शनिवार, 24 नवंबर 2018

गाँव वाला अंग्रेजी स्कूल : डाउनलोड गाइड

गाँव  वाला  अंग्रेजी  स्कूल  पढ़ने  के  लिए  सबसे  पहले  आपके  मोबाइल  में  दो  सॉफ्टवेयर  होने  चाहिए।  
1. अमेजन- डाउनलोड  करने  के  लिए  यहाँ  क्लिक  करें-

2. किंडल- डाउनलोड  करने  के  लिए  यहाँ  क्लिक  करें-

यदि  आपके  मोबाइल  में  स्पेस  कम  है  तो  किंडल  के  बजाय  किंडल  लाइट  डाउनलोड  करने  के  लिए  यहाँ  क्लिक  करें-

अब  गाँव  वाला  अंग्रेजी  स्कूल  डाउनलोड  करने  की  प्रक्रिया  चरणबद्ध  रूप  से  निम्न  प्रकार  है-

चरण-1-  सबसे  पहले  अमेजन  एप्प  को  खोलेंगे  तो  आपको  निम्न  पृष्ठ  दिखायी  देगा।  यदि  आपका  अमेजन  अकाउंट  है  तो  लॉगिन  कीजिए।  यदि  नहीं  है  तो  Create an account  पर  जाइए।    
  


 
चरण-2-  Create an account  पर  क्लिक  करते  ही  आपको  निम्न  पृष्ठ  दिखायी  देगा।  यहाँ  आपको  केवल  नाम  और   मोबाइल  नम्बर  लिखकर  पासवर्ड  बनाना  है।

चरण-3-  अकाउंट  बनाकर  ऊपर  सर्च  बॉक्स  में  Pranjal Saxena  या  English school of village  लिखकर  सर्च  कीजिए।

चरण-4-  अब  आपको  निम्न  पृष्ठ  दिखायी  देगा।  हरे  चतुर्भुज  में  दिख  रहे  पुस्तक  लिंक  पर  क्लिक  कीजिए।   

चरण-5-  अब  आपको  तीन विकल्प  दिखायी  देंगे।  Read for free,  Buy now.  और  Download Sample
Download Sample  से  आप  इस  पुस्तक  के  30  पृष्ठ  डाउनलोड  करके  पढ़  सकते  हैं।  यदि  इस  Sample  से  पुस्तक  में  आपकी  रूचि  जाग्रत  हो  पुस्तक  खरीद  सकते  हैं  अन्यथा  नहीं।

चरण-6-  यदि  आप  Buy now  का  विकल्प  चुनते  हैं  तो  आप  अपने  डेबिट  कार्ड  से  99  रूपए  का  भुगतान  करके  इस  पुस्तक  को  खरीद  सकते  हैं।  ऐसे  में  आप  एक  वर्ष  बाद  भी  इस  पुस्तक  को  पढ़ना  चाहेंगे  तो  किंडल  पर  पढ़  सकते  हैं।  चाहें  आपके  पास  किंडल  अनलिमिटेड  हो  या  न  हो।

चरण-7-  Read for free  में  आपको  किंडल  अनलिमिटेड  की  सदस्यता  लेनी  पड़ेगी।  किंडल  अनलिमिटेड  की  सदस्यता  लगभग  199  में  एक  माह  की  है।  किंडल  अनलिमिटेड  लेने  के  बाद  आप  एक  महीने  में  किंडल  अनलिमिटेड  पर  उपलब्ध  हजारों  पुस्तकों  में  से  कोई  भी  पढ़  सकते  हैं।  किंडल  अनलिमिटेड  सदस्यता  लेने  का  अर्थ  है  कि  मानो  आपने  किसी  पुस्तकालय  की  सदस्यता  ले  ली  हो  जिससे  आप  जब  चाहें  जो  भी  पुस्तक  पढ़  सकते  हैं  लेकिन  केवल  तभी  तक  जब  तक  आपके  पास  किंडल  अनलिमिटेड  की  सदस्यता  है।  यदि  आप  इस  विकल्प  के  अंतर्गत  गाँव  वाला  अंग्रेजी  स्कूल  पढ़ना  चाहते  हैं  और  यदि  एक  माह  की  सदस्यता  ले  रहे  हैं  तो  एक  माह  तक  ही  ये  पुस्तक  आपके  पास  रहेगी। 

