मंगलवार, 14 जुलाई 2015

अहा ! प्रलय क्या नृत्य है



कभी न कभी तो प्रलय आनी ही है । सारी सम्पदाएँ , सभी मनुष्य एक साथ काल-कलवित होने ही हैं । एक ऐसा समय जब चारों ओर मात्र मृत्यु ही होगी और कोई शोक मनाने वाला न होगा । यद्यपि ये कोटि वर्षों बाद होना है , तथापि इस विषय ने मुझे लुभाया है । इसलिए एक कविता की रचना सहज ही हो गई है । विशेष ये है कि इसमें मैंने कल्पना की है प्रलय के उन 2-4 मिनट में ईश्वर की क्या प्रतिक्रिया हो सकती है । इसी प्रतिक्रिया को शब्दों में पिरोया है , जहाँ ईश्वर प्रलय को हेय दृष्टि से नहीं देख रहे अपितु प्रलय लीला को एक नृत्य सरीखा मानते हुए नवीन सृजन के लिए एक प्रक्रिया मात्र मान रहे हैं ।

अहा ! प्रलय क्या नृत्य है ,
अहा ! प्रलय क्या नृत्य है ।

आज पुनः एक दुर्लभ अनुभव ,
धरती का ये वीभत्स उत्सव ।
सम्पूर्ण विनाश , अंतिम हलचल ,
चहुँदिश उत्पात , घोर कोलाहल ।
प्रत्येक गाँव और प्रत्येक शहर ,
तेरी अठखेलियाँ और तेरा कहर ।

तू सृष्टि का अंतिम कृत्य है ,
अहा ! प्रलय क्या नृत्य है ।

प्रलय तुम्हारा श्रेष्ठ स्वभाव ,
पूर्ण विनाश बिना भेदभाव ।
आँख मूँदकर सबको दण्ड ,
चूर-चूर किए सबके घमण्ड ।
पृथ्वी का अंतिम समय आया ,
पहाड़ टूट समुद्र में समाया ।

चहुँओर समानता का दृश्य है ,
अहा ! प्रलय क्या नृत्य है ।

शीत सागर हिमाच्छादित पर्वत ,
सक्रिय ज्वालामुखी लावा तप्त ।
एक - दूसरे में मिले जा रहे ,
जल - शर्करा भाँत घुले जा रहे ।
पूर्ण समर्पण , शून्य गर्व ,
द्वेषों से परे ,  अंतिम पर्व ।

कितना सुंदर अंतिम सत्य है ,
अहा ! प्रलय क्या नृत्य है ।

भूकम्प , बाढ़ से कई बार चेताया ,
पर मनुष्य का घमण्ड कम न पाया ।
बड़े रुतबे  और ऊँचे परिचय ,
तिजोरी में असीम धन संचय ।
ये सारे अलंकार धरे रह गए ,
विनाश वृष्टि में सबरे बह गए ।

अपना संहारक स्वयं मनुष्य है ,
अहा ! प्रलय क्या नृत्य है ।

कलियुग का ये अंतिम चरण ,
मनुष्य मन में पाप को शरण ।
धरती से लुप्त हो चुका पुण्य है ,
चरित्रवानों की संख्या शून्य है ।
भूले प्रेमभाव , भूले नाम हरि ,
लालच और स्वार्थ सर्वोपरि ।

तू अनुभव का अंतिम कथ्य है ,
अहा ! प्रलय क्या नृत्य है ।

आज सर्वनाश का दो प्रमाण ,
फिर करूँगा अद्भुत निर्माण ।
ऐ प्रलय ये मेरा है संकल्प ,
और श्रेष्ठ होगा नवीन कल्प ।
कण - कण से सृष्टि सजाऊँगा ,
और उत्कृष्ट मानव बनाऊँगा ।

प्रलय के बाद ही तो नव्य है ,
अहा ! प्रलय क्या नृत्य है ,
अहा ! प्रलय क्या नृत्य है ।


रचनाकार
प्रांजल सक्सेना 
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