रविवार, 31 मई 2015

इश्क उवाच


दुश्मन है ये जमाना , मुझको बड़ा ही उकसाता है ,
मेरे मासूम सा दिल भी , इनके कहे में बहक जाता है ।
ये खाकसार बड़ी मुश्किल से तो इक शेर लिखा पाता है ,
जो बीवी को पचता नहीं महबूबा के दिल में उतर जाता है ।
शाम को थका-हारा आदमी दरवाजा तो जरूर खटखटाएगा ,
बीवी दरवाजा न खोलेगी तो पड़ोसन के घर घुस जाएगा ।
शायर बन जाना मेरे आशिक होने की निशानी है ,
पर मोहब्बत करूँ भी कैसे बेगम बड़ी सयानी है ।
जमाने से छुप-छुपकर हम उनसे मिला करते हैं ,
बेगम का कम डर है उसके भाईयों से डरते हैं ।
बेगम तक ये गजल न पहुँचे ये आपकी है जिम्मेदारी ,
अब आपके ही हाथ में है मेरे सिर पर जूतम-पैजारी ।


रचनाकार
प्रांजल सक्सेना 
 कच्ची पोई ब्लॉग पर रचनाएँ पढ़ने के लिए क्लिक करें-  
कच्ची पोई ब्लॉग 
 गणितन ब्लॉग पर रचनाएँ पढ़ने के लिए क्लिक करें- 
गणितन ब्लॉग 
कच्ची पोई फेसबुक पेज को लाइक करने के लिए क्लिक करें-  
कच्ची पोई फेसबुक पेज 
गणितन फेसबुक पेज को लाइक करने के लिए क्लिक करें-   
गणितन फेसबुक पेज 



शुक्रवार, 29 मई 2015

वो सड़क के राजा

धरती माँ की गोद में , बेफ्रिक सो जाया करते हैं ,
नीले आसमान को , अपनी छत बताया करते हैं ।

पेट की आग को , आँसुओं से बुझाया करते हैं ,
फ़टे कपड़ों को लपेट , इज्जत बचाया करते हैं ।

एक रूपए के बदले , लाखों दुआएँ दिया करते हैं ,
इन दिलवालों को लोग , गरीब कहा करते हैं ।

एक ही रोटी को बाँटकर , गुजर किया करते हैं ,
फुटपाथ पर रहने वाले , रिश्ते निभाया करते हैं ।

हम तेज हवा में भी , घर में दुबक जाया करते हैं ,
वो तूफानी बारिश में भी , जमकर नहाया करते हैं ।

क्षुद्र दुःख का कारण भी हम , भगवान को बताया करते हैं ,
वो अपार दुःख में भी , भगवान के नाम से कमाया करते हैं ।

कटोरे में सिक्के की खनक से , हँस जाया करते हैं ,
मिलेगा भरपेट खाना , ये सपने सजाया करते हैं ।

दौलत नहीं है फिर भी , लुट जाया करते हैं ,
कीमती जान पर कुछ , गाडी रौंदाया करते हैं।


रचनाकार
प्रांजल सक्सेना 
 कच्ची पोई ब्लॉग पर रचनाएँ पढ़ने के लिए क्लिक करें-  
कच्ची पोई ब्लॉग 
 गणितन ब्लॉग पर रचनाएँ पढ़ने के लिए क्लिक करें- 
गणितन ब्लॉग 
कच्ची पोई फेसबुक पेज को लाइक करने के लिए क्लिक करें-  
कच्ची पोई फेसबुक पेज 
गणितन फेसबुक पेज को लाइक करने के लिए क्लिक करें-   
गणितन फेसबुक पेज 

गुरुवार, 28 मई 2015

अंधस्वामीभक्त कौवा

एक बार एक जंगल था । उस जंगल में बहेलियों का बड़ा आतंक था । सारे पक्षी बड़े भयभीत रहते थे । पर उस जंगल में एक बहुत ही सुंदर आम का वृक्ष था । उस वृक्ष पर बड़े ही मीठे आम हुआ करते थे । एक बार 5 कौवों का एक झुण्ड उड़ता हुआ उस वृक्ष पर पहुँचा । उन सभी ने वृक्ष के आमों को चखकर देखा। उन्हें एहसास हुआ कि इससे मीठे आम उन्होंने न खाए होंगे । कौवों ने निर्णय लिया कि अब इसी पेड़ पर बसेरा बनाएँगे ।