जैसे  ही  आप  Read for free  को  क्लिक  करते  हैं  निम्न  पृष्ठ  खुलेगा।  जहाँ  आप  बेहिचक  Start  your 30-day free trial  को  क्लिक  कीजिए। 

चरण-8-  अब  आपको  पुनः  दो  विकल्प  दिखायी  देंगे।  पहला  Free Trial(Auto renewal)  यदि  आप  इस  विकल्प  को  चुनते  हैं  तो  आपके  पास  ICICI  बैंक  का  डेबिट  कार्ड  होना  चाहिए।  इसमें  आपके  मात्र  2  रूपए  कटेंगे  जो  बाद  में  वापिस  भी  आ  जाएँगे  लेकिन  उसके  बाद  प्रतिमाह  किंडल  अनलिमिटेड  का  Auto renewal  होता  रहेगा।  यदि  आप  इस  विकल्प  को  नहीं  चुनना  चाहते  हैं  तो  चरण-9  पर  जाइए।

चरण-9-  जब  आप  उपरोक्त  पृष्ठ  में  Show other plans  को  क्लिक  करते  हैं  तो  निम्न  पृष्ठ  खुलेगा।  अब  आप  अपनी  इच्छानुसार  एक  माह,  छः  माह  या  बारह  माह  के  प्लान  का  चयन  कर  सकते  हैं।     

चरण-10-  जो  भी  प्लान  आप  चुनें  उसका  पेमेंट  करने  के  लिए  आप  अपनी  सुविधानुसार  क्रेडिट  कार्ड,  डेबिट  कार्ड  या  नेट  बैंकिंग  का  प्रयोग  कर  सकते  हैं।

चरण-11-  अब  आपको  कुछ  ऐसा  पृष्ठ  दिखायी  देगा। 

चरण-12-  उपरोक्त  पृष्ठ  पर  Read for free  को  क्लिक  करते  ही  निम्न  पृष्ठ  खुलेगा। 

चरण-13-  Read now  पर  क्लिक  करते  ही  किंडल  एप्प  खुल  जाएगा  और  निम्न  पृष्ठ  दिखायी  देगा।  जिस  पर  DOWNLOAD  क्लिक  करते  ही  गाँव  वाला  अंग्रेजी  स्कूल  डाउनलोड  हो  जाएगी।

चरण-14-  अब  READ NOW  को  क्लिक  करते  ही  आप  पुस्तक  पढ़  सकते  हैं।   

चरण-15-  यदि  चरण-13  में  बताये  गये  अनुसार  किंडल  एप्प  नहीं  खुलता  है  तो  किंडल  एप्प  पर  जाकर  ऊपर  सर्च  बॉक्स  में  Pranjal Saxena  या  English school of village  लिखकर  सर्च  कीजिए  और  चरण-13  व  14  को  अपनाइए।

निवेदनः- कृपया  पुस्तक  पढ़ने  के  बाद  अमेजन  पर  इस  पुस्तक  का  रिव्यू  अवश्य  लिखें।
धन्यवाद।

