गुरुवार, 28 मई 2015

अंधस्वामीभक्त कौवा

एक बार एक जंगल था । उस जंगल में बहेलियों का बड़ा आतंक था । सारे पक्षी बड़े भयभीत रहते थे । पर उस जंगल में एक बहुत ही सुंदर आम का वृक्ष था । उस वृक्ष पर बड़े ही मीठे आम हुआ करते थे । एक बार 5 कौवों का एक झुण्ड उड़ता हुआ उस वृक्ष पर पहुँचा । उन सभी ने वृक्ष के आमों को चखकर देखा। उन्हें एहसास हुआ कि इससे मीठे आम उन्होंने न खाए होंगे । कौवों ने निर्णय लिया कि अब इसी पेड़ पर बसेरा बनाएँगे ।

तभी उनमें से एक कौवा बोला बसेरा तो बना लोगे पर सुना है कि इस जंगल में बहेलिए पक्षियों को चुन-चुनकर मारते हैं ।
दूसरे ने कहा   एकता में बड़ी शक्ति होती है । जब भी कोई बहेलिया आएगा तो हम सब एकत्र  होकर उस पर धावा बोल देंगे । फिर हममें बहेलियों का आतंक नहीं होगा बल्कि बहेलियों में हमारा आतंक होगा ।
सब इस बात से सहमत थे । फिर उन्होंने उस पेड़ पर रहना आरम्भ कर दिया । वे उस पेड़ पर मजे से रहते , मजे से आम खाते और बाकि समय आकाश में खूब कुलांचे उड़ते । तभी एक दिन उस जंगल में एक बहेलिया आया । बड़ी-बड़ी शैतान सी आँखें , हाथों में तीर-कमान लिए दबे पाँव वो पेड़ की और बढ़ने लगा । कौवों ने उसे आते देख लिया और सतर्क हो गए । बहेलिए ने तीर को कमान पर चढ़ाया ही था कि कौवों ने उस पर आक्रमण कर दिया । किसी ने उसकी टाँग में काटा तो किसी ने कान काट खाया । एक कौवे ने तो आँख ही फोड़ दी बहेलिए की । नतीजतन बहेलिया सिर पर पैर रखकर भागा । कौवों को ये देख बड़ी प्रसन्नता हुई । उन्होंने काँव-काँव करके आपस में खूब ख़ुशी बाँटी । फिर ये सिलसिला चल पड़ा जब भी कोई बहेलिया शिकार को आता पाँचों कौवे मिलकर उसे भगा देते । सबमें आपस में बड़ा प्रेम था । पर एक कौवा था उनमें जिसके पर थोड़े भूरे थे । वो अपने को औरों से अधिक सुंदर और बुद्धिमान मानता था । पूरी तरह से काले न होने का घमण्ड था उसे । हर बार जब भी बहेलिया को सब मिलकर भगाते तो वो सबसे कहता देखो मैंने कितना अच्छा वार किया न । अपनी ही प्रशंसा वो स्वयं करता था । बाकि कौवे सज्जनता में उससे कुछ न कहते थे । एक बार कौवे आम खाकर सो रहे थे । पर भूरे पर वाले कौवे को नींद न आ रही थी । उसने सोचा क्या करूँ , क्या करूँ । फिर अचानक से उस के मन में विचार आया कि क्यों न जंगल की सैर की जाए । सो वो उठा और चुपके से पेड़ से उड़ गया । उड़ते-उड़ते उसे एक मोटा-तगड़ा सा बाज मिला । बाज को देख कौवा विपरीत दिशा में उड़कर  भागने लगा ।
बाज ने कहा अरे रुको तो ।
कौवे ने कहा नहीं मैं नहीं रुकूँगा तुम मुझे खा जाओगे ।
बाज ने कहा नहीं मैं तुम्हें नहीं खाऊँगा ।
कौवे ने कहा नहीं तुम बहुत बड़े हो मेरा शिकार करके खा जाओगे ।
बाज ने कहा ऐ सुंदर कौवे मैं तुम्हें खाना नहीं चाहता । बल्कि तुम्हारा फायदा कराना चाहता हूँ ।  
अब कौवे ने पर फड़फड़ाना रोक दिया । वह मुड़ा और दूर से ही बाज से बात करने लगा ।
कौवे ने कहा बाज तुमने मेरी सुंदरता को समझा इसके लिए धन्यवाद । पर तुम मेरा क्या फायदा कराओगे ।
अब बाज कुटिल हँसी हँसा । वह समझ गया कि कौवे पर फेंका गया पाँसा काम कर गया ।
बाज ने कहा मित्र मैंने सुना है कि तुम पाँच कौवों की टोली है और तुम किसी भी बहेलिए को भगा डालते हो ।