तभी उनमें से एक कौवा बोला बसेरा तो बना लोगे पर सुना है कि इस जंगल में बहेलिए पक्षियों को चुन-चुनकर मारते हैं ।
दूसरे ने कहा   एकता में बड़ी शक्ति होती है । जब भी कोई बहेलिया आएगा तो हम सब एकत्र  होकर उस पर धावा बोल देंगे । फिर हममें बहेलियों का आतंक नहीं होगा बल्कि बहेलियों में हमारा आतंक होगा ।
सब इस बात से सहमत थे । फिर उन्होंने उस पेड़ पर रहना आरम्भ कर दिया । वे उस पेड़ पर मजे से रहते , मजे से आम खाते और बाकि समय आकाश में खूब कुलांचे उड़ते । तभी एक दिन उस जंगल में एक बहेलिया आया । बड़ी-बड़ी शैतान सी आँखें , हाथों में तीर-कमान लिए दबे पाँव वो पेड़ की और बढ़ने लगा । कौवों ने उसे आते देख लिया और सतर्क हो गए । बहेलिए ने तीर को कमान पर चढ़ाया ही था कि कौवों ने उस पर आक्रमण कर दिया । किसी ने उसकी टाँग में काटा तो किसी ने कान काट खाया । एक कौवे ने तो आँख ही फोड़ दी बहेलिए की । नतीजतन बहेलिया सिर पर पैर रखकर भागा । कौवों को ये देख बड़ी प्रसन्नता हुई । उन्होंने काँव-काँव करके आपस में खूब ख़ुशी बाँटी । फिर ये सिलसिला चल पड़ा जब भी कोई बहेलिया शिकार को आता पाँचों कौवे मिलकर उसे भगा देते । सबमें आपस में बड़ा प्रेम था । पर एक कौवा था उनमें जिसके पर थोड़े भूरे थे । वो अपने को औरों से अधिक सुंदर और बुद्धिमान मानता था । पूरी तरह से काले न होने का घमण्ड था उसे । हर बार जब भी बहेलिया को सब मिलकर भगाते तो वो सबसे कहता देखो मैंने कितना अच्छा वार किया न । अपनी ही प्रशंसा वो स्वयं करता था । बाकि कौवे सज्जनता में उससे कुछ न कहते थे । एक बार कौवे आम खाकर सो रहे थे । पर भूरे पर वाले कौवे को नींद न आ रही थी । उसने सोचा क्या करूँ , क्या करूँ । फिर अचानक से उस के मन में विचार आया कि क्यों न जंगल की सैर की जाए । सो वो उठा और चुपके से पेड़ से उड़ गया । उड़ते-उड़ते उसे एक मोटा-तगड़ा सा बाज मिला । बाज को देख कौवा विपरीत दिशा में उड़कर  भागने लगा ।
बाज ने कहा अरे रुको तो ।
कौवे ने कहा नहीं मैं नहीं रुकूँगा तुम मुझे खा जाओगे ।
बाज ने कहा नहीं मैं तुम्हें नहीं खाऊँगा ।
कौवे ने कहा नहीं तुम बहुत बड़े हो मेरा शिकार करके खा जाओगे ।
बाज ने कहा ऐ सुंदर कौवे मैं तुम्हें खाना नहीं चाहता । बल्कि तुम्हारा फायदा कराना चाहता हूँ ।  
अब कौवे ने पर फड़फड़ाना रोक दिया । वह मुड़ा और दूर से ही बाज से बात करने लगा ।
कौवे ने कहा बाज तुमने मेरी सुंदरता को समझा इसके लिए धन्यवाद । पर तुम मेरा क्या फायदा कराओगे ।
अब बाज कुटिल हँसी हँसा । वह समझ गया कि कौवे पर फेंका गया पाँसा काम कर गया ।
बाज ने कहा मित्र मैंने सुना है कि तुम पाँच कौवों की टोली है और तुम किसी भी बहेलिए को भगा डालते हो ।
कौवे ने कहा हाँ , हम पाँचों मिलकर किसी भी बहेलिए पर आक्रमण बोल उसे भगा देते हैं । बाज ने कहा कि हाँ मैं भी जवानी में बहेलियों को अकेला ही भगा देता था पर अब न तो नाखूनों में वो ताकत रह गई न ही बदन में वो फुर्ती जिससे कि बहेलियों को मार भगाऊँ ।
कौवे ने कहा अकेले तो ये काम करना बहुत मुश्किल होता होगा ।
बाज ने कहा अरे कुछ मुश्किल नहीं होता । पैंतरे होते हैं आक्रमण के । मैं वही तो तुम्हारे फायदे की बात बता रहा था । तुम पाँचों साथ मिलकर बहेलिए को मारते हो । जबकि ये काम तुम अकेले ही कर सकते हो ।
कौवे ने कहा अकेले कैसे कर सकता हूँ मैं ? अरे हम पाँचों का एक दल है , पाँचों मिलकर काम करते हैं । तभी बहेलिए को भगा पाते हैं न ।
बाज बोला पर अगर तुम न हो तो वो चारों बेकार हैं । मैंने देखा है तुम उनसे बहुत तेज हो । अगर तुम न हो न तो वो  चारों मिलकर भी बहेलिए को नहीं मार सकते । मैंने देखा है तुम्हें बहेलियों को मारते हुए सबसे अधिक मेहनत तुम ही करते हो । पर वो चारों तुम्हें कोई श्रेय ही नहीं देते ।
ये सुनकर कौवे का सीना घमण्ड से फूल गया । उसने कहा हाँ ये तो है मेरा कोई जबाव ही नहीं । पर वो लोग मेरी उतनी कद्र नहीं करते ।
बाज बोला कद्र भी करेंगे और जी हुजूरी भी करेंगे । तुम मुझे अपना गुरु बना लो । मैं तुम्हें बहेलिए को अकेले ही मारना सिखाऊँगा ।
कौवे ने कहा पर तुम मेरे लिए ऐसा क्यों करोगे ? इसमें तुम्हारा क्या फायदा ।