शनिवार, 7 जुलाई 2018

अथश्री चप्पल व्यथा

ज्ञापालन  को  बचपन  में  ही  घोंटकर  पी  चुके  भोलाराम  जबसे  मास्टर  बने  थे  तभी  से  विभागीय  आदेशों  को  सिरमाथे  लगाकर  काम  करते  थे।  मास्टर  भोलाराम  के  पढ़ाने  के  चर्चे  दूर-दूर  तक  थे।  उनके  मन-मस्तिष्क  में  दिन  भर  अपने  विद्यार्थियों  के  लिए  उत्तम  से  उत्तम  शिक्षण  विधियों  का  मनन  चलता  रहता  था।  इसीलिए  वो  अधिकारियों  की  दृष्टि  में  कर्तव्यकीट  और  मित्रों  की  दृष्टि  में  नीरस  शिरोमणि  की  उपाधि  पा  चुके  थे।  यूँ  तो  डॉक्टर  और  इंजीनियर  की  थर्ड  क्लास  डिग्री  भी  ड्राइंग  रुम  की  शान  हुआ  करते  हैं  परंतु  शिक्षण  में  अपनी  रुचि  के  कारण  भोलाराम  ने  शिक्षण  प्रशिक्षण  में  सर्वोच्च  स्थान  प्राप्त  किया  था।  इसलिए  उन्होंने  अपनी  डिग्री  की  रंगीन  छायाप्रति  को  जड़वाकर  ड्राइंग  रूम  में  टाँगा  हुआ  था  और  विशेष  बात  ये  थी  कि  इसके  लिए  उनकी  प्रशंसा  आज  तक  किसी  ने  नहीं  की  थी।  परन्तु  उनके  दिन  का  आरम्भ  ड्राइंग  रूम  में  उस  छायाप्रति  को  निहारकर  समाचार-पत्र  पढ़ने  से  ही  होता  था।
समाचार-पत्र  मास्टर  भोलाराम  के  जीवन  में  कोई  अच्छा  समाचार  लेकर  आए    आए  लेकिन  एक    एक  पनौती  लेकर  अवश्य  आता  था।  एक  सुबह  जब  भोलाराम  ने  समाचार-पत्र  खोला  तो  पाया  कि  बड़े  साहब  ने  कहा  है  कि  बढ़िया  मास्टर  की  पहचान  दाढ़ी  बनाने  और  जूते  पहनने  से  होगी।  समाचार  पढ़कर  मास्टर  भोलाराम  ने  ड्राइंग  रूम  में  टँगी  डिग्री  पर  दृष्टि  डाली  तो  पाया  कि  छिपकली  उस  डिग्री  पर  हग  रही  थी।  मास्टरजी  ने  पुराने  कच्छे  के  बन  चुके  पोंछे  से  उस  मल  को  हटाया  और  विद्यालय  के  लिए  तैयार  होने  चले  गये।  कुर्ता  पायजामा  पहनने  के  बाद  जब  पैरों  के  लिए  कुछ  पहनने  की  बारी  आयी  तो  भोलाराम  विचारमग्न  हो  गये।  चूँकि  उनके  विद्यालय  का  मार्ग  बारहमासी  कीचड़  भरा  रहता  था।  इसलिए  वो  चप्पल  पहनकर  ही  जाया  करते  थे  लेकिन  समाचार  पढ़कर  वो  दुविधा  में  थे  कि  आज  क्या  पहनें?
एक  बार  को  सोचा  कि  चप्पल  ही  पहन  लें  क्योंकि  अभी  विभागीय  आदेश  तो  आया  नहीं  है  केवल  अख़बरबाजी  हुई  है।  फिर  सोचा  कि  इंटरनेट  क्रांति  के  जमाने  में  आदेश  आने  में  कितनी  देर  लगेगी।  पता  चला  कि  दस  बजे  से  आदेश  लागू  हो  गया  तो  चप्पल  पहनना  आदेश  की  अवहेलना  हो  जाएगा।  फिर  सोचा  कि  बच्चों  की  भाँति  अक्कड़-बक्कड़  करके  ही  जूता  या  चप्पल  में  से  एक  चुन  लें  लेकिन  अक्कड़-बक्कड़  पूरा  याद    होने  से  विवेक  का  ही  सहारा  लेना  पड़ा  और  जूता  पहनकर  ही  चल  पड़े।   
