रविवार, 23 अगस्त 2015

जंगलिस्तान

जजमेंट :- अब जंगल के सभी जानवर कच्चे गढ्डों से ही पिएँगे पानी

रूपक अलंकार में लिखी गई एक कहानी । क्या आप पहचानने का प्रयास करेंगे कि कौन - सा पात्र वास्तविक दुनिया में कौन है ?

एक बार एक बहुत बड़ा-सा जंगल था । उसमें कई सारे जानवर रहते थे । शेर , बाघ , चीता , बब्बर शेर आदि भी कई सारे थे । इन्हीं चारों में से किसी के राज में जंगल चला करता था । जब कोई एक राजा चुन जाता था तो बाकि तीनों उसकी कमी निकाला करते थे । पर उनमें सबसे अच्छा राज्य बब्बर शेर का ही था । एक बार जब बब्बर शेर जंगल का राजा था तब जंगल के सारे जानवर उसके पास गए और कहा कि महाराज जंगल में कोई भी जलाशय नहीं है जिससे जंगल के जानवरों को पानी पीने की बड़ी असुविधा है । सबको पहाड़ी के उस पार जाना पड़ता है पानी पीने । क्यों न हम सब लोग पहाड़ी के उस पार रहने चलें ?
बब्बर शेर ने कुछ देर सोचा फिर कहा जंगल को छोड़कर जलाशय के लिए बाहर जाने में कोई समझदारी नहीं है । वैसे भी वह जलाशय कम गहरा है । गर्मी के समय तली तक पानी आ जाता है । एक काम करो सब लोग मिलकर जंगल के किनारे एक बड़ा-सा जलाशय बनाओ । फिर उसी से सब पानी पीना । आज ही से जुट जाओ जलाशय के लिए बड़ी - सी जगह खोदने ।
जंगल के सभी जानवरों को ये बाद अच्छी लगी । उन्होंने मिलकर श्रमदान करके जलाशय बनाना आरम्भ किया । हालाँकि ये मेहनत का काम था पर सब लोग प्रसन्नतापूर्वक ये कार्य कर रहे थे क्योंकि वो जानते थे कि एक बार जलाशय बन गया तो सदैव के लिए पानी की किल्लत समाप्त हो जाएगी ।
अथक परिश्रम और सतत श्रमदान से अंततः एक विशाल जलाशय खुद ही गया । तब तक बारिश का मौसम भी आ ही गया था । उस वर्ष बारिश भी बड़े जोर की हुई । परिणामतः जलाशय लबालब जल से भर गया । जंगल के सभी जानवर प्रसन्नता से झूम उठे । फिर उस जलाशय का पानी पीने लगे ।
परन्तु कुछ ही समय में उस जलाशय का पानी गन्दा हो गया और जानवर उसे पी-पीकर बीमार होने लगे ।
बब्बर शेर को जब ये बात पता लगी तो उसने सभी जानवरों की सभा बुलाई । उसने अपने महामन्त्री भालू से पूछा जानवरों के बीमार होने का क्या कारण है ?
भालू ने कहा सुनहरी मछली का न होना ।
बब्बर शेर ने पूछा सुनहरी मछली ? ये क्या होता है ?
भालू ने कहा महाराज हर छोटे-बड़े जलाशय में सुनहरी मछली होती है । चूँकि जलाशय खुला होता है इसलिए इसमें धूल आदि जाती रहती है । जिससे जलाशय गन्दा होता है । पर यदि सुनहरी मछली जलाशय में हो तो वो उस गन्दगी को खा-पीकर जलाशय को स्वच्छ रखती हैं । यदि सुनहरी मछली आ जाए तो जलाशय का पानी कभी भी खराब नहीं होगा ।
बब्बर शेर ने कहा ठीक है कहाँ मिलेगी ऐसी मछलियाँ ?