बाज बोला तुमसे मुझे अपनापन लगता है । तुम्हारे भूरे पंख हैं और मैं पूरा भूरा । भला एक भूरा दूसरे भूरे को कैसे नुकसान पहुँचा सकता है । अगर तुम फिर भी मेरे लिए कुछ करना ही चाहो तो मुझे उस पेड़ के आम खाने को दे देना ।
कौवे ने कहा ठीक है चलो मेरे साथ ।  
दोनों उड़कर पेड़ तक पहुँचे । तब तक बाकी कौवे जाग चुके थे । पाँचवें कौवे के साथ बाज को आता देख सभी सतर्क हो गए ।
एक कौवे ने कहा तुम बाज के साथ क्या कर रहे हो ?
भूरे कौवे ने कहा ये मेरे गुरु हैं । अब से ये हमारे साथ रहेंगे ।
चारों कौवों ने एकजुट होकर कहा बिल्कुल नहीं ये इस पेड़ पर कतई न रहेगा । ये हमारा है अगर तुम इसे यहाँ पर लाए तो हम मिलकर इस बाज को मार देंगे ।
कौवे ने कहा नहीं मैं ऐसा नहीं होने दूँगा । मैं.....
इससे पहले कौवा कुछ कहता बाज ने कहा रुक जाओ मेरे लिए अपने साथियों से मत झगड़ो । मैं सामने वाले पेड़ पर रह लूँगा ।
कौवे ने कहा पर गुरूजी ।
बाज ने कहा गुरु कहा है तो बात भी मानो । सामने इससे भी बड़ा आम का पेड़ है । मैं उस पर रह लूँगा । बस गुरुदक्षिणा के बदले तुम कभी-कभी इस पेड़ के मीठे आम खिला दिया करना ।
कहकर बाज सामने वाले पेड़ पर रहने लगा । पाँचवा कौवा रहता तो अपने साथियों के साथ वाले पेड़ पर था । पर अक्सर बाज के पेड़ पर जाता था और बाज उसे उल्टे-सीधे दाँव पेंच सिखाकर उसकी झूठी तारीफ़ कर मीठे आम मंगवाकर खाता । एक दिन अचानक दो बहेलिए जंगल में आए । उस समय भूरे पर वाला कौवा बाज के ही पास था । चारों कौवे कुछ डर गए क्योंकि अबकि बहेलिए दो थे और दो बहेलियों पर आक्रमण करने का कोई अनुभव उनके पास नहीं था । सामने से पाँचवें कौवे को आवाज देकर बुला पा पाना सम्भव न था । वर्ना बहेलिए सतर्क हो जाते । इसलिए उन चारों ने सोचा कि दो-दो कौवे एक-एक बहेलिए पर आक्रमण करेंगे ।
उधर बाज से भूरे कौवे ने कहा गुरूजी मुझे जाना होगा । इन बहेलियों को मारने में साथी कौवों की सहायता करनी है ।
बाज ने कहा रुको सर्वश्रेष्ठ वीर कौवे । अभी मत जाओ तनिक इन चारों को पता तो चलने दो कि तुम कितने महत्त्वपूर्ण हो । लड़ने दो इन्हें पहले ।
कौवे ने कहा पर अबकि बार दो बहेलिए हैं ।
बाज ने कहा वीर कौवे अकेले ही पर्याप्त होते हैं । दो बहेलियों को मारने के लिए । तुम अकेले ही दोनों को भगा लोगे पर पहले देख तो लो ये कौवे क्या कर पाते हैं तुम्हारे बिना ।
कौवा बाज की बात सुनकर वहीं बैठ गया । उधर दो-दो कौवों ने एक-एक बहेलिए पर हमला बोला । किसी ने सिर में चोंच मारी तो किसी ने पैर पर । पर वो अपेक्षित आक्रमण नहीं कर पा रहे थे । काफी देर तक संघर्ष चलता रहा । अंततः बहेलिए भागने को हुए ।
तभी बाज ने कहा देखा तुमने तुम्हारे बिना सब बेकार हैं । जाओ अब जाकर तुम दोनों बहेलियों के कान काट दो । ये कौवे आँख फोड़  सकते हैं और पैर में चोंच ही मार सकते हैं । पर तुम जैसे वीर को कान काटने में महारत हासिल है । तुम दोनों के कान में जोर से काट दो तभी वो भाग जाएँगे ।
कौवा तेजी से उड़ता हुआ गया और दोनों बहेलियों के कानों पर आक्रमण कर दिया । पहले से ही लहूलुहान बहेलिए अब दर्द के मारे और झटपटाने लगे फिर तेजी से भाग गए । ये कहते हुए कि मीठे आम वाले पेड़ के कौवों का शिकार कोई बहेलिया नहीं कर सकता ।
चारों कौवे बोले देखा जीत ही गए । अब कोई बहेलिया इधर का रुख न करेगा ।
पाँचवा कौवा बोला हाँ मैंने आक्रमण ही ऐसे किया कि कोई ठहर ही न पाया ।
चारों कौवों ने कहा तुमने क्या किया आज ? हम लोगों ने ही तात्कालिक रणनीति बनाकर आक्रमण किया । तुम तो आराम से बाज को आम खिला रहे थे ।
भूरे कौवे ने कहा पर तुम लोग उन्हें भगा कहाँ पाए मेरे आक्रमण के बाद ही वो भागे । चारों कौवे बोले तुम्हारे आक्रमण से कुछ न हुआ । हम ही लोगों ने उसे इतना थका दिया था कि वो सिर पर पैर रखकर भागे तुम तो अंत में आए । न भी आते तो भी थोड़ी देर में वो भाग ही जाते ।
इतने में बाज वहाँ आया और उसने कहा देखा वीर कौवे मैंने कहा था न कि ये लोग तुम्हारी योग्यता कभी न समझेंगे । मैं ही तुम्हारा सच्चा हितैषी हूँ ।
चारों कौवे बोले ऐ बाज तुमसे अधिक बरगलाने वाला कोई नहीं हो सकता । तुम हमारे मित्र को कहीं का न छोड़ोगे ।
