गुरुवार, 30 जून 2016

मैं वृद्ध हूँ अकर्मण्य नहीं

मैं वृद्ध हूँ अकर्मण्य नहीं। आप जानना चाहते होंगे कौन-सा वृद्ध। मैं वही वृद्ध हूँ जिसे सम्मान की दृष्टि से देखना शायद तुम्हारी पीढ़ी को नहीं लुभाता। मैं तुम्हें कहीं भी मिल सकता हूँ। बिजली विभाग में खजांची की कुर्सी पर, किसी बैंक में, किसी रेलवे टिकटघर पर या फिर किसी पोस्ट ऑफिस में मैं तुम्हें मन्द गति से टाइप करता हुआ या और कोई कार्य करते हुए मिल जाऊँगा। मैं कार्यालय समय से पहुँचने का प्रयास करता हूँ क्योंकि मुझे पता है कि कई लोग मेरी राह देख रहे होते हैं। वो 10 बजे से भी पहले कार्यालय के बाहर मेरी प्रतीक्षा करते हुए मिल जाते हैं। आप युवा अक्सर मेरे काउंटर के उस पार खड़े रहते हैं। जो भी लोग 2 मिनट से अधिक एक ही जगह खड़े रहते हैं। वो मेरे बारे में अपनी राय देने लगते हैं। जैसे कितने धीमे काम कर रहा है या इससे तेज तो मैं काम कर सकता हूँ या फिर लाइन तो आगे बढ़ ही नहीं रही है।  
मैं जानता हूँ बच्चों कि तुम 4G  इंटरनेट वाली पीढ़ी के हो और तुम्हें बहुत जल्दी है हर बात की। पर हर काम बटन दबाकर नहीं होता। अपनी युवावस्था में हम भी बहुत तेज काम करते थे। ये वो जमाना था जब विभागों में कर्मचारी पर्याप्त हुआ करते थे और ग्राहक कम। आज भीड़ तेजी से बढ़ी है पर हम कर्मचारियों की संख्या नहीं। सेना जैसे विभाग में ही भारी रिक्तियाँ हैं तो गली-गली खुल चुके बैंकों या बिजली विभाग में रिक्तियाँ होना कौन-सी बड़ी बात है। हमने उस जमाने में उत्कृष्ट सेवाएँ दी हैं। जब कम्प्यूटर नहीं था बल्कि भारी-भरकम बहीखाते थे। परन्तु हमारी गति धीमी नहीं थी। मुझे आज के जमाने के ये कम्प्यूटर कुछ कम समझ में आते हैं। यद्यपि मैंने इसे सीखा है पर तालमेल नहीं बिठा पाता। मेरी कलम में भाषा का हर अक्षर समाहित था। यहाँ कुंजीपटल पर मुझे अक्षर ढूँढने पड़ते हैं। पर यकीन मानों मैं आज भी तुम्हें बहीखातों से गणना में मात दे सकता हूँ। तुम्हारे जमाने के कम्प्यूटरों को हैक करके पल भर में डाटा बदल जाता है जबकि मेरे जमाने के बहीखाते में घपला आसान नहीं था। एक बार लिखे हुए को कोई बदलने की कोशिश करता तो लिखे हुए पर धब्बा रह जाता और इसे पकड़ना आसान था। जिसे आज के हैकिंग और वायरस के जमाने में पकड़ना नितांत मुश्किल है। 
आज मैं वृद्ध हो चुका हूँ। मेरे कुछ साथी 45 के हैं कुछ 50 के ऊपर के तो कुछ 55 के ऊपर भी। हमने कईयों साल बस/ट्रेन के धक्के खाकर प्रतिदिन अपने कार्यालय तक की दूरी तय की है। हमारे कई साथियों ने तो ताँगे और बैलगाड़ी से जाकर भी दूरदराज सेवाएँ दी हैं। इन 20-25 सालों में मैंने बहुत धूल-धक्कड़ खाई है। इसलिए समय के साथ मेरे काम करने की गति मंद हो गई है। मन तो करता है कि आज ही इस नौकरी को छोड़कर घर बैठ जाऊँ। आख़िरकार इतने वर्षों लगातार काम करने से थक जो गया हूँ। पर ऐसा सम्भव नहीं है क्योंकि एक परिवार का उत्तरदायित्त्व है मुझ पर। मैं अपने परिवार से बहुत प्रेम करता हूँ और उन्हीं के बेहतर भविष्य के लिए आज भी इस नौकरी को कर रहा हूँ तुम्हारी लाख उलहनाएँ सुनकर भी। मैं अपनी फैमिली फोटो माथे पर चिपकाकर तो नहीं घूमता पर मेरे बच्चे भी तुम्हारी उमर के ही हैं। तब जाहिर सी बात है कि तुम्हारे पिता मेरी उमर के होंगे। वो कोई न कोई काम तो करते ही होंगे। कभी अपने पिता से पूछना कि क्या आज वो उतनी तेजी से काम कर पा रहे हैं जैसे वो अपनी जवानी में करते थे। तुम्हें उत्तर मिल जाएगा कि जिस लाइन में तुम खड़े हो वो धीमे क्यों चल रही हो।  