भालू ने कहा पहाड़ी पार के जलाशय में ऐसी कई मछलियाँ हैं । यदि आप वहाँ से मछलियों का एक जोड़ा ले आएँ तो वे यहाँ जलाशय को स्वच्छ रखेंगी और कोई भी बीमार न होगा ।
बब्बर शेर ने कहा जब ऐसा था तो पहले क्यों न बताया जलाशय बनने के समय ही उन्हें ले आता ।
भालू ने कहा क्षमा महाराज पर उस समय मैंने इसलिए नहीं बताया क्योंकि ये मछलियाँ संख्या में बहुत कम होती हैं और अपना जलाशय नहीं छोड़ना चाहतीं । साथ ही स्वाभिमानी भी बहुत होती हैं । तनिक सी गलत बात पर इनके मन को ठेस लग जाती है । यदि आप इन्हें अच्छे चारे और सम्मान का भरोसा देंगे तभी ये यहाँ पर आएँगी , अन्यथा नहीं । मैं जब भी पहाड़ी पार के जलाशय में पानी पीने जाता हूँ तो उन मछलियों को नमन करता हूँ ।
चूँकि बब्बर शेर अपनी प्रजा से बहुत प्रेम करता था और उनके भले के लिए कुछ भी कर सकता था । इसलिए उसने कहा हम ये दोनों शर्तें पूरी करेंगे । चलो महामन्त्री एक घड़ा ले लो । हम उस घड़े में उन मछलियों से आने का आग्रह करेंगे ।
फिर बब्बर शेर , भालू के साथ चल दिया मछलियाँ लेने । पहाड़ी पार के जलाशय में पहुँचकर बब्बर शेर ने कहा हे ! सुनहरी मछलियों हमने अपने जंगल के पास एक बहुत बड़ा जलाशय बनाया है । पर वह जलाशय बिना आपकी उपस्थिति के  अनुपयोगी ही है । आपसे निवेदन है कि कृप्या आप हमारे जलाशय में चलें ताकि हमारे जंगल के जानवर भी स्वस्थ रह सकें ।
मछलियों ने कहा हम चल सकते हैं पर पता है न हम दाने से अधिक सम्मान के भूखे हैं ।
बब्बर शेर ने कहा आप लोग निश्चिन्त रहिए । हम आपके दाने और सम्मान दोनों का पूरा ध्यान रखेंगे ।
मछलियाँ आश्वस्त होकर चलने को राजी हो गईं । भालू ने उन्हें घड़े में पानी भरकर रखा और अपने जंगल के किनारे बने जलाशय में लाकर छोड़ दिया । बब्बर शेर ने कड़े आदेश दिए कि मछलियों के दाने और सम्मान का पूरा ध्यान रखा जाए । अब जलाशय साफ़ रहने लगा । मछलियों ने भी अपनी वंशवृद्धि आरम्भ कर दी थी जिससे पूरे जलाशय में कई मछलियाँ हो गईं । जानवरों को भी स्वच्छ पानी पीने को मिल रहा था । सभी प्रसन्न थे ।
समय बीतता गया । बब्बर शेर का पूरा कुनबा धीरे-धीरे समाप्त हो गया । अब वहाँ राजा बनने के लिए शेर ही बचे थे वो भी कई सारे हो गए थे । वो झूठे प्रचार के सहारे जंगल के राजा बनते थे । आखिर उनकी मार्गदर्शक धूर्त बिल्लियाँ जो होती थीं ।
एक बार चुनाव से पूर्व एक शेर ने घोषणा की कि चूँकि आप जानवरों को जलाशय तक जाने में बहुत पैदल चलना पड़ता है । हम ऐसा करते हैं कि जंगल के हर कोने पर एक छोटा गढ्डा खुदवा देंगे उन गढ्डा में जलाशय से लाकर पानी भरवा देंगे फिर हर जलाशय में मछलियाँ भी डलवा देंगे । आप लोग जो सुविधा इतना पैदल चलकर ले रहे हैं वो आपको अब घर में ही मिलेगी । जंगल के अधिकतर जानवर इस बात से प्रसन्न थे क्योंकि उनकी मेहनत कम हो जाती । पर कुछ जानवरों को ये बात पसन्द न आई उन्हें लगा कि ऐसा करने से लोग आलसी बनेंगे और वैसे भी शेर का उद्देश्य लोगों का भला करना नहीं बल्कि शेर को केवल राजा का सिंहासन पाना है ।
पर इस घोषणा के बाद वही शेर बहुमत से जंगल का राजा बना और उसने वादा भी निभाया । पर गढ्डे बहुत अच्छे न बनवाए और उनमें मछलियाँ भी भरपूर न डालीं । परिणामतः गढ्डों का पानी अधिक शुद्ध न रह पाता था । पर लोग आलस में अपने निकट के गढ्डे से ही पानी पीने लगे ।