बाज के कुछ कहने से पहले ही भूरे कौवे ने कहा काले कौवों खबरदार जो मेरे गुरु को कुछ कहा तो । वर्ना तुम्हारे भी कान काट दूँगा ।
चारों कौवे बोले तुम कान काट सकते हो तो हम भी बहुत कुछ कर सकते हैं । पर तुम कभी हमारे साथी थे , ये सोचकर तुम्हें छोड़ रहे हैं ।
फिर भूरा कौवा , बाज के साथ दूसरे पेड़ पर चला गया और बाकि कौवे अपने पेड़ पर । बाज द्वारा भूरे कौवे को दिग्भ्रमित करके मित्र कौवों से अलग रखने का काम जारी था ।
एक दिन बाज ने कहा बहुत दिन हो गए मीठे आम खाते काश माँस खाने को मिले अब ।
भूरे कौवे ने कहा गुरूजी आप चिंता मत करो अब कोई बहेलिया आया तो मैं उसको खूब जोर से काटूंगा और माँस नोंचकर आपको खिलाऊँगा ।
बाज ने कहा मुझे तुम जैसे वीर से यही आशा थी ।
फिर दोनों बहेलिए की प्रतीक्षा करने लगे ।
एक दिन एक बहेलिया आया चारों कौवे वाले पेड़ के पास पहुँचकर बोला इस पेड़ के कौवों का तो शिकार नहीं । ये बहुत ही खतरनाक हैं । कहीं और देखता हूँ ।
तभी वो बहेलिया मुड़ा । चारों कौवे आपस में ख़ुशी मनाने लगे कि चलो अब हमसे कोई टकराने की सोचता भी न । उन्हें ख़ुशी मनाते देख बाज ने कहा   देखो चारों कौवे कितने खुश हैं । उन्होंने अवश्य ही उस बहेलिए को इस पेड़ पर बैठे मुझे और तुम्हें मारने को कहा होगा ।
भूरे कौवे ने कहा ऐसा कहा होगा ? कितने बुरे निकले मेरे पुराने साथी । पर आज इन्हें पता चलेगा कि मैं चीज क्या हूँ । आज मैं अकेला ही इस बहेलिए को भगा दूँगा साथ ही आपके लिए ताजा माँस भी लाऊँगा ।
बाज ने कहा विजय भवः ।
बहेलिया बाज वाले पेड़ के निकट जाने लगा तभी कौवा उड़ते हुए गया और जाकर बहेलिए के कान पर हमला कर दिया । बहेलिए ने भी तीर-कमान जमीन पर फेंककर तुरन्त कौवे को पकड़ लिया ।
फिर बहेलिया बोला आज पकड़ ही लिया । तू ही होगा वो कौवा जिसने पहले भी मेरे कान पर हमला बोला होगा । पर आज मैं तुझसे बदला लेकर रहूँगा । तेरी गर्दन मेरे हाथों में है आज तो तुझे मसलकर ही रहूँगा ।
भूरे कौवे को मुसीबत में देखकर चारों कौवे उड़ते हुए आक्रमण करने आए । उन्होंने मिलकर बहेलिए पर आक्रमण कर दिया । परिणामस्वरूप बहेलिया भूरे कौवे को वहीं छोड़कर भाग गया । पर भूरा कौवा बहुत अधिक घायल हो चुका था । मरणासन्न स्थिति में पहुँच गया था ।
चारों कौवे बोले देखा हमसे दूर होने का परिणाम । इस बाज ने तुम्हें मरवा ही दिया न । हमने तुम्हें कितना समझाया था कि एक ही तरह से मत लड़ा करो । नए पैंतरे आजमाओ पर तुम न माने और बहेलिया तुम्हारे पैंतरों का आदि हो गया तो उसने तुम्हें आराम से दबोचकर मार दिया ।
बाज बोला देखा तुम्हारे पुराने मित्र कैसे हैं । अब जब तुम आधे मर ही गए थे तो तुम्हें पूरा ही मर जाने देते । ताकि तुम्हें ज्यादा तकलीफ तो न होती पर उस बहेलिए को इन्होंने इसलिए भगाया ताकि तुम तड़पकर मरो ।
भूरा कौवा बोला आप सही कह रहे हैं गुरुजी । मुझे असहनीय पीड़ा हो रही है । ये मेरे मित्र नहीं शत्रु हैं ।
अंत समय में भी बाज की चाटुकारिता करते देखकर चारों कौवे निराश होकर वापिस चले गए ।
बाज ने कहा आज तुम्हें इस बात की भी पीड़ा हो रही होगी कि तुम मेरे लिए माँस का इंतजाम नहीं कर पाए ।
भूरे कौवे ने कहा हाँ गुरुदेव आपकी इच्छा पूरी न कर पाने का बड़ा दुःख है मुझे ।
बाज ने कहा पर मैंने तुम्हारी दोनों पीड़ा हर लेता हूँ । तुम्हें मारकर खा जाता हूँ । इससे एक ओर तुम्हें इस असहनीय शारीरिक पीड़ा से मुक्ति मिलेगी दूसरे मुझे माँस मिल जाएगा तो तुम्हारी मानसिक पीड़ा भी समाप्त होगी ।
भूरे कौवे ने कहा अवश्य गुरुदेव आपसे महान कोई नहीं । शीघ्र ही मेरी पीड़ा हरिए ।
बाज ने एक झपट्टा मारा और कौवे की गर्दन अलग करके उसे खा गया । बाद में ऊपर की ओर देखकर बाज बोला हे ऊपरवाले बस एक कृपा करना । ये कौवा था तो स्वादिष्ट । बस इसे खाया है तो इसके जैसी अंधस्वामीभक्ति मेरे अंदर न समा जाए ।
बाज ने मीठे आम वाले पेड़ के ऊपर से उड़ान भरी और कहता हुआ निकल गया वैसे तुम चारों में से एक  की पूँछ औरों से सुंदर है ।
चारों कौवे ने एक दूसरे को विस्मय से देखा फिर बोले जिन्दा रहना है तो  आईने से बचना होगा ।


लेखक
प्रांजल सक्सेना 
 कच्ची पोई ब्लॉग पर रचनाएँ पढ़ने के लिए क्लिक करें-  
कच्ची पोई ब्लॉग 
 गणितन ब्लॉग पर रचनाएँ पढ़ने के लिए क्लिक करें- 
गणितन ब्लॉग 
कच्ची पोई फेसबुक पेज को लाइक करने के लिए क्लिक करें-  
कच्ची पोई फेसबुक पेज 
गणितन फेसबुक पेज को लाइक करने के लिए क्लिक करें-   
गणितन फेसबुक पेज



रविवार, 24 मई 2015

क्यों छुट्टियों में विद्यालय बुला रहे हो

क्यों छुट्टियों में विद्यालय बुला रहे हो ,
क्यों छुट्टियों में विद्यालय बुला रहे हो ।
एक साल पहले जहाँ पड़ा था सूखा ,
अब दिख रहा तुम्हें वहाँ का भूखा ।
विद्यालय खोलने का आया आदेश ,
न खोलने पर कार्यवाही के निर्देश ।
कहती सरकार मिड-डे-मील बनवाओ ,
100 ग्राम से इनका कुपोषण मिटाओ ।
काहे तुगलकी फरमान निकाले जा रहे हो ,
क्यों छुट्टियों में विद्यालय बुला रहे हो ।


2010 में भी ऐसा आदेश आया था ,
तेज लू और गर्मी ने बड़ा सताया था ।
अब फिर वही इतिहास दोहराते हो ,
क्यों तुम मास्टरों की वाट लगाते हो ।
मास्टर क्या बच्चों को भी सताते हो ,
छुट्टियों में भी विद्यालय बुलाते हो ।
क्यों हमारी बद्दुआएँ लेना चाह रहे हो ,
क्यों छुट्टियों में विद्यालय बुला रहे हो ।


हमसे कहते बनाओ भयमुक्त वातावरण ,
स्वयं ही कर रहे हो मानसिक शोषण ।
छुट्टियों में तो इन्हें स्कूल न बुलवाओ ,
हमारे खड़ूस चेहरे से निजात दिलाओ ।
इन्हें भी छुट्टियों का मजा उठाने दो ,
नानी , मामा , बुआ के घर को जाने दो ।
क्यों बच्चों का बचपना छीने जा रहे हो ,
क्यों छुट्टियों में विद्यालय बुला रहे हो ।


हम मास्टर हैं कि बन्धुआ मजदूर ,
छुट्टी में आने को करते मजबूर ।
हमारा भी एक घर है , एक द्वार है ,
छोटा मगर प्यारा सा , परिवार है ।
क्यों इस परिवार से दूर कराते हो ,
छुट्टियों पर क्यूँ ग्रहण लगाते हो ।
क्यों छुट्टियों पर लातें मारे जा रहे हो ,
क्यों छुट्टियों में विद्यालय बुला रहे हो ।


हममें से कई परिवार से दूरी सहते हैं ,
500 , 800 किमी घर से दूर रहते हैं ।
वर्ष भर घर जाने के लिए तरसते हैं ,
इन्हीं छुट्टियों की प्रतीक्षा करते हैं ।
न उपार्जित दोगे न 13 माह का वेतन ,
तो क्यों करा रहे हो इस गर्मी में लेथन ।
हमारी खुशियों को क्यों लीले जा रहे हो ,
क्यों छुट्टियों में विद्यालय बुला रहे हो ।


कहते हो एक समय भोजन बँटेगा ,
क्या इससे सूखे का सन्ताप हटेगा ।
8-10 के परिवार में एक बच्चा खाएगा ,
तो क्या भुखमरी का नामोंनिशां मिट जाएगा ।
एक समय के 100 ग्राम से क्या पेट भरता है ,
मुझे तो तुम्हारी नीयत में खोट लगता है ।
व्यर्थ का झूठा दिखावा किए जा रहे हो ,
क्यों छुट्टियों में विद्यालय बुला रहे हो ।


रचनाकार
प्रांजल सक्सेना 
 कच्ची पोई ब्लॉग पर रचनाएँ पढ़ने के लिए क्लिक करें-  
कच्ची पोई ब्लॉग 
 गणितन ब्लॉग पर रचनाएँ पढ़ने के लिए क्लिक करें- 
गणितन ब्लॉग 
कच्ची पोई फेसबुक पेज को लाइक करने के लिए क्लिक करें-  
कच्ची पोई फेसबुक पेज 
गणितन फेसबुक पेज को लाइक करने के लिए क्लिक करें-   
गणितन फेसबुक पेज 

मंगलवार, 12 मई 2015

दहले पर गुलाम


सांयकाल  07:00  बजे  हमने  घर  पहुँचकर  डॉरवेल  बजाई । दरवाजा  खुला , दरवाजे  के  एक  ओर  थके – हारे , शक्ल  से  बेचारे दिखने  वाले  हम  थे । पैण्ट  से  आधी  बाहर  निकली  शर्ट , गले  में  ढीली  पड़ी  टाई और  पसीने की  बूँदों  से  नहाया  हुआ  नजर  का  चश्मा  सब  मिलकर  बयां   कर  रहे थे  कि  मजदूरों  के  अलावा  भी  कुछ  लोग  मेहनत  की  रोटी  खाते  हैं । वहीं  दरवाजे  के  दूसरी  ओर  हमारी  सेठानी  हाथ  में  हथेली  का  दुगुना  एक  पच्चीस हजारी  मोबाइल  लिए  हुए । हमारी  बेचारगी  भरी  सूरत  देखने  का  समय  सेठानी  के पास  नहीं  था  क्योंकि  उनकी  आँखें  मोबाइल  पर  लगी  हुई  थीं । दरवाजा  तो  खुल चुका  था  पर  हम  अभी  भी  घर  के  बाहर  ही  खड़े  थे  क्योंकि  बड़े  शहर  की उच्च  मध्यवर्गीय  पत्नी  मोबाइल  पर  कुछ  टाइप  कर  रही  थी  और  हमारी  हिम्मत न  थी  कि  सेठानी  से  कह  दें  कि  दरवाजे  से  हटकर  टाइप  कर  लो । खैर 1   मिनट  बाद  आदरणीया  पत्नी  जी  का  टाइपिंग  कार्य  रूका  और  वो  मोबाइल  पर  ही  नजरें  गड़ाए  हुए  मुड़ीं  और  सामने  बने  सोफे  पर  जाकर  बैठ  गईं । हमें  लगा मानो  अंदर  आने  का  टिकट  मिल  गया  है , मंद  चाल  से  अंदर  आए ।
जब  रहा  ही नहीं  गया  तब  बोले – “  क्या  हर  समय  व्हाट्सएप्प  पर  लगी  रहती  हो ? कभी  मेरी  ओर  भी  ध्यान  दिया  करो ।
सेठानी   बोलीं – “  ऐसा  है  जी  दिमाग  मत  खराब  करो ।  मैं  घर  के  सारे  काम  निपटाकर  01:30  बजे  फ्री  हो  जाती  हूँ  फिर  शाम  तक  मुझे  कोई  काम  नहीं  है । आपका  तो  कुछ  निश्चित  नहीं  है  अपनी  पोई  पक्की  करने  के  लिए जने  कहाँ – कहाँ  घूमते  रहते  हैं , कभी 5  बजे कभी 7  बजे , कभी 9  बजे घर आते हो । तब  तक  ठलुआ  बैठूँ  क्या ? खाली  बैठने  से  वजन  बढ़  जाता  है  और  मैं  अपनी  फिगर  बिल्कुल  खराब   करने  वाली ।
हम  बोले – “  पर  अब  तो  घर   गया  हूँ     अब  तो  मोबाइल  को  रखो ।
सेठानी   बोलीं – “  क्यों  रखूँ सब  काम  आप  ही  के  हिसाब  से  चलेगा  क्या ?  दिखता  नहीं ठलुओं  की  फौज ग्रुप  में  चैट  कर  रही  हूँ ।  अभी  शिखा  ने  चुटकुला  भेजा  है , उसे  पढ़कर  खीसें  निपोरने  वाला  स्माइली  भेजना  है । प्रियंका  जी  ने  गजल  लिखी  है  उस  पर  ताली  वाला  स्माइली  भेजना  है । कोमल  की शादी  आने  वाली  है । ग्रुप  में  साड़ी  का  रंग  मैच  करना  है । इतना  सारा  काम  है । मैं  नहीं  करूँगी  तो कौन  करेगा ? आपका  आने  का  कोई  निश्चित  समय  हो  तो उस  समय  व्हाट्सएप्प   चलाऊँ  पर  जब  आने – जाने  का  समय  निश्चित  समय   होगा  तब  तो  मैं  अपने  हिसाब  से  ही  सोफा  छोड़ूँगी , आपके  हिसाब  से  नहीं ये  समझ  लीजिए ।
हम  बोले– “  अरे ! पर......                          
बीच  में  ही  टोकते  हुए  सेठानी  बोलीं – “  बोलिए  मत  एक  मिनट  अभी  विशाखा  ने  अभी  एक  लिपिस्टिक  की  नई  फोटो  में  टैग  किया  है  उसे  लाइक  कर  दूँ ।
1  मिनट  10  सेकण्ड  बाद  हम  बोले – “  सुनो
सेठानी ( झल्लाकर ) बोलीं – “  अरे ! क्या  है ? ”
हम  बोले – “  वो  मैं , मैं ।
सेठानी  बोलीं – “  क्या , मैं , मैं  मुझसे  इस  समय  मटर  पनीर  बनाने  की  आशा  भी  मत  करना । भूख  लगी  हो  दोपहर  की  दाल  फ्रिज  में  रखी  है  खा  लो ।
हम  बोले – “  नहीं  दाल  नहीं  वो .......
सेठानी  सोफा  छोड़कर  खड़ी  हो  जाती  हैं  फिर  कहती  हैं – “  दाल  नहीं  तो  क्या ?  आपके  ज्यादा  पर  निकल  आए  हैं । दाल  में  प्रोटीन  होता  है  वही  खाओ । मक्खन  वाला  पराठा  नहीं  मिलेगा  और  फैट  बढ़ाना  है  क्या ? ”
हम  बोले – “  नहीं  मैं  परांठा  नहीं  माँग  रहा  था । आज  महिला  दिवस  है    तो  मैं  उपहार  में  तुम्हारे  लिए  आईफोन  लाया  था ।
सेठानी  की  आँखें  फोन  छोड़कर  हमारी  ओर  गईं । पति  के  थके  हुए  चेहरे  में  कोई  रोचकता    महसूस  करते  हुए  उसके  हाथों  में  सफेद  रंग  के  डिब्बे  पर  हॉलमार्क  को  देखकर  सेठानी  उछल  पड़ीं । मूल्यवान  उपहार  देखकर  अचानक  से  ही  पति  भी  मूल्यवान  लगने  लगा ।
सेठानी  बोलीं – “   सच्ची  आप  कितने  अच्छे  हैं  और  मैं  आपको  दाल  खिला  रही  थी । अब  तो  मैं  खूब  सारा  व्हाट्सएप्प  और  फेसबुक  चला  सकती  हूँ ।

