बुधवार, 27 जनवरी 2016

ऐ ! शिक्षक कर्त्तव्य निभाना तुम



ऐ ! शिक्षक कर्त्तव्य निभाना तुम ,
ऐ ! शिक्षक कर्त्तव्य निभाना तुम ।
दुनिया तुम्हारे चरण स्पर्श करती ,
ये सम्मान ये प्रतिष्ठा उनको चुभती ।
अनेक दुष्ट बाधा डालने खड़े हैं ,
देखो राह में कितने शूल पड़े हैं ।
कोई कर्त्तव्यपरायणता से जलता ,
कोई छवि धूमिल करने को मचलता ।
पर अपने कदम न डगमगाना तुम ,
ऐ ! शिक्षक कर्त्तव्य निभाना तुम ।

उनकी ईर्ष्या पर न ध्यान दो ,
तुम तो ज्ञान दो बस ज्ञान दो ।
वो त्याज्य हैं , जो हैं निन्दक ,
तुम बने रहो समाज के चिंतक ।
तुम ही धारा को मोड़ सकते ,
विरोधियों के हौंसले तोड़ सकते ।
शत्रु के हृदय में प्रेम जगाना तुम ,
ऐ ! शिक्षक कर्त्तव्य निभाना तुम ।

उनके स्वभाव में भरा हुआ है दर्प ,
विषाक्तता में पीछे छोड़ दिए  सर्प ।
पल - पल वो तुम्हें डसना चाहते ,
अश्व समझ लगाम कसना चाहते ।
बिना शिक्षक वो भी कुछ न बन पाते ,
फिर भी शिक्षक को ही हरपल सताते ।
ऐसे दुष्टों से कभी भी न घबड़ाना तुम ,
ऐ ! शिक्षक कर्त्तव्य निभाना तुम ।

विद्यालय जाने में हो जाती दुर्गत ,
गड्ढे और कीचड़ करते स्वागत ।
विषखपड़े और सर्प मिल जाते ,
कभी श्वान ही पीछे पड़ जाते ।
झेलते तुम वर्षा , सर्दी और गर्मी ,
पर तुम्हें कामचोर कहते अधर्मी ।
फिर भी सुदूर क्षेत्र में हर्षित होकर जाना तुम ,
ऐ ! शिक्षक कर्त्तव्य निभाना तुम ।

गुरु का स्थान सदा रहेगा श्रेष्ठ ,
विद्यार्थियों को ज्ञान दो यथेष्ट ।
निज बालक समझ तुम उन्हें पढ़ाओ ,
जाति धर्म भूल , हृदय से अपनाओ ।
उनमें कौशल और गुण को रोंपो ,
उत्कृष्ट बनाकर राष्ट्र को सौंपो ।
विद्यार्थियों को अच्छा मानव बनाना तुम ,
ऐ ! शिक्षक कर्त्तव्य निभाना तुम ।

तुम्हें उभारने हैं सुंदर व्यक्तित्त्व ,
शिक्षक के बड़े उत्तरदायित्व ।
तुम हो एक विद्यार्थी की आस ,
देखो टूटे न उसका विश्वास ।
वो बड़ी आशाएँ लेकर आया है ,
उसमें कल का भविष्य समाया है ।
संस्कारों से उसका जीवन सजाना तुम ,
ऐ ! शिक्षक कर्त्तव्य निभाना तुम ।
ऐ ! शिक्षक कर्त्तव्य निभाना तुम ।


रचनाकार
प्रांजल सक्सेना 
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