एक बार शेर सारे गढ्डे देखने निकला मछलियों ने उससे शिकायत की कि गढ्डे बड़े हैं पर मछलियाँ कम हैं इसलिए इन्हें पूरा साफ़ करना सम्भव न हो पा रहा । शेर ने कहा गढ्डे बड़े हैं तो मैं क्या करूँ तुम अधिक काम करो जलाशय में पड़े-पड़े आलसी हो गई हो । चुपचाप काम करती रहो ।
मछलियाँ बोलीं हे राजा ! क्या आप हमसे ऐसे बात करेंगे ? बब्बर शेर ने तो हमारे सम्मान और दाने के उचित प्रबन्ध का वादा किया था । जब से गढ्डे में आए हैं , दाना तो पूरा मिल नहीं रहा ऊपर से अब सम्मान भी नहीं दे रहे । ये जान लो कि अगर सम्मान पूरा न मिला तो हम अवसाद में रहेंगे और पानी उतना शुद्ध नहीं रह पाएगा ।
शेर पहले तो दहाड़ा , मछलियाँ सहम गईं फिर बोला ऐ मछलियों ! एक बात समझ लो अब न बब्बर शेर रहा इस जंगल में न उसका कुनबा । करें होंगे उसने तुमसे वादे पर ध्यान रखो मैं राजा हूँ राजा और तुम इसी जंगल में रहती हो इसलिए मेरी हर आज्ञा का बिना विरोध किए चुपचाप पालन करना पड़ेगा ।
शेर अपना मुँह मछलियों के पास ले गया और बोला और अगर मेरी बात का विरोध किया तो मुझे मछलियों का माँस खाने में कोई आपत्ति नहीं होगी ।
ये कहकर शेर ने अपनी जीभ मुँह के चारों ओर घुमाई । मछलियाँ चुपचाप रहीं और इसे ही अपनी किस्मत मान लिया । ये सारा दृश्य लोमड़ियों ने देखा । उनमें सबसे चालाक लोमड़ी शेर के पास गई और बोली महाराज , आपने सही किया जो इन मछलियों को हड़का दिया । ये तो सिर पर ही चढ़ी रहती हैं । अरे ! अगर पानी साफ़ कर रही हैं तो कोई एहसान कर रहीं हैं क्या ? आप जैसा दयालु राजा इनका नरम-नरम माँस बख्श करके इन्हें दाना और उपलब्ध करा रहा है ।
अपनी झूठी प्रशंसा सुनकर शेर ने मूँछों पर ताव दिया । लोमड़ी ने आगे कहा पर महाराज , एक बात तो सोचिए आपके शावक भी इन्हीं गढ्डों से पानी पीते हैं । कल को अगर इन पर और बोझ बढ़ा तो क्या ये गढ्डों के पानी को पर्याप्त मात्रा में साफ़ रख पाएँगी ?
अब शेर सोच में पड़ गया फिर बोला अरे ! ये तो मैंने सोचा ही नहीं था । फिर तो बहुत गड़बड़ हो जाएगी । मेरे ही शावक बीमार पड़ गए तो । मैं  मछलियों से क्षमा माँगता हूँ और तुरन्त गढ्ढों में मछलियाँ बढ़वाता हूँ ।
लोमड़ी ने कहा अर्रर्रर्र रुकिए महाराज , आप जंगल के महाराज हैं । भला आपको शोभा देता है कि क्षमा माँगे और वो भी एक मछली से ।
शेर बोला फिर मैं क्या करूँ ? आखिर प्रश्न मेरे शावकों के जीवन का है ।
लोमड़ी कुटिलता से मुस्कुराई फिर बोली महाराज हम देंगे आपको बच्चों को साफ़ पानी । देखिए जलाशय हो या गढ्डे सबके सब कच्ची मिट्टी की दीवारों से बने हैं । समय-समय पर ये मिट्टी पानी में मिलती रहती है जिससे पानी गन्दा होता रहता है । हम लोमड़ियाँ हर गढ्डे के पास एक पक्का गढ्डा बनाएँगी जिसमें दीवारें पत्थर की होंगी । फिर कम से कम गन्दगी होगी । हम उसमें इन सुनहरी मछलियों को भी न लेंगे क्योंकि ये बहुत भाव खाती हैं । हम उसमें पड़ोस के दरिया से नारंगी मछलियों को लाकर डालेंगे । उन्हें इतना सिर पर ही न चढ़ाएँगे और जमकर काम लेंगे । फिर सबको साफ़ पानी मिलेगा ।
शेर की आँखों में चमक आ गई , वह बोला अरे ! वाह बहुत ही अच्छी योजना है । तुम आज ही से पक्के गढ्डे बनाओ ।
लोमड़ी बोली बना तो दूँ महाराज पर.....