बहुत  सारा  सुनकर  हम  चिंतित  हो  गए । कुछ  सलाह  देना  चाहते  थे  सेठानी  को  पर  एक  ही  शब्द  निकल  पाया – तुम......
सेठानी  ने  भृकुटि  तानते  हुए  कहा – “  हाँ  मैं ।
हम  मन  की  बात  को  छुपाते  हुए  क्रोध  पर बेशर्मी  की  हँसी  लपेटते  हुए  बोले – “  बहुत  बुद्धिमान  हो ।
सेठानी  बोलीं – “  हाँ  वो  तो  हूँ ।
उधर  व्हाट्सएप्प  ग्रुप  में Sethani  left  the  group
दिशा ( ग्रुप एडमिन ) – “  ये  सेठानी  फिर  चली  गई ।
मनु – “  कोई  बात  नहीं  दीदी   भी  जाएगी ।
पर्सनल  में  दिशा – “  इन  बरेली  वालों  का  दिमाग  खराब  है  जब  देखो  तब  ग्रुप  छोड़  जाते  हैं  फिर  एडमिन  जोड़ती  फिरे । एडमिन   हो  गई  कम  छात्रसंख्या  वाले  विद्यालय  की  मास्टरनी  हो  गई । जैसे  वो  घर – घर   जाकर  बच्चे  बुलाती  है , वैसे  ही  कांटेक्ट  पकड़ – पकड़कर  इन्हें  ग्रुप  में  ऐड  करते  रहो ।
मनु – “  दद्दा , इन  बरेली  वालों  की  तो  कहो  मत । सामने  तारीफ  तो  मजबूरी  में  करनी  पड़ती  है । पर  कसम  से  हैं  सबकी  सब  नखरेवाली ।  ”
हमने  सेठानी  से  कहा – “  अरे ! ग्रुप  क्यों लेफ्ट  कर  दिया ? ”
सेठानी  बोलीं – “  आप  लेफ्ट , राईट  के   चक्कर  में   पड़ें । ये  औरतों  की  बात  है । ग्रुप  में  कई  दिन  पड़े  रहो  तो  टीआरपी  कम  हो  जाती  है । ग्रुप  में  भी  उन्हीं  औरतों  की  इज्जत  होती  है  जो  इश्यू  बना  सकें ।  चर्चा  में  रहना  जरूरी  होता  है । अब  कल  जब  सब  पूछेंगे  तो  इठलाकर  जाऊँगी  ग्रुप  में । फिर  थोड़ी  देर  बाद  सबको  बताऊँगी  कि  आपने  मुझे  आईफोन  दिया  है ।
हम  बोले – “  तुम  औरतों  को  समझना  मुश्किल  है ।
सेठानी  बोलीं – “  औरतों ? और  कौन  औरत  है  आपके  जीवन  में ? और  आप  किन – किन  औरतों  को  समझने  की  कोशिश  कर  रहे  आजकल ? ”
हम  बोले – “  कोई   है । बस  ऐसे  ही  जुमला  बोल  दिया ।
सेठानी  बोलीं – “  ठीक  है , ठीक  है । आज  आप  आईफोन  लाए  हैं , इसलिए  छोड़  रही  हूँ । अगली  बार  औरतों  शब्द  कहा   तो  समझ  लेना ।
5  सेकण्ड  बाद  सेठानी  ने  पूछा – “  भूख  लग  रही  है ? ”
हम  आशान्वित  होकर  बोले – “  हाँ ।
सेठानी  बोलीं – “  तो  रुकिए , कम  से  कम  एक  घण्टा  तो  लगेगा ।
हम  बोले – “  ठीक  है
हमने  कमरे  में  जाकर  जूते  उतारे  और  आराम  से  बनियान  बरमूडा  पहनकर  लेट  गए । एक  घण्टे  बाद  सेठानी  ने  कहा – “  यहाँ  कैसे  लेटे  हैं ? ”
हम  बोले – “ आप  ही  ने  तो  कहा  था  कि  एक  घण्टे  बाद  खाना  मिलेगा । सो  मैं  यहाँ  आकर  लेट  गया । पर  आपने  नए  कपड़े  पहनकर  इतना  मेकअप  क्यों  किया  है ? ये  सब  करने  क्यों  बैठ  गईं  खाना  कब  तक  बनाओगी  अब ? ”
सेठानी  ऊँगली  उठाते  हुए  गर्दन  टेढ़ी  करके  कटु  दृष्टि  से  हमारी  ओर  देखते  हुए  बोलीं – “  देखो  मिस्टर , ऐसा  है  आज  ही  मैंने  नेलपेन्ट  वाली  डिस्प्ले  पिक्चर  लगाई  है । कईयों  ने  पर्सनल  में  आकर  तारीफ  भी  की  है । अब  इनको  खराब  करने  के  लिए  मैं  रसोई  में  तो  जाने  से  रही । इसलिए  चुपचाप  ढंग  के  कपड़े  पहनिए  और  चलिए  खाना  खाने  किसी  होटल  पर ।  ”
हम  बोले – “  पहले  ही  बता  देतीं  तो  कपड़े  ही   बदलता ।
