बुधवार, 3 जून 2015

घरवाली - बाहरवाली


पति उवाच

तुम ही हो मेरी प्यारी पत्नी ,
तुम ही हो मेरी प्यारी पत्नी ।

न करो अपना दिल  छोटा ,
मुझे न समझो पति खोटा ।
माना सुंदर है मेरी सेक्रेट्री ,
तुम्हारी सुंदरता एक हिस्ट्री ।
फिर भी तुम पर मरता हूँ ,
प्यार तुम्हें ही करता हूँ ।

वो सेक्रेट्री पर तुम हो पत्नी ,
तुम ही हो मेरी प्यारी पत्नी ।

माना वो लगती है सुंदर ,
तुम हो पुराना खण्डहर ।
माना उसकी सुंदर टाँगे ,
तुम्हारे पास बस माँगें ।
वो कपड़े पहन भी अर्द्धनंगीनि ,
और तुम हो मेरी अर्द्धांगिनी ।

माना वो है चटपटी चटनी ,
तुम ही हो मेरी प्यारी पत्नी ।

माना शहद सी उसकी बोली ,
और तुम एक कड़वी गोली ।
माना वो लगती मनभावन ,
पर मैं तुम्हारा पक्का साजन ।
माना उसे देख मैं हो जाता जवान ,
और तुम्हें देख याद आए शमशान ।

भले जी वो हो पहाड़ की जर्नी ,
पर तुम ही हो मेरी प्यारी पत्नी ।

पत्नी उवाच

हे ! पतिदेव हमें न बहलाओ ,
बातों को तुम न गोल घुमाओ ।
हम भी मर्दों की फितरत जानते ,
आपकी तो अच्छे से पहचानते ।
पत्नी सुंदर हो या सुन्दरतम ,
फिर भी चाहो एक प्रियतम ।

घर से बाहर भी चाहो सजनी ,
भले ही कितनी अच्छी हो पत्नी ।

माना कभी मैं बर्तन मंजवाती हूँ ,
कपड़े भी तुमसे धुलवाती हूँ ।
पर वो तो सैंडिल उठवाएगी ,
मॉल में जेब खाली कराएगी ।
और जब जेब खाली हो जाएगी ,
तब वो किसी और को पटाएगी ।

घरवाली सबको लगे है वजनी ,
भले ही कितनी अच्छी हो पत्नी ।

जब बियाह के घर में आई थी ,
तब मैं भी मक्खन मलाई थी ।
बच्चों का जन्म , तुम्हारी फिकर ,
इन सबने बिगाड़ी मेरी फिगर ।
जो इन जिम्मेदारियों से हटती ,
तुम्हारी कोई इज्जत न रहती ।

फिर भी तुम्हें भाए वो बातूनी ,
भले ही कितनी अच्छी हो पत्नी ।

रचनाकार
प्रांजल सक्सेना 
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