में जाते हुए और तुम्हें मुआवजा दिए बिना मैं यहाँ से जाने नहीं दूँगा । ”
किशोर ने पसीना पोंछते हुए कहा – “ अब ये कौन – सी जुगत है भाई ? माफी माँग तो ली अब मुआवजा भी माँग रहे । जबकि किसी ने नहीं देखा कि एक भी टमाटर नाली में गया हो । ”
नारद उठकर खड़ा हुआ और उसने कहा – “ शक है ?................शक है ? तो इस नाली में हाथ डालकर देख लो । अभी ज्यादा पानी बहा नहीं है । यहीं आस – पास ही मिल जाएँगे टमाटर । साँच को आँच कहा । ”
किशोर ने कहा – “ अरे ! नहीं , नहीं , बिल्कुल नहीं । मुझे कोई शौक नहीं नाली में हाथ डालने का और वैसे भी अम्मा तो कुछ कह नहीं रहीं तुम्हीं जबरदस्ती की वकालत किए जा रहे हो । ”
नारद ने कहा – “ अम्मा कित्ती उमर हो गई है तुम्हारी ? ”
बूढ़ी अम्मा ने कहा – “ पतो नाए लला , पर आजादी को आँखों से देखा था । ”
नारद ने कहा – “ आजादी को आँखों से देखा था यानि कि 60 – 70 की होगी ।.......अच्छा ये बताओ कि क्या तुम्हें सब बातें याद रहती हैं ? ”
अम्मा ने कहा – “ ना बेटा , अब इस उमर सब कुछ कहाँ याद रहेगो ? ”
फिर नारद जमीन पर बैठ गया और दोनों हाथ जादूगर की तरह उठाकर आँखें बड़ी करके कहा – “ वही तो , वही तो अम्मा , बुढ़ापे में आपकी याद्दाश्त और नजर दोनों कमजोर हो गईं हैं ।.........तुम्हें याद नहीं है तीन टमाटर जो ऊपर रखे थे वो तुम्हारे गिरते ही सर्रर्र...से नाली में चले गए । नुकसान हुआ है तुम्हारा , मुआवजा तो माँगो । ”
अब अम्मा भ्रमित हो गई थीं । उन्होंने टोकरी को गौर से देखा फिर कहा – “ शायद कम ही हैं । तुम सही कह रहे हो लला । हाँ कम हैं टमाटर.............लावो रुपईया । ”
नारद मुस्कुराया और कहा – “ हाँ , ये हुई न बात । ”
किशोर ने कहा – “ ये अच्छा है । जबरदस्ती टमाटर नाली में गिर गए । जाओ मैं तो नहीं दूँगा पैसे । ”
नारद ने कहा – “ अरे ! लौंडे एक बात सुन सिर्फ टमाटर ही नाली में नहीं गिरे हैं । मूली भी जमीन पर गिरने से गंदी हो गई है । एक बैंगन भी गिरने से थोड़ा फट गया है । अब बताओ पैसे देते हो या इनका भी बिल जोड़कर बताऊँ ? ”
किशोर ने कहा –“ नहीं , बिल्कुल नहीं । तुम्हारा बस चले तो सारी सब्जी के पैसे मुझसे ही ले लो ।..........ये लो अम्मा एक रूपया । ”
किशोर ने बूढ़ी अम्मा की ओर सिक्का बढ़ाया । अम्मा की आँखों में चमक आ गई । न तौलने की मेहनत लगी न ग्राहक से झिकझिक हुई और 250 ग्राम टमाटर के पैसे भी मिल गए ।
तभी नारद ने कहा – “ एक रूपया , बस एक रूपया ? ”
किशोर ने कहा – “ हाँ एक रूपया और कितने । तीन टमाटर होते ही कितने हैं 250 ग्राम और कल मैंने बाजार से चार रूपए किलो के भाव से टमाटर लिए थे । उस हिसाब से एक रूपया ही तो बना । ”
नारद ने कहा – “ लिए होंगे , जरूर लिए होंगे । पर वो टमाटर ऐसे टमाटर न होंगे । ”
नारद ने एक मोटा ताजा टमाटर टोकरी से उठाया और कहा – “ ये देखो इस टमाटर को देखो क्या ताजगी है इसकी । दब भी नहीं रहा , पिलपिलाहट बिल्कुल नहीं और....और साइज तो देखो । इसी साइज के तीन टमाटर नाली में गए हैं । 250 नहीं 350 ग्राम नाली में गए होंगे । ऊपर से ये टमाटर भी अच्छी किस्म का है । ये चार नहीं छह रूपए किलो के अर्त – पर्त बिकेगा । इस हिसाब से इस टमाटर के एक रूपए पिचहत्तर पैसे बनते हैं । ”
