बुधवार, 11 मई 2016

कश्ती

“ बस यही घुमाने की हैसियत है हमारी । ”

“ जन्नत की सैर कराने वाले अपनी हैसियत को नहीं कोसा करते । ”

लटकाए हुए मुँह के साथ नदी में गिर रहे राजू के आत्मविश्वास को चिलरी ने सहारा दिया ।
राजू ने नजरें झुकाते हुए कहा - “ हम क्या दे पाएँगे तुम्हें , तुमने बियाह को हाँ क्यों बोला ? ”

“ न बोलकर किसी राजा से बियाह जाते क्या ? ” कहकर चिलरी ने ठहाका लगाया । फिर आगे कहा - “ अरे ! गरीब तुम भी , गरीब हम भी । जिंदगी तो यूँ ही गरीबी में ही कटनी है । पर साथी ऐसा हो जो गरीबी की गठरी के बोझ को साध ले तो जिंदगी कोई मुश्किल न लगेगी । ”

बीच नदी, चाँदनी रात और मद्धम गति की हवा में उड़ते हुए चिलरी के बाल राजू को चिलरी के प्रति और आकर्षित कर रहे थे । पर राजू के मन में एक अपराध बोध - सा था । वो इस बोझ से मुक्त होना चाहता था । दो पल के मौन के बाद राजू की जिव्हा शब्दों को और पकड़कर न रख सकी , उसने कहा - “ अच्छा चिलरी तुम तो गुनी छोरी हो । पूरे गाँव में तुम्हारा नाम है - मसाला पीसने से लेकर सुंदर गोल कण्डे बनाने तक । अच्छी छोरियों को तो अच्छा घर मिल ही जाता है और तुम तो घर पर 12वीं भी पढ़ रही थीं न । ऊपर से कई छोरे चाहते थे तुम्हें । वो जगन वो तो तुम्हारे आगे - पीछे घूमता था । वो पैसे भी हमसे अच्छे कमाता है तुम्हें खुश रखता । ”

चिलरी ने मुँह बिचका लिया - ” क्या खुश रखता जगन । दो बार पिट चुका है वो मेले में लड़की छेड़ने में । ऐसे लड़कों का कोई ईमान नहीं होता । हमें चमड़ी से प्यार करने वाला नहीं चाहिए था । हमारे दिल से प्यार करने वाला चाहिए । चमड़ी की रौनक को कित्ते दिन पकड़कर रख सका है कोई । अरे ! चमड़ी का हिसाब तो दौलत जैसा होता । जित्ती बार गिनो उत्ती ही कम होती जाती और हाँ अब दुबारा ये बात मत करना कि हमें तुम से बियाह नहीं करना चाहिए था । ”

राजू के मन की हालत ऐसी थी मानो उसे कोई हीरा मिल गया हो और वो उसकी चमक को सम्भाल न पा रहा हो । पर हीरे ने ही कह दिया था कि उसे धूल फांककर कोयला जैसा बनना पसन्द है पर तिजोरी में रहना नहीं । तो राजू के मन में कोई सन्देह नहीं था । अब तक हीरे को धरोहर मानकर चलने वाला राजू अब हीरे के मालिक सरीखे था । राजू के मन से ये विचार कोसों दूर हो चुका था कि चिलरी कभी भी उससे अलग हो सकती है । अब राजू को चिलरी के साथ सपने सजाने का पूरा अधिकार था ।

राजू - “ अच्छा तुम्हारे का - का सपने हैं हमारे साथ ? कछु तो सोची होगी । ”

चिलरी - “ सोचे काहे न हैं । जिस दिन से बापू रिश्ता पक्का किए हैं तब से बस तुम्हारे और अपने बारे में सपने ही तो देख रहे हैं । हमें तुम्हारे साथ खेत में गन्ना खाना है , कश्ती तो अपनी है ही कभी - कभी घुमा दिया करना , हरिया की दुकान पर हर हफ्ता नई चूड़ी आतीं हैं वो कभी - कभी दिला दिया करना और हाँ वो कान्हा जी के मेले में इमली वाला खट्टा बताशा आता है वहाँ पेट भर के बताशे खिला दिया करना बस । ”