सेठानी  ने  कहा – “  ओहो ! तो  पहले   बताया  तो  क्या ? अब  कपड़े  बदल  लीजिए । आप  भी  आलसी  हो  गए  हैं  और  एक  बात  समझ  लीजिए  आपको  दाल   खानी  पड़े , इसलिए  आपको  होटल  पे  ले  जा  रही  हूँ । समझ  लीजिए  मैं  आपकी  कितनी  चिंता  करती  हूँ । ऐसी  पतिव्रता  पत्नी  आपको  कहीं   मिलने  वाली  जान   लीजिए ।
हम  सिर  झुकाकर  बोले – “  हाँ  समझ  गया ।
हम  कपड़े  पहनकर  सेठानी  के  साथ  होटल  पर  गए  और  खाना  खाकर  11:00  बजे  तक  लौटे । हमने  कहा – “  बड़ा  थक  गया ।
सेठानी  बोलीं – “  आदमी  लोग  पता  नहीं  किस  बात  पर  थक  जाते  हैं । हम  महिलाओं  से  पूछो  पहले  घर  के  काम  निपटाते  हैं  फिर  सारा  दिन  नेलपेंट , ड्रेस  शॉपिंग , फेसबुक , व्हाट्सएप्प  में   अपना  पूरा  योगदान  देती  हैं । एक  पल  की  फुर्सत  नहीं  हमें । एक  औरत  की  जिंदगी  घर  संसार  में  ही  बीत  जाती  है । पर  आप  आदमी  कभी   समझेँगे ।
हम  बोले – “  सच  में  समझना  मुश्किल  है , चलो  सोने  चलें ।
सेठानी  बोलीं – “  बस  खाना  खाकर  आए  और  सोने  चले , इसीलिए  आपका  पेट  निकल  आया  अब । आप  जाइए  मुझे  नहीं  सोना  अभी ।
हम  बोले – “  फिर ? ”
सेठानी  बोलीं – “  अरे ! फिर  क्या । अभी  मुझे  नया  फोन  मिला  है  इसमें  सारे  कांटेक्ट  डालने  हैं । नेट  चालू  करना  है , नए  एप्पस  डालने  हैं । मैं  जा  रही  हूँ बालकनी  में  बैठकर  ये  सारे  काम  निपटाने ।
हम  बोले – “  ठीक  है  जाओ ।
हम  बिस्तर  पर  लेट  गए , सेठानी  के  बालकनी  में  जाते  ही  हमने  फोन  निकालकर  अपने  मित्र  टिल्लू  को  कॉल  लगाई – “  हैलो  टिल्लू ।
टिल्लू  बोला – “  हैलो , जोरू  के  गुलाम  , प्लान  सक्सेसफुल  हुआ ? ”
हम  बोले – “  अरे ! सक्सेसफुल  नहीं  डबल  सक्सेसफुल । अब  नए  फोन  में  उलझी  रहेगी  अगले  2 3  महीने ।
टिल्लू  बोला – “ ये  मारा  पापड़  वाले  को ।  यानि  अब  प्राइम  टाइम  पर  भी  डेली  सोप  के  बजाय  भाभी  मोबाइल  में  ही  उलझी  रहेगी  और  तेरे  आईपीएल  देखने  में  कोई  रोक  नहीं ।  ”
हम  बोले – हाँ  और  तेरी  पार्टी  में  कोई  रोक  नहीं , कल  मिलना  रेस्टोरेंट  में ।
टिल्लू  बोला – “ चल  अच्छा  है , अबकि  बार  नहले  पर  दहला  मार  ही  दिया  तूने ।   भाभी  जानबूझकर  अपने  धारावाहिक  के  बहाने  आईपीएल  नहीं  देखने  देती  थी  तुझे । वो  तुझे  हर  बात  पर  बस  दाबना  चाहती  है ।
हम  बोले – अबे ! दहला  नहीं , दहला  तो  हर  बार  वही  फेंकती  है  और  मुझे  दहला  भी  देती  है । मैं  तो  गुलाम  हूँ  , केवल  उसे  ही  लगता  है  कि  मैं  नहला  और  वो  दहला  बनकर  हर  बार  मेरे  ऊपर  है । पर  मैं  भी  गुलाम  बनकर  चुपके  से  दहले  को  पीट  ही  देता  हूँ ।
फोन  काटकर  एक  मुस्कान  के  साथ  हम  वापिस  बिस्तर  पर  जाकर  सो  जाते  हैं ।

लेखक
प्रांजल सक्सेना 
 कच्ची पोई ब्लॉग पर रचनाएँ पढ़ने के लिए क्लिक करें-  
कच्ची पोई ब्लॉग 
 गणितन ब्लॉग पर रचनाएँ पढ़ने के लिए क्लिक करें- 
गणितन ब्लॉग 
कच्ची पोई फेसबुक पेज को लाइक करने के लिए क्लिक करें-  
कच्ची पोई फेसबुक पेज 
गणितन फेसबुक पेज को लाइक करने के लिए क्लिक करें-   
गणितन फेसबुक पेज