कौवे ने कहा हाँ , हम पाँचों मिलकर किसी भी बहेलिए पर आक्रमण बोल उसे भगा देते हैं । बाज ने कहा कि हाँ मैं भी जवानी में बहेलियों को अकेला ही भगा देता था पर अब न तो नाखूनों में वो ताकत रह गई न ही बदन में वो फुर्ती जिससे कि बहेलियों को मार भगाऊँ ।
कौवे ने कहा अकेले तो ये काम करना बहुत मुश्किल होता होगा ।
बाज ने कहा अरे कुछ मुश्किल नहीं होता । पैंतरे होते हैं आक्रमण के । मैं वही तो तुम्हारे फायदे की बात बता रहा था । तुम पाँचों साथ मिलकर बहेलिए को मारते हो । जबकि ये काम तुम अकेले ही कर सकते हो ।
कौवे ने कहा अकेले कैसे कर सकता हूँ मैं ? अरे हम पाँचों का एक दल है , पाँचों मिलकर काम करते हैं । तभी बहेलिए को भगा पाते हैं न ।
बाज बोला पर अगर तुम न हो तो वो चारों बेकार हैं । मैंने देखा है तुम उनसे बहुत तेज हो । अगर तुम न हो न तो वो  चारों मिलकर भी बहेलिए को नहीं मार सकते । मैंने देखा है तुम्हें बहेलियों को मारते हुए सबसे अधिक मेहनत तुम ही करते हो । पर वो चारों तुम्हें कोई श्रेय ही नहीं देते ।
ये सुनकर कौवे का सीना घमण्ड से फूल गया । उसने कहा हाँ ये तो है मेरा कोई जबाव ही नहीं । पर वो लोग मेरी उतनी कद्र नहीं करते ।
बाज बोला कद्र भी करेंगे और जी हुजूरी भी करेंगे । तुम मुझे अपना गुरु बना लो । मैं तुम्हें बहेलिए को अकेले ही मारना सिखाऊँगा ।
कौवे ने कहा पर तुम मेरे लिए ऐसा क्यों करोगे ? इसमें तुम्हारा क्या फायदा ।
बाज बोला तुमसे मुझे अपनापन लगता है । तुम्हारे भूरे पंख हैं और मैं पूरा भूरा । भला एक भूरा दूसरे भूरे को कैसे नुकसान पहुँचा सकता है । अगर तुम फिर भी मेरे लिए कुछ करना ही चाहो तो मुझे उस पेड़ के आम खाने को दे देना ।
कौवे ने कहा ठीक है चलो मेरे साथ ।  
दोनों उड़कर पेड़ तक पहुँचे । तब तक बाकी कौवे जाग चुके थे । पाँचवें कौवे के साथ बाज को आता देख सभी सतर्क हो गए ।
एक कौवे ने कहा तुम बाज के साथ क्या कर रहे हो ?
भूरे कौवे ने कहा ये मेरे गुरु हैं । अब से ये हमारे साथ रहेंगे ।
चारों कौवों ने एकजुट होकर कहा बिल्कुल नहीं ये इस पेड़ पर कतई न रहेगा । ये हमारा है अगर तुम इसे यहाँ पर लाए तो हम मिलकर इस बाज को मार देंगे ।
कौवे ने कहा नहीं मैं ऐसा नहीं होने दूँगा । मैं.....
इससे पहले कौवा कुछ कहता बाज ने कहा रुक जाओ मेरे लिए अपने साथियों से मत झगड़ो । मैं सामने वाले पेड़ पर रह लूँगा ।
कौवे ने कहा पर गुरूजी ।
बाज ने कहा गुरु कहा है तो बात भी मानो । सामने इससे भी बड़ा आम का पेड़ है । मैं उस पर रह लूँगा । बस गुरुदक्षिणा के बदले तुम कभी-कभी इस पेड़ के मीठे आम खिला दिया करना ।
कहकर बाज सामने वाले पेड़ पर रहने लगा । पाँचवा कौवा रहता तो अपने साथियों के साथ वाले पेड़ पर था । पर अक्सर बाज के पेड़ पर जाता था और बाज उसे उल्टे-सीधे दाँव पेंच सिखाकर उसकी झूठी तारीफ़ कर मीठे आम मंगवाकर खाता । एक दिन अचानक दो बहेलिए जंगल में आए । उस समय भूरे पर वाला कौवा बाज के ही पास था । चारों कौवे कुछ डर गए क्योंकि अबकि बहेलिए दो थे और दो बहेलियों पर आक्रमण करने का कोई अनुभव उनके पास नहीं था । सामने से पाँचवें कौवे को आवाज देकर बुला पा पाना सम्भव न था । वर्ना बहेलिए सतर्क हो जाते । इसलिए उन चारों ने सोचा कि दो-दो कौवे एक-एक बहेलिए पर आक्रमण करेंगे ।
उधर बाज से भूरे कौवे ने कहा गुरूजी मुझे जाना होगा । इन बहेलियों को मारने में साथी कौवों की सहायता करनी है ।