किशोर ने ठोड़ी को गर्दन से चिपकाया जिससे उसकी गर्दन में दो सिलवटें पड़ गईं फिर उसने कहा – “ हाँ , हाँ दुगुने दाम ले लयो । एक रूपए के एक रूपए पिचहत्तर पैसे । ”
नारद ने तिरछी नजरें करते हुए बूढ़ी अम्मा से कहा – “ अम्मा ! ये जिन मूलियों पर धूल लग गई है , उनका दाम कितना होगा ? ”
किशोर ने चीखते हुए कहा – “ पिचहत्तर पैसे से ज्यादा बिल्कुल नहीं । ये लो पिचहत्तर पैसे और बख्शो मुझे । ”
कहकर किशोर पिचहत्तर पैसे अम्मा की ओर बढ़ाए और साईकिल लेकर भाग गया । उसके जाने के बाद भीड़ भी छँट गई । केवल नारद और बूढ़ी अम्मा रह गए । अम्मा ने नारद से कहा – “ बहोत – बहोत शुक्रिया लला । तुमने टमाटर नाली में जाते देख लिए और अच्छे पैसे भी दिला दिए । ”
बूढ़ी अम्मा दीवार के सहारे से खड़ी हो गईं और सब्जी की टोकरी भी उठाकर सिर पर रख ली । तभी नारद ने कहा – “ अम्मा , जब लला बोल रही हो तो अम्मा वाला एक फर्ज तो अदा करती जाओ । ”
अम्मा ने विस्मय से कहा – “ कौन – सा फर्ज लला ? ”
नारद ने कहा – “ अम्मा हम तुम्हें फोकट के एक रूपया और पिचहत्तर पैसे दिलाए । हमें कम से कम पचास पैसे तो देती जाओ । ”
अम्मा ने कहा – “ फोकट में ?.....................पर ऊ तो हमारे टमाटर के हैं जो नाली में गए थे । ”
नारद मुस्कुराया और कहा – “ कौन – से टमाटर अम्मा ? कोई टमाटर नाली में न गया है । अब तुम सवेरे – सवेरे उस लौंडे से टकराईं और लौंडा भी अच्छे कपड़े पहना था । सो मैंने सोचा कि तुम्हें कुछ पैसे दिलवा दूँ और तुम हो कि मुझे कमीशन में एक फूटी कौड़ी भी न दे रहीं । ”
अम्मा ने पूछा – “ तो का टमाटर नाली में नहीं गए थे ? ”
“ अरे ! और क्या , एक भी टमाटर नाली में न गया था । चाहों तो नाली में हाथ डालकर देख लो । साँच को आँच कहाँ । ” – नारद ने उत्तर दिया ।
अम्मा ने कहा – “ अरे ! हम न डालेंगे नाली में हाथ । सवेरे – सवेरे नहाकर आए हैं । आज शुक्रवार है संतोषी माता के मंदिर में मत्था भी टेकना है । हम नाली में हाथ न डालेंगे । तुम बेफालतू में झूठे पैसे दिलवा दिए हमें । ”
नारद ने कहा – “ अम्मा , झूठे पैसे न थे , मुआवजे के थे । अब वो लौंडा तुमसे टकराया तो था न । इस बात के वो तुम्हें कोई पैसे न देता इसलिए हमने टमाटर नाली में जाने की कहानी बना दी । ”
अम्मा ने रूआँसी होकर कहा – “ जबरदस्ती पाप का भागीदार बना दिया हमें । ”
नारद ने खिसियाते हुए कहा – “ लयो एक तो बिना मेहनत करे ही बोहनी हो गई तुम्हारी । ऊपर से कह रही हो कि पाप करवा दिया हमसे । ”
नारद ने उसकी टोकरी में से एक बैंगन निकाला और कहा – “ ये देखो सड़ा हुआ बैंगन है , न जाने कितनी इल्ली निकलेंगी इसमें और इसी बैंगन को तुम बाजार में अच्छा बैंगन बताकर बेचोगी । ये पाप नहीं है ? चलो निकालो हमारा हिस्सा । ”
कुछ देर पहले अम्मा की सब्जियों की प्रशंसा करने वाले नारद ने पलटा खा लिया था । क्योंकि तब उसे पैसे दिलाने थे और अब लेने थे ।
बूढ़ी अम्मा ने एक सिक्का नारद के हाथ में थमाया । नारद ने सिक्के को ध्यान से देखा और कहा – “ चवन्नी ? अरे ! मैंने अठन्नी माँगी थी । ”
अम्मा ने कहा – “ माँग़ने से क्या हमें पश्चाताप भी तो करना है । हम एक रूपया अपने पास रखेंगे और बाकि मंदिर में चढ़ा देंगे । ”
नारद ने कहा – “ अरे ! लेकिन........”