शेर बोला पर ? क्या समस्या है बताओ मुझे ।
लोमड़ी बोली महाराज , देखिए हम सबसे साफ़ पानी उपलब्ध कराएँगे पर इसके बदले में हम हर जानवर से कर लेंगे । मसलन हर जानवर को हमें माँस लाकर देना होगा जिसे हम लोमड़ियाँ वहीं बैठे-बैठे खाएँ । चूँकि  आप जंगल के राजा हैं इसलिए आपको प्रतिदिन हमें कुछ न देना होगा । हाँ पर कभी-कभी हमें हिरण का माँस खिला दिया करिएगा ।
शेर बोला ठीक है , तुम्हें जो कर लेना हो लो , पूरी छूट देता हूँ तुम्हें । पर मेरे शावकों को शुद्ध से शुद्ध पानी मिले बस ।
लोमड़ी ने कहा ऐसा ही होगा महाराज ।
फिर लोमड़ियों के दिन बहुर गए । लोमड़ियों के दल ने जंगल के हर नुक्कड़ पर पक्के गढ्डे बनाए । धीरे - धीरे जंगल में हर कच्चे गढ्डे के पास लगभग 10-10 पक्के गढ्डे बन गए । लोमड़ियों ने पक्के गढ्डों की बुराईयाँ करनी आरम्भ कर दी कि वहाँ का पानी मत पियो वो मछलियाँ आलसी हो गई हैं । हमारी नारंगी मछलियाँ अधिक श्रेष्ठ हैं । इसके अलावा लोमड़ियाँ अधिकतर कच्चे गढ्डों में मिट्टी और सड़े पत्ते भी डालने लगीं जिससे मछलियों के साफ़ करने पर भी पानी गन्दा ही रहे । इसका परिणाम ये हुआ कि धीरे - धीरे कच्चे गढ्डे से पानी पीने वाले बहुत कम हो गए । शेर ने भी मछलियों के चारे का सही प्रबन्ध न किया । अब जंगल पूरी तरह से लोमड़ियों के पक्के गढ्ढों पर निर्भर हो गया । जंगल के जानवर कहीं से भी माँस ला रहे थे पर लोमड़ियों को प्रसन्न कर रहे थे ।
ये सारा दृश्य बन्दरों से न देखा गया । उन्होंने सोचा कि इसके विरोध में कुछ करना पड़ेगा । पर बन्दरों को पता था कि अगर वो शेर से इस बारे में कुछ कहेंगे तो शेर उन पर आक्रमण भी कर सकता है । इसलिए वो सब हाथी राजा के पास गए । बन्दरों ने पूरा प्रकरण हाथी राजा को सुनाकर कहा कि अब आप ही कोई निर्णय करें । हाथी राजा बन्दरों के साथ शेर के पास चल दिया । जंगल में आग की तरह ये समाचार फ़ैल गया कि हाथी राजा शेर से बात करने जा रहे हैं तो लोमड़ियों सहित सभी जानवर शेर की गुफा की ओर चल दिए ।
हाथी के कद से शेर भी डरता था । केवल हाथी से ही वो सम्मान देकर बात करता था । उसने कहा अरे ! हाथी राजा आप आज यहाँ कैसे ?