कीचड़  में  पैर  सनाए  बिना  विद्यालय  तक  पहुँचना  एक  वीरता  का  कार्य  होता  इसलिए  बस  में  बैठकर  मन  ही  मन  हनुमान  चालीसा  दोहराते  गये।  बस  से  उतरकर  दो  किलोमीटर  के  पैदल  मार्ग  पर  भोलाराम  चलने  लगे।  हाल  ही  में  हुई  बारिश  से  खड़ंजे  के  धुल  चुके  मेकअप  ने  सड़क  की  वास्तविक  दशा  को  सामने  ला  दिया  था।   कहीं  बीच  में  उठे  खड़ंजे  पर  तो  कहीं  किनारे  में  पड़ी  ईंटों  पर  कूद-कूदकर  अपने  जूते  को  भिगोए  बिना  भोलाराम  डेढ़  किलोमीटर  पार  कर  लिए  थे।  लेकिन  बारिश  में  पहले  से  ही  भीगे  हुए  मार्ग  पर  पोशाकी  के  घर  से  बहते  पानी  की  फिसलन  को  पार  करना  किसी  समुंदर  को  छेद  वाली  नाव  से  पार  करने  के  बराबर  था।  जब  मास्टरजी  चप्पल  पहनकर  आते  थे  तो  बड़े  इत्मीनान  से  कीचड़  में  पैर  जाने  देते  थे  और  विद्यालय  जाकर  पैर  धो  लिया  करते  थे।  परन्तु  आज  जूता  पहने  थे  तो  और  ग्रामीणों  की  भाँति  किनारे  पड़ी  ईंटों  पर  कलाबाजी  करके  निकलने  का  प्रयास  करने  लगे।  लेकिन  भारी  शरीर  के  भोलाराम  के  पैरों  को  ये  कलाबाजी  पसन्द  नहीं  आयी  और  उनका  सन्तुलन  बिगड़ने  लगा।  गिरने  से  बचने  को  उन्होंने  किनारे  की  बल्ली  पकड़ने  का  प्रयास  किया।  लेकिन  पोशाकी  के  चबूतरे  पर  अपने  को  गिरने  से  बचा    सके।  जूता  भी  कीचड़  में  सन  गया  ऊपर  से  ढीली  हो  चुकी  बल्ली  भी  पैर  पर  जोर  से  पड़ी।   
इस  घटना  को  देख  रहे  बादाम  और  रमुआ  ने  मुँह  फेर  लिया  क्योंकि  वो  मास्टरजी  को  उठाने  आते  तो  मास्टरजी  उठने  से  पहले  उनसे  ये  पूछ  लेते  कि  अपने  बच्चों  को  विद्यालय  क्यों  नहीं  भेजते।  बंसी  भी  सिर  नीचे  डाले  निकल  गया  क्योंकि  वो  उठाने  जाता  तो  उससे  विद्यालय  की  छत  पर  रखी  पुआल  को  हटाने  को  टोका  जाता।  कुल  मिलाकर  जिन  बच्चों  का  भविष्य  बनाने  मास्टर  जी  गाँव  में  जाते  थे  वो  ही  मास्टरजी  के  वर्तमान  से  बचना  चाह  रहे  थे।  समझ  नहीं  आ  रहा  था  कि  मास्टरजी  गिरे  थे  या  फिर  औरों  की  मनुष्यता। 
विद्यालय  पहुँचने  में  एक  क्षण  की  भी  देरी    हो  जाए  इसलिए  मास्टरजी  चोट  लगे  पैर  से  ही  लंगड़ाते  हुए  विद्यालय  पहुँच  गये।  वहाँ  जाकर  शिक्षण  कार्य  भी  पूरी  तल्लीनता  से  किया।  लेकिन  इसी  तल्लीनता  ने  उनके  पैर  को  और  सुजा  दिया  लौटते  समय  जूते  का  फीता  निकाला  तब  जाकर  बड़ी  मुश्किल  से  पैर  जूते  में  घुस  पाया।  लंगड़ाते  हुए  मुख्य  मार्ग  तक  पहुँचे  तो  संकुल  प्रभारी  मिल  गये। 
