मंगलवार, 28 जनवरी 2020

चौरंगा क्यों नहीं?

      महानपुर में पहले पंचायत चुनाव के बाद असली लोकतंत्र की झलक दिखनी थी। इसलिए नारद की सलाह पर लोकतंत्र के सभी कायदे भी महानपुरियों ने अपनाने आरम्भ कर दिए थे। अबकी 26 जनवरी को रेवती दादा के अहाते में जहाँ गाँव की चौपाल बैठती है वहाँ तिरंगा फहराना तय हुआ। तिरंगे में डोरी बाँधकर डंडे के शीर्ष तक पहुँचा दिया गया। पौने दस हो चुके थे और झण्डा फहरने में पन्द्रह मिनट का समय था। नारद ने पनकी से पूछा – “पनकी जी, तिरंगा ऊपर ठीक से बँधा है चिंता न कीजिए, नीचे गिरेगा नहीं।” 
     पनकी ने तिरंगे की ओर से आँखें हटाए बिना ही कहा – “वो तो पता है नारद जी। हम तो इस दुविधा में फँसे हैं कि सूरज जैसे केसरिया, बादलों जैसे सफेद और वनस्पति जैसे हरे रंग के साथ जब पानी जैसा नीला चक्र भी अपने झण्डे में है तो इसे तिरंगा क्यों कहते हैं? चौरंगा क्यों नहीं?” 
     नारद ने हँसकर कहा – “वो इसलिए पनकी जी ताकि जनता – जनार्दन को ये ख्याल रहे कि संसद हो या विधानसभा प्रधान पद पर वही बैठेगा जिसका बहुमत ज्यादा है। अब माना कि नीला रंग भी तिरंगे में है लेकिन इतना कम है कि उसे नगण्य मानकर चौरंगे के बजाय तिरंगा ही नाम दे दिया गया। बल्कि चौरंगा के बजाय तिरंगा शब्द तो इस बात का प्रतीक मालूम पड़ता है कि जिस समुदाय के वोट सबसे कम हों उसके विकास की ओर सबसे कम ध्यान दिया जाए।” 
     पनकी ने कहा – “लेकिन नारद भैया ये चक्र तो तिरंगे में एकलौती आकृति है। इसके रंग को तो महत्व देना ही चाहिए था।” 
     नारद ने कहा – “ओहो! पनकी जी, लोकतंत्र में होना तो बहुत कुछ चाहिए लेकिन हो कहाँ पाता है। तिरंगा नाम रखकर जनता को ये भी तो बताना था कि मुट्ठी भर आदमी सही बात भी कहें फिर भी उसकी गिनती न करो। तीन रंगों की अधिकता में एक रंग की अनदेखी लोकतंत्र में अल्पमत वालों पर बहुमत वालों की दबाइश का उदाहरण मात्र है।” 
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     पनकी ने निराशा भरे स्वर में कहा – “हमने किताबों में पढ़ा है कि अशोक चक्र चौबीस घण्टे गतिमान रहने की शिक्षा देता है। ऐसी महान शिक्षा देने वाले चक्र के रंग को तो गिना ही जाना चाहिए था।” 
     समझदार आदमी को समझाना और भी मुश्किल होता है। नारद इस बात से खीझा, उसने कहा – “पनकी जी, यही तो होने वाले नेता के नाते आपको समझना चाहिए कि लोकतंत्र में बुद्धिजीवी होने से कुछ नहीं होता। यहाँ संख्याबल वाले ही राज करते हैं। जिसका अधिक क्षेत्र में प्रभाव है समझो वही अगला माननीय है।” 
     
     पनकी ने कहा – “वो तो ठीक है नारद जी लेकिन संविधान में अनेकों संशोधन भी तो हुए हैं। तो क्यों नहीं अब एक और संशोधन करके ये बात जोड़ दी जाती है कि आज से अपने झण्डे को तिरंगा नहीं चौरंगा कहा जाएगा ताकि सभी रंगों को समान सम्मान प्राप्त हो।” 
     नारद ने कहा – “वो इसलिए पनकी जी ताकि अपने देश की जनता को हमेशा ये ध्यान रहे कि अपने देश में बहुत से काम किए जा सकते हैं। लेकिन किए इसलिए नहीं जाते क्योंकि सालों से चलते हुए चलन को बदलने की इच्छाशक्ति है ही नहीं। आम जनता जब किसी जरूरी मुद्दे को उठाए तो उसे समझा दिया जाए कि अभी तो अमुक जरूरी काम ही नहीं हुआ तो इसे कैसे करें। कुल मिलाकर एक जरूरी काम का न हो पाना बताकर कई जरूरी काम टाल दिए जाते हैं।” 
     तभी ननकू ने कहा – “सभई लोग सावधान की मुद्रा में आ जाइए, रेवती दादा झण्डा फहराने वाले हैं।” 
     झण्डा फहरने के बाद पनकी ने कहा – “इसका मतलब है कि देश की आम जनता के हाथ में देश में जरूरी बदलाव लाने का माद्दा नहीं है।” 
      उसी समय ननकू ने मिष्टान्न वितरण के तहत थोड़ी – थोड़ी बूँदी पनकी और नारद के हाथ में रख दी। नारद ने कहा – “आम जनता के हाथ में है ये मुट्ठी भर मिठाई जो साल में दो – चार बार मिल जाती है और उसे लगता है कि सब कुछ ठीक है जैसा चल रहा है चलने दो। कहीं ये भी छिन गयी तो।” 
     बूँदी चिबलाते हुए पनकी के मन से चौरंगे का ख्याल जाता रहा। 
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