बच्चों मैं जानता हूँ कि इस प्रतियोगिता के युग में तुम बहुत व्यस्त हो। तुम किसी लाइन में आधे-एक घण्टे खड़े रहने को देश के पिछड़ेपन से जोड़ देते हो। हमारी कार्यप्रणाली पर प्रश्नचिन्ह लगा देते हो। पर यकीन मानो आज जिस सीट पर मैं बैठा हूँ उस सीट पर बैठकर तुम मुझसे पहले बूढ़े हो जाओगे। न.....इसे बद्दुआ बिल्कुल न समझना। मैं तो तुम्हारे उज्ज्वल भविष्य की ही कामना करता हूँ। पर हाँ वर्तमान परिस्थितियों को देखकर ऐसा भविष्य संभावित है। आज प्रदूषण और जीवनशैली का प्रभाव ही है कि तुम्हारी पीढ़ी में पीठ का दर्द तो आम ही है। तुममें से कई दमे के भी शिकार हैं। हर वर्ष महँगा मोबाइल और हर दिन वॉलपेपर बदल देने वालों नौजवानों एक ही नौकरी पर वर्षों टिके रहना तुम्हारे लिए सरल नहीं होगा। तुम निःसन्देह बहुत तेज गति से काम करोगे। परन्तु याद रखना आज की तकनीक एक दिन बदलेगी जरूर। उसमें इतनी नवीनता आ जाएगी कि तुम भी नई तकनीक से आसानी से सामन्जस्य नहीं बिठा पाओगे। मैं तुम्हें डरा नहीं रहा न ही निराश करना चाहता हूँ। बस इतना कहना चाहता हूँ कि लाइन में खड़े रहने पर मुझे कोसने से पहले एक बार विचार कर लेना कि आज से 20 साल बाद तुम अपने काम को कैसे कर रहे होगे। तुम्हारे पास आज अनुभव नहीं पर काम करने की अपार क्षमता है। पर एक समय ऐसा भी आएगा जब तुम्हारे पास अपार अनुभव होगा परन्तु काम करने की क्षमता शायद न हो।
ये मेरा लंच टाइम था जिसमें मैंने तुमसे कुछ कहा। दरअसल मेरे बेटे का एमबीए का फाइनल इयर है। उसकी नौकरी के लिए हर सोमवार को मैं उपवास रखता हूँ। हालाँकि वो यही कहता है कि पापा उपवास रखने से नौकरी थोड़े ही मिलेगी योग्यता से मिलेगी। उसका कहना अपनी जगह सही है। पर हम पुराने जमाने के लोग हैं हम इन बातों में विश्वास रखते हैं। इसलिए अपने बेटे की जगह मैं ही उपवास रखता हूँ। चूँकि आज लंच टाइम में मैंने बस एक सेब खाया। इसलिए लंच टाइम में आज मेरे पास समय था और मैं तुम्हारे लिए इतनी बातें लिख पाया। मैं जानता हूँ कि तुममें से कईयों को हमारा लंच टाइम में सीट छोड़ना भी बुरा लगता है पर बच्चों मैं सुबह नौ बजे घर छोड़ता हूँ। मेरे कई साथी आठ बजे घर छोड़ते हैं और कई तो 6 बजे ही। ऐसे में 10 बजे से लगातार काम करते हुए यदि हम 2 बजे आधे घण्टे के लिए लंच करने उठते हैं तो तुम इतने असहनशील क्यों बन जाते हो। यदि हम चैन से लंच कर लेंगे तो बाकि बचे घण्टों में अधिक ऊर्जा से काम कर पाएँगे। 
तुम एक बार मेरी जगह अपने को रखकर तो देखो। खैर अगर सोफे पर बैठे हो तो उठ जाओ और किसी दीवार से टिके हो तो सक्रिय हो जाओ। बाहर गुटखे की दुकान से वापिस आ जाओ और हाँ नीली शर्ट वाले गर्लफ्रेंड से बातें बाद में कर लेना। वापिस लाइन में आ जाओ। लंच टाइम ओवर हो गया। मैं वापिस अपनी सीट पर आ रहा हूँ। फिर से लाइन में लग जाओ।


लेखक
प्रांजल सक्सेना 
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