पर अबकि अम्मा ने उसकी एक न सुनी और आगे बढ़ गईं ।
“ हा हा हा.........” – एक अट्टहास का स्वर नारद को सुनाई दिया । नारद पलटा तो उसने देखा कि ये अट्टहास शोभित का था ।
नारद ने कहा – “ अरे ! शोभित आ गए अखबार बाँटकर.......इतना जोर से क्यूँ हँसे भाई ? ”
शोभित ने कहा – “ हँसू न तो क्या करूँ भैय्या । आपने इतनी मेहनत की और मिले केवल 25 पैसे । इन 25 पैसे से क्या होगा जो आपने हवा – हवा में 3 टमाटर नाली में बता दिए । ”
नारद ने कहा – “ धार मिलती है शोभित धार । देखो मेरा काम है चुनाव प्रचार का । अब प्रचार के लिए हर तरह के काम करने पड़ते हैं । सबसे कठिन काम होता है वोटरों के दिमाग में अपनी बात फ़िट करना । उन्हें शतरंज के मोहरों की तरह चलाना । विधानसभा चुनाव हुए दो साल बीत गए । वो पैसे खत्म होने लगे हैं । इसलिए ये 25 पैसे भी काम के हैं । इनसे एक पेंसिल तो आ ही जाएगी बच्चे की । साथ ही मैं अपने को अजमा रहा था कि आज भी लोगों की सोच को अपने अनुसार बदल सकता हूँ कि नहीं ? क्योंकि कुल मिलाकर यही कला तो है मेरे पास जिसके भरोसे कमाता हूँ । अब देखो अभी भी उस साईकिल वाले से पैसे निकलवा लिए न । बुढ़िया के दिमाग में भी ये बात डाल दी कि उसके तीन टमाटर नाली में गए हैं । फिर ये भी घुसा दिया कि एक भी टमाटर नाली में नहीं गया है और इसका कमीशन भी खा लिया और तो और भगवान को भी 50 पैसे का चढ़ावा हो गया । मैंने एक साईकिल वाले को दुखी करके दो इंसानों और एक भगवान को खुश कर दिया । वास्तव में मुझ जैसे इंसानों के कारण ही दुनिया में अच्छाई बची हुई है । ”
शोभित बोला – “ क्या नारद भैय्या आप भी । वैसे आप किसी को भी बरगलाने की ताकत रखते हैं । ऐंवे ही तीन टमाटर नाली में पहुँचा दिए । ”
नारद ने कहा – “ वैसे पूरा काम हवा में नहीं किया । एक टमाटर तो वास्तव में नाली में गया था । ”
शोभित ने कहा – “ क्या भैय्या अब आप मुझे भी चलाने लगे । ”
नारद ने कहा –“अरे ! नहीं यार , एक टमाटर वास्तव में नाली में गया था । चाहों तो हाथ डालकर देख लो । साँच को आँच कहाँ । ”
लेखक
प्रांजल सक्सेना 
 कच्ची पोई ब्लॉग पर रचनाएँ पढ़ने के लिए क्लिक करें-  
कच्ची पोई ब्लॉग 
 गणितन ब्लॉग पर रचनाएँ पढ़ने के लिए क्लिक करें- 
गणितन ब्लॉग 
कच्ची पोई फेसबुक पेज को लाइक करने के लिए क्लिक करें-  
कच्ची पोई फेसबुक पेज 
गणितन फेसबुक पेज को लाइक करने के लिए क्लिक करें-   
गणितन फेसबुक पेज