बाज ने कहा रुको सर्वश्रेष्ठ वीर कौवे । अभी मत जाओ तनिक इन चारों को पता तो चलने दो कि तुम कितने महत्त्वपूर्ण हो । लड़ने दो इन्हें पहले ।
कौवे ने कहा पर अबकि बार दो बहेलिए हैं ।
बाज ने कहा वीर कौवे अकेले ही पर्याप्त होते हैं । दो बहेलियों को मारने के लिए । तुम अकेले ही दोनों को भगा लोगे पर पहले देख तो लो ये कौवे क्या कर पाते हैं तुम्हारे बिना ।
कौवा बाज की बात सुनकर वहीं बैठ गया । उधर दो-दो कौवों ने एक-एक बहेलिए पर हमला बोला । किसी ने सिर में चोंच मारी तो किसी ने पैर पर । पर वो अपेक्षित आक्रमण नहीं कर पा रहे थे । काफी देर तक संघर्ष चलता रहा । अंततः बहेलिए भागने को हुए ।
तभी बाज ने कहा देखा तुमने तुम्हारे बिना सब बेकार हैं । जाओ अब जाकर तुम दोनों बहेलियों के कान काट दो । ये कौवे आँख फोड़  सकते हैं और पैर में चोंच ही मार सकते हैं । पर तुम जैसे वीर को कान काटने में महारत हासिल है । तुम दोनों के कान में जोर से काट दो तभी वो भाग जाएँगे ।
कौवा तेजी से उड़ता हुआ गया और दोनों बहेलियों के कानों पर आक्रमण कर दिया । पहले से ही लहूलुहान बहेलिए अब दर्द के मारे और झटपटाने लगे फिर तेजी से भाग गए । ये कहते हुए कि मीठे आम वाले पेड़ के कौवों का शिकार कोई बहेलिया नहीं कर सकता ।
चारों कौवे बोले देखा जीत ही गए । अब कोई बहेलिया इधर का रुख न करेगा ।
पाँचवा कौवा बोला हाँ मैंने आक्रमण ही ऐसे किया कि कोई ठहर ही न पाया ।
चारों कौवों ने कहा तुमने क्या किया आज ? हम लोगों ने ही तात्कालिक रणनीति बनाकर आक्रमण किया । तुम तो आराम से बाज को आम खिला रहे थे ।
भूरे कौवे ने कहा पर तुम लोग उन्हें भगा कहाँ पाए मेरे आक्रमण के बाद ही वो भागे । चारों कौवे बोले तुम्हारे आक्रमण से कुछ न हुआ । हम ही लोगों ने उसे इतना थका दिया था कि वो सिर पर पैर रखकर भागे तुम तो अंत में आए । न भी आते तो भी थोड़ी देर में वो भाग ही जाते ।
इतने में बाज वहाँ आया और उसने कहा देखा वीर कौवे मैंने कहा था न कि ये लोग तुम्हारी योग्यता कभी न समझेंगे । मैं ही तुम्हारा सच्चा हितैषी हूँ ।
चारों कौवे बोले ऐ बाज तुमसे अधिक बरगलाने वाला कोई नहीं हो सकता । तुम हमारे मित्र को कहीं का न छोड़ोगे ।
बाज के कुछ कहने से पहले ही भूरे कौवे ने कहा काले कौवों खबरदार जो मेरे गुरु को कुछ कहा तो । वर्ना तुम्हारे भी कान काट दूँगा ।
चारों कौवे बोले तुम कान काट सकते हो तो हम भी बहुत कुछ कर सकते हैं । पर तुम कभी हमारे साथी थे , ये सोचकर तुम्हें छोड़ रहे हैं ।
फिर भूरा कौवा , बाज के साथ दूसरे पेड़ पर चला गया और बाकि कौवे अपने पेड़ पर । बाज द्वारा भूरे कौवे को दिग्भ्रमित करके मित्र कौवों से अलग रखने का काम जारी था ।
एक दिन बाज ने कहा बहुत दिन हो गए मीठे आम खाते काश माँस खाने को मिले अब ।
भूरे कौवे ने कहा गुरूजी आप चिंता मत करो अब कोई बहेलिया आया तो मैं उसको खूब जोर से काटूंगा और माँस नोंचकर आपको खिलाऊँगा ।
बाज ने कहा मुझे तुम जैसे वीर से यही आशा थी ।
फिर दोनों बहेलिए की प्रतीक्षा करने लगे ।
एक दिन एक बहेलिया आया चारों कौवे वाले पेड़ के पास पहुँचकर बोला इस पेड़ के कौवों का तो शिकार नहीं । ये बहुत ही खतरनाक हैं । कहीं और देखता हूँ ।
तभी वो बहेलिया मुड़ा । चारