शनिवार, 12 सितंबर 2015

कैसी विपदा आई रे भैय्या



कैसी विपदा आई रे भैय्या ,
नाव डुबो रहा मेरा खैवइय्या ।

उसने पास बुलाकर किया दुलार ,
मैंने उसे समझा अपना तारणहार ।

पर दरअसल उसने मुझे बहलाया ,
मुझे भँवर में उसने धकियाया ।

काश मुझे वो तैरना सिखलाता ,
जीतने के सारे पैंतरे बतलाता ।

पर उसने गलत रस्ता दिखलाया ,
सुंदर भ्रम के लोलीपॉप से रिझाया ।

तुझे न माफ़ करेगी मेरी आत्मा ,
अत्यंत निकट है तेरा खात्मा ।

बड़े झूठे निकले तेरे वादे ,
हम ही न समझे तेरे इरादे ।

तुझे सर्वस्व मानकर तेरे पीछे चला ,
और तूने चुपके से मुझे ही छला ।

तुझको देवता मानकर की इबादत ,
तूने धोखे की लिख दी इबारत ।

झूठ बोला , सब्जबाग दिखाए तूने ,
ख़ुशी में छाती के इंच हुए थे दूने ।

कैसे जिएँगे अब , कैसे पड़ेगी पूर ,
हृदय टूटा , स्वप्न हुए चकनाचूर ।

पर हम न टूटेंगे , न ही हारेंगे ,
तुमने बिगाड़ा है , हम सुधारेंगे ।

न अश्रु बहाएँगे , न लड़खड़ाएँगे ,
पुनः उठेंगे और डट जाएँगे ।

हमें अपना मार्ग स्वयं ही बनाना है ,
उठो साथियों अभी बहुत दूर जाना है।


रचनाकार
प्रांजल सक्सेना 
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