“ औ.....और साड़ी ?........साड़ी तो औरतें सबसे पहले मांगतीं हैं वो न माँगीं तुमने । ” - राजू ने विस्मय से पूछा ।

चिलरी - “ साड़ी कैसे माँगें तुमसे ऊ तो महँगी आत है न । दूजे तुम्हारी दुई-दुई बहनें हैं । तुम्हें उनकी शादी को भी तो पैसा जोड़ना है । ”

राजू - “ अरे ! तो इत्ते कम थोड़े ही न कमात हैं कि साड़ी भी न पहना पाएँ तुम्हें । कभी-कभी सैलानी जेब भर के पईसा दे जात हैं । ”

चिलरी - “ अच्छा ठीक है बाबा जिस दिन सैलानी तुम्हें भर जेब पैसा दें उस दिन हमें साड़ी भी ले आना । ”

बीच नदी में हिचकोले लेती नाव में राजू के साथ प्रेमपूर्ण संवाद का कोई अवसर चिलरी गंवारा नहीं करना चाहती थी , उसने कहा - “ अच्छा राजू तुम भी तो कुछ सपने देखे होंगे न । बताओ न हम तुम्हारे सपने कैसे पूरे करें ? ”

राजू ने शर्माकर कहा - “ अरे ! हम का सपने देखते । हम तो कभी ये ही न सोचे कि हमारा बियाह होगा और अब बियाह भी हुआ वो भी तुम जैसी गुनी छोरी से यही बहुत है । ”

चिलरी - “ फिर वही बातें । अच्छा जब बियाह तय हुआ तब तो कुछ सोचे होगे न । ”

राजू - “ हम का सोचते । बस जैसे रामू , दीपू और मलखान अपना खाने का डिब्बा लाते हैं । वैसे ही हमारे लिए भी बना दिया करना । ”

चिलरी - “ अरे ! बस इत्ती सी बात । हम तुम्हारे लिए रोज बढ़िया खाना बनाकर दिया करेंगे और साथ में अचार और चटनी भी । ”

राजू - “ अरे ! जे अचार और चटनी की क्या जरूरत है । बस छाह रोटी और एक ठो सब्जी , पेट भरे खातिर इत्तो काफी । ”

चिलरी - “ हाँ - हाँ तुम तो हमारी इज्जत खराब करवा दोगे । नया - नया बियाह हुआ है , अब खाने का डिब्बा लेकर जाओगे तो तनिक खाना खबसूरत तो लगना चाहिए । ”

राजू - “ अच्छा जैसी तुम्हारी मरजी । ”

कुछ रुककर राजू ने कहा - “ वैसे तुम्हें बुरा लग रहा होगा न कि हमारी पहली रात है और खटिया पर जोराजोरी के बजाय तुम्हें यूँ कश्ती में घुमा रहे । ”

चिलरी - “ अरे ! हमें काहे बुरा लगेगा हमें तो अच्छा लग रहा है । ” चिलरी मुस्कुराई फिर कहा - “ शहरी लोग पहली रात को क्या - क्या न करते । फूल लाते , नरम बिस्तर पर सोते , तरह - तरह के इत्र छिड़कते । पर हमारी पहली रात हमें हमेशा याद रहेगी । तुम रिश्तेदारों से बचाकर खिड़की के रस्ते हमें खुली हवा में लाए । फिर रात के 2 बजे अपनी कश्ती में हमें घुमा रहे हो । इस समय पूरी नदी में न कोई सैलानी है न कोई कश्ती । हम यहाँ तुमसे खुलकर अपने दिल की बात कह सकते हैं । घर में गहरी साँस भी ले लेते तो बाहर सबकी नींद खुल जाती । ”

तभी एक तेज लहर आई और कश्ती डांवाडोल हुई । राजू घबरा गया और बातें छोड़कर गम्भीरता से पतवार को सही दिशा में चलाने लगा ।

इसी बीच राजू की नजर चिलरी की ओर गई । राजू जितना घबराया हुआ था चिलरी उतनी ही शांत थी । राजू ने कहा - “ तुम्हें डर नहीं लग रहा अभी पल भर में कश्ती पलट जाए तो । ”

चिलरी ने पूरे विश्वास से कहा - “ ऐसे कैसे पलट जाएगी । हमें पता है कि तुम कितनी अच्छी कश्ती चलात हो । इसीलिए तो अपनी जिंदगी की बागडोर तुम्हारे हाथ में दिए हैं । जैसे कश्ती अच्छी चलात हो वैसे ही गृहस्थी भी चला लोगे हमें यकीन है । ”

राजू - “ पता है लहर के बड़े - बड़े झोंके झेले हैं हमने । आज तक बड़े से बड़े पैसे वाले को बिठाने के बाद भी झोंको से ऐसे नहीं डरे पर इस छोटी सी लहर से डर गए क्योंकि तुम साथ थीं । हम समझ गए अब हमें प्यार हो चला है तुमसे । ”

चिलरी - “ प्यार की इकलौती यही तो बुराई है राजू कि दिल को कमजोर कर देती है जबकि नफरत दिल को मजबूत । पर फिर भी प्यार है तो तभी तो जिंदगी में रंग हैं ।.......अच्छा अब कश्ती किनारे भी ले चलो । घर भी जाना है । कहीं सब उठ गए तो शरम के मारे इसी नदी में डूबकर मरना पड़ेगा । ”

चिलरी और राजू खिलखिलाकर हँसे । राजू ने फटाफट कश्ती किनारे लगाई , रस्सी से बाँधी और दोनों घर को चल दिए । बड़ी सफाई से खिड़की के रस्ते अपने कमरे में दाखिल हुए और बिस्तर पकड़ा । बिस्तर पर लेटते ही बाहर मुर्गे ने बाँग दे दी । सब नाते रिश्तेदार ऊँघते हुए उठ पड़े ।

राजू - “ पहली रात जिंदगी की यादगार होती है । आखिर बीत ही गई अब दुबारा न आएगी । ”

चिलरी - “ रात तो बीतनी ही थी । बखत को रोकना तो हाथ में नहीं होता पर हर पल को जीना इंसान के अपने हाथ में होता है । जिंदगी में कई रातें जागकर गुजारी हैं पर वो मैय्यत के शोक की होती थीं । लगता था जल्दी से ये रात गुजरे । पहली बार ख़ुशी में रात गुजारी है और एक - एक पल जिया है । गुजरा हुआ कोई भी पल दुबारा नहीं आता इसलिए गुजरने से पहले हर पल को यादगार बना लेना चाहिए । ”

चिलरी की आशावान बातों ने राजू के चेहरे पर भी आशा का दीप प्रज्वलित कर दिया था ।

राजू - “ तुम इत्ती अच्छी - अच्छी बातें कैसे कर लेती हो । हम तो अपनी गरीबी से हमेसा परेशान रहते । ”

चिलरी - “ करेंगे न तो जिएँगे कैसे । वैसे भी कश्ती चलाने वाले को न तो घबराने की इजाजत होती है न ही परेशान होने की । उसे तो तूफान में भी पतवार को कसकर पकड़ना पड़ता है और किनारे तक पहुँचना होता है । अब हम ठहरे कश्ती चलाने वाले की बीवी तो ये गुन हममें भी होने चाहिए न । वैसे भी आज से हमें भी तो गृहस्थी की कश्ती चलानी सीखनी है । ”

तभी इन प्रणय भरे पलों में एक रिश्तेदार ने व्यवधान डाल दिया , दरवाजा खटखटाकर कहा - “ अरे ! अब बाहर न निकलोगे क्या , भोर हो गई है । सुहागरात खतम , काम शुरू । हा हा हा....... ”

चिलरी - “ अब बखत आ गया है कि हम दोनों अपने - अपने काम पर निकलें । कश्तियाँ इंतजार कर रही हैं । ”

लेखक
प्रांजल सक्सेना 
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