हाथी ने कहा बन्दर मेरे पास एक समस्या लेकर आए हैं । मैं चाहता हूँ इसका निदान हो ।
शेर ने कहा समस्या बताइए ।
बन्दरों ने कहा शेर महाराज , आपकी सबसे बड़ी कौम बब्बर शेर ने ही जंगल के जानवरों की सुविधा के लिए जलाशय बनवाया था और मछलियाँ लाए थे । समय बीतने के साथ - साथ आपने जंगल में कई जगह गढ्ढे खुदवाकर उसमें मछलियों को डाल दिया । इससे पानी की गुणवत्ता में थोड़ी - सी कमी आई पर फिर भी सुविधा बहुत हुई । पर धीरे - धीरे आपके महामन्त्री ने इन मछलियों के चारे पर ध्यान देना बंद कर दिया । जिससे मछलियाँ कमजोर हो गईं । दूजे लोमड़ियों ने पक्के गढ्डे तो बनवा दिए । पर नांरगी मछलियों में वो बात नहीं जो सुनहरी मछलियों में है । इसलिए सुनहरी मछलियों के कच्चे गढ्डों को ही पुर्नजीवित करना चाहिए और लोमड़ियों द्वारा हो रहे कर के शोषण को रोकना चाहिए ।
शेर ने कहा पर सुनहरी मछलियाँ अपने काम में आलस दिखाने लगी थीं । इसीलिए लोमड़ियों को पक्के गढ्डे चलाने का अधिकार दिया गया और जंगल के जानवर कर देकर भी लोमड़ियों के पक्के गढ्डों से पानी पी रहे हैं । ये इस बात का प्रतीक है कि पक्के गढ्डों का पानी अच्छा है ।
ये सुनकर बूढ़े खरगोश को क्रोध आ गया और उसने कहा झूठ बोलते हो शेर , अगर सुनहरी मछलियों की आज दुर्दशा हुई है तो तुम्हारे कारण । तुमने भालुओं को मछलियों का चारा पूरी मात्रा में देने ही न दिया । लोमड़ियों के सिर पर तुमने हाथ रख दिया । अपने शावकों को पक्के गढ्डों से सबसे पहले पानी पिलाया जिससे सब जानवर उसी ओर खिंचने लगे । लोमड़ियों ने सुनहरी मछलियों के बारे में दुष्प्रचार किया , तुमने कुछ न किया । लोमड़ियों ने कच्चे गढ्डों में गंदगी फैलाई पर तुमने उन्हें कुछ कहने के बजाय मौन धारण कर लिया । धिक्कार है तुम जैसे शेरों पर ।
एक छोटे से खरगोश का रोद्ररूप देखकर शेर समझ गया कि जंगल के सभी जानवर विरोध में हैं । हाथी बोला देख रहे हो शेर , एक पिद्दा सा खरगोश भी तुम्हारी मुखालफत कर रहा है । कितना अनाचार फैला रखा है तुमने ।
शेर ने कहा पर मैं अब भी अपनी बात पर कायम हूँ , ये सुनहरी मछलियाँ कामचोर हो गई हैं । तभी सभी लोग लोमड़ियों के पक्के गढ्डों का पानी कर चुकाकर भी पी रहे हैं । मेरे क्या आपके बच्चे भी ।
हाथी इस बात पर झेंपा । बंदर ने कहा क्योंकि तुमने सुनहरी मछलियों के गढ्डों को इस लायक ही न छोड़ा कि कोई मजबूरी के अलावा वहाँ का पानी पिए । हाथी महाराज अगर आप शेर राजा के भालू सहित सभी सभासदों व उनके बच्चों को सुनहरी मछलियों वाले कच्चे गढ्डों से पानी पीने का आदेश दे दें तो ये अपने आप उसकी दशा सुधारेंगे । सुनहरी मछलियों में भी जोश आ जाएगा और वो अधिक काम करने लगेंगी ।
बंदर के इतना कहते ही जंगल के सभी समझदार जानवर चिल्लाने लगे - हाँ , हाँ ऐसा ही होना चाहिए । सभी के समर्थन को देखते हुए हाथी ने कहा तो फिर तय रहा कि अब सभी जानवर कच्चे गढ्डों से ही पानी पिएँगे चाहें वो मैं हूँ या स्वयं शेर । शेर तुम सबसे पहले सुनहरी मछलियों के गढ्डों को पक्का कराओगे और वो सारी सुविधाएँ जो तुम कच्चे गढ्डों के बजाय तुम नारंगी मछलियों के गढ्डों को उपलब्ध करा रहे हो , कच्चे गढ्डों में दोगे और जो भी सभासद अभी भी पक्के गढ्डों से ही पानी पिएगा उसे सजा के तौर पर कर के रूप में दिए जा रहे माँस के वजन के बराबर वजन का चारा कच्चे गढ्डों में डालना होगा । मैं इसके लिए तुम्हें एक महीने का समय दे रहा हूँ ।
ये सुनकर लोमड़ियों , शेर और उसके सभासदों को छोड़कर सभी जानवर प्रसन्नता से झूमने लगे । खासकर बंदर को तो सभी ने कंधों पर उठा लिया । खरगोश ने बंदरों को गाजर , गैंडे और कई अन्य जानवरों ने बंदरों को केले दिए । एक गुमनाम सा बंदर पल भर में ही हीरो बन गया ।
जब सब चले गए तो लोमड़ियों सहित शेर के सभी सभासद एकत्र हुए । भालू बोला ये क्या किया महाराज ? आपने पंजा मारकर वहीं के वहीं बंदर को मार क्यों न दिया । अब तो समस्या हो जाएगी । हमें और हमारे बच्चों को अब कहाँ आदत रह गई है कच्चे गढ्डों का पानी पीने की ।
शेर ने कहा मैं , बंदर को मार तो देता पर हाथी के आगे मैं भी कुछ नहीं बोल सकता । पर समस्या तो वाकई हो गई है , मेरे शावक तो सबसे नाजुक हैं वो कच्चे गढ्डों का पानी पिएँगे तो मर जाएँगे । चलो भालू अब सब कुछ सही करो कच्चे गढ्डों में उन्हें रहने लायक बनाओ ।
तभी लोमड़ी बोली अरे ! महाराज , ये आप क्या कर रहे हैं ? क्या एक बंदर से मात खाएँगे ? आपको शोभा देगा क्या ?
शेर ने कहा और कर भी क्या सकते हैं ? ये बंदर तो निडर हो गया है और निडरता ऐसा जानवर है जिससे शेर भी डरते हैं ।
लोमड़ी ने कहा क्या शेर महाराज आप भी न , अरे ! लोमड़ियों के होते कैसी चिंता । माना कि बंदर आपसे नहीं डरता , हाथी से भी नहीं डरता तभी निडर होकर उसके पास गया । पर बंदर भी एक प्राणी से डरते हैं जिसे कंगारू कहते हैं । आप कुछ मत करिए सब मुझ पर छोड़ दीजिए । मैं चार कोस दूर के जंगल से कंगारू लाऊँगा या तो कंगारू के आने से सारे बंदर जंगल छोड़कर भाग जाएँगे या वो कंगारू जब हाथी के सामने बोलेगा न तो ये बंदर दुम दबाकर बैठे रहेंगे ।
शेर ने कहा वाह ! बहुत ही बढ़िया योजना है । पर क्या कंगारू आएगा ?
लोमड़ी ने कहा आएगा महाराज अवश्य आएगा । लेकिन.....
शेर ने कहा लेकिन ?
लोमड़ी ने कहा लेकिन आपको भी बदले में मेरे लिए कुछ करना पड़ेगा ।
शेर ने कहा हाँ बताओ मुझे क्या करना होगा ? अपने शावकों के लिए मैं कुछ भी करूँगा ।
लोमड़ी ने कहा अबकि मुझे आप किसी शेर का माँस लाकर दो ,बहुत खा लिया सड़े हुए जानवरों का माँस । हम भी तो देखें कि जो शेर सबका माँस खाते हैं उनका स्वयं का माँस कैसा होता है ।
शेर बोला ठीक है , मैं वो भी लाकर दूँगा । तुम बस कंगारू को ले आना ।
कहकर शेर कुत्ते की तरह पूँछ हिलाते हुए जंगल में निकल गया किसी दूसरे शेर के शिकार पर । इधर लोमड़ियों के सरदार ने कहा देखा इसे कहते हैं चालाकी जो हमें जन्म से मिली है । हम सुनहरी मछलियों की दशा सुधरने भी न देंगे , शेर को अपने इशारों पर नचाएँगे और शेर का माँस भी खाएँगे ।
शेर के माँस खाने की बात सुनकर ही सभी लोमड़ियों के मुँह से लार टपकने लगी ।


लेखक
प्रांजल सक्सेना 
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