संकुल  प्रभारी  ने  लंगड़ाने  का  कारण  पूछा  तो  भोलाराम  ने  पूरी  व्यथा  सुनाई।  कारण  जानकर  सुंकल  प्रभारी  ने  कहा – “अरे!  यार  तुम  भी  इतनी  बरसात  में  काहे    गए।  छुट्टी  ले  लेते,  किसी    किसी  से  मैं  विद्यालय  तो  खुलवा  ही  देता।
भोलाराम  ने  कहा – “और  कोई  विद्यालय  खोलता  तो  उपस्थिति  कम  हो  जाती  इसलिए  मैं  ही    गया।  वैसे  डिप्टी  साहब  आज  मिलेंगे  क्या?  पैर  सूज  गया  है,  जूता  नहीं  पहन  पा  रहा  हूँ।  उनसे  4-5  दिन  चप्पल  पहनकर  आने  की  अनुमति  लेनी  है।
संकुल  प्रभारी  ने  कहा – “हाँ  साहब  बैठे  हुए  हैं  मैं  भी  सूचना  देने  जा  रहा  हूँ  चलो  बैठो  गाड़ी  पर।
ब्लॉक  तक  पहुँचने  में  सूजा  हुआ  पैर  गाड़ी  पर  लटका  होने  से  और  अधिक  सूज  गया  था।  मास्टर  भोलाराम  ने  चपरासी  के  माध्यम  से  डिप्टी  साहब  से  मिलने  के  लिए  अरज  भिजवाई।  लेकिन  रूखे  मास्टर  से  मिलने  में  कोई  रुचि    होने  के  कारण  सारे  काम  निपटने  के  बाद   ही  साहब  भोलाराम  से  मिले।  इतनी  देर  में  पैर  ने  जूते  में  आने  से  मना  कर  दिया  था।  भोलाराम  ने  एक  पैर  में  जूता  पहने  और  एक  पैर  में  केवल  मोजा  पहनकर  कक्ष  में  प्रवेश  किया। 
भोलाराम  की  ऐसी  दशा  देखकर  डिप्टी  साहब  ने  कड़क  आवाज  में  कहा – “भोलाराम,  अधिकारियों  की  खिलाफत  पर  उतर  आए  हो  क्या?”
डाँट  से  सकपकाए  भोलाराम  ने  कहा – “नहीं  साहब,  हम  तो  सारे  आदेश  मानते  हैं।  हमारे  विद्यालय  में  तो  आयरन  की  गोली  वितरण  की  पंजिका  भी  समय  से  भरी  जाती  है।
डिप्टी  साहब  ने  कहा – “तो  फिर  एक  पैर  में  जूता    पहनकर  क्या  साबित  करना  चाह  रहे  हो?  अधिकारियों  के  आदेश  को  आधा-अधूरा  मानोगे  क्या?”
भोलाराम  ने  कहा – “नहीं  साहब  ये  तो  पैर  पर  बल्ली  गिर  गयी  थी  तो  पैर  इतना  सूज  गया  है  कि  जूते  में  समा  ही    रहा।  इसीलिए  तो  प्रार्थना-पत्र  लेकर  आए  हैं  कि  आप  5  दिन  तक  चप्पल  पहनकर  विद्यालय  जाने  की  अनुमति  दे  दें।
डिप्टी  साहब  ने  कहा – “भोलाराम  ये  नौकरी  है  नौकरीलोग  इस  नौकरी  को  तरस  रहे  हैं  और  तुम  होकि  बहानेबाजी  में  दिमाग  लगा  रहे  हो।  अरे!  अगर  पैर  सूज  गया  है  तो  सूजे  पैर  में  एक  नम्बर  बड़ा  जूता  पहनो।  लेकिन  आदेशों  की  अवहेलना  तो  मत  करो।
भोलाराम  ने  कहा – “लेकिन  साहब  ऐसे  तो  बड़ा  अजीब  लगेगा,  एक  पैर  में  8  नम्बर  का  जूता  और  दूसरे  में  9  नम्बर  का।  विद्यालय  में  बच्चे  भी  हँसेंगे।
डिप्टी  साहब  ने  कहा – “नौकरी  का  नियम  जान  लो  और  नियम  ये  है  कि  विभागीय  आदेशों  को  गम्भीरता  से  लेना  आवश्यक  होता  है  चाहें  उस  आदेश  के  पालन  में  दुनिया  कितनी  भी  हँसे।
पहले  से  ही  सहमे  हुए  मास्टरजी  को  साहब  ने  और  हड़का  दिया  था।  बड़ी  विनम्रता  से  भोलाराम  ने  कहा – “साहब  केवल  हँसने  की  ही  बात  नहीं  है  गर्मी  का  मौसम  है  इस  पैर  पर  गर्म  पट्टी  बँधेगी  तो  जूते  में  पैर  भवक  जाएगा  जिससे  पस  भी  पड़  सकता  है।
साहब  ने  कहा – “तो  गर्म  पट्टी  की  क्या  जरूरत  है  गर्म  मोजा  पहनो  और  ऊपर  से  जूता।  उसी  से  सूजन  ठीक  हो  जाएगी।  इतना  भी  दिमाग  नहीं  लगा  पा  रहे  हो  तो  बच्चों  को  विज्ञान  क्या  समझाते  होगे?”
पास  बैठे  बाबू  से  कहा – “इनका  स्पष्टीकरण  टाइप  कर  दो  कि  विज्ञान  के  शिक्षण  में  रुचि  नहीं  ली  जा  रही।
भोलाराम  ने  हाथ  जोड़कर  कहा – “अरे!  नहीं,  नहीं  साहब  मैं  तो  बच्चों  को  विज्ञान  किट  से  भी  पढ़ाता  हूँ।  लेकिन  ये  गर्म  मोजे  की  बात  मैं  मान  सकता  हूँ,  डॉक्टर  तो  नहीं  मानेगा  न।
साहब  ने  कहा – “डॉक्टर  को  डॉक्टरी  करनी  है  और  तुमको  मास्टरी।  इसलिए  डॉक्टर  की  मत  सुनो  और  अपनी  नौकरी  बचाओ।
भोलाराम  ने  कहा – “साहब  पैर  बचा  रहेगा  तब  नौकरी  कर  पाएँगे  न।  आप  कृपा  कर  दीजिए  और  5  दिन  चप्पल  पहनकर  आने  की  अनुमति  दे  दीजिए।
विनम्रता  में  डूबे  जा  रहे  भोलाराम  पर  डिप्टी  साहब  को  कुछ  दया    गयी  तो  थोड़ा  दया  दिखाते  हुए  बोले – “अनुमति  कैसे  दे  दूँ?  अभी  तक  कोई  विभागीय  आदेश  नहीं  आया  केवल  अख़बरबाजी  हुई  है।  निर्देशों  के  अभाव  में  मुझे  स्वयं  ही  नहीं  पता  है  कि  जूते  पहनने  के  आदेश  में  ढील  की  अनुमति  दी  भी  जा  सकती  है  कि  नहीं  और  दी  जा  सकती  है  तो  कितने  दिन  की  दी  जा  सकती  है।
जो  आदेश  अभी  अस्तित्व  में  आया  ही  नहीं  था  उसके  अनुपालन  और  अवमानना  पर  दोनों  अपना-अपना  समय  खराब  कर  रहे  थे  क्योंकि  मामला  नौकरी  बचाने  का  जो  था।
भोलाराम  ने  कहा – “जब  विभागीय  आदेश  नहीं  आया  साहब  तब  तो  मैं  चप्पल  पहनकर  जा  ही  सकता  हूँ।  जब  आदेश    जाएगा  तब  आपसे  अनुमति  ले  लूँगा।
डिप्टी  साहब  ने  कहा – “कतई  नहीं,  आदेश  नहीं  आया  तो  इसका  ये  मतलब  थोड़े  ही  कि  उच्चाधिकारी  के  बयान  का  कोई  महत्व  नहीं  है।  उन्होंने  पेपर  में  दे  दिया  है  तो  ये  क्या  कम  पत्थर  की  लकीर  है।  चप्पल  पहनना  यानि  कि  विभाग  की  छवि  का  धूमिल  होना  होगा।
भोलाराम  के  लिए  ये  बड़ी  ही  असमंजस  की  स्थिति  थी।  हर  बार  की  भाँति  अदृश्य  आदेश  के  पालन  की  अनिवार्यता  भोलाराम  के  सूजे  हुए  पैर  को  और  सुजा  रही  थी।  भोलाराम  ने  अंतिम  प्रयास  किया – “साहब  मजबूरी  है  इसीलिए  आपसे  अनुमति  माँग  रहे  हैं।  आज  अध्यापक  की  छवि  को  ध्यान  में  रखते  हुए  जूते  हाथ  में  नहीं  लिए  थे।  अगली  बार  से  जूते  हाथ  में  लेकर  कीचड़  से  निकला  करेंगे  तो  फिसलने  की  बात  ही  खत्म  हो  जाएगी।  आज  तो  जूते  को  गंदा  होने  से  बचाने  के  चक्कर  में  चोट  लगवा  बैठे।
साहब  ने  कहा – “देखो  भोलाराम  मजबूरियाँ  जीवन  का  हिस्सा  हैं।  ये  तो  रहेंगी  ही  रहेंगी।  अभी  कल  को  सावन  में  तुम  दाढ़ी  बढ़ाने  की  अनुमति  माँगोगे।  तो  मेरी  मति  तो  अनुमति  देते-देते  ही  खराब  हो  जाएगी।  इसलिए  स्मार्ट  टीचर  बनो।  देखो  देश  स्मार्ट  हो  रहा  है।  सेल्समैन  घनी  दोपहरी  में  भी  टाई  लगाकर   सामान  बेचते  हैं  और  स्मार्ट  कहलाते  हैं।  दिन  में  भी  गाड़ियों  की  बत्ती  जलाने  के  आदेश  से  स्मार्टनेस  और  बढ़ी  है।  ऐसे  ही  जूते  पहनना  भी  स्मार्ट  होने  का  मानक  हो  गया  है।  तुम  विभाग  के  स्मार्ट  होने  के  लिए  थोड़ा  कष्ट  नहीं  उठा  सकते  हो।  वास्तव  में  तुम  जैसों  के  कारण  ही  पूरी  मास्टर  जाति  बदनाम  है।
मास्टर  भोलाराम  समझ  गये  थे  कि  डिप्टी  साहब  ने  अधिकारी  बनने  के  लिए  तर्कशक्ति  की  बहुत  तैयारी  की  होगी  जोकि  जीवनपर्यंत  उनके  काम  आएगी।  इसलिए  उनसे  तर्क  करना  बेकार  है।  अपने  प्रार्थना-पत्र  को  बैग  में  डालकर  भोलाराम  वापिस  घर  को  चले  आए  और  साहब  के  कहे  अनुसार  गर्म  मोजा  भी  ले  आए  ताकि  गर्म  मोजे  के  साथ  जूता  पहनकर  सूजन  कम  कर  सकें। 
मास्टर  भोलाराम  ने  ड्राइंग  रूम  में  अब  जूते  भी  रख  लिए  थे।  अगले  दिन  पुनः  छिपकली  डिग्री  के  ऊपर  बैठ  गयी  थी  भोलाराम  ने  उसे  भगाया  तो  वो  उनकी  शिक्षण  विधियों  की  पुस्तक  पर  जाकर  बैठ  गयी  और  हग  दिया।  वहीं  जूतों  पर  छछुंदर  ने  हग  दिया  था।  भोलाराम  कभी  पुस्तक  देखते  तो  कभी  जूते।  अंततः  उन्होंने  स्मार्टनेस  को  प्राथमिकता  देते  हुए  पुस्तक  छोड़कर  पहले  जूते  साफ  किए।  सम्भवतया  उनकी  मनोदशा  कुछ  ऐसी  थी

जूता,   पुस्तक  दोऊ  पड़े,  किसको  साफ  कराए,

बलिहारी  जूतो  आपको,   मोए  स्मार्ट  दियो  बनाए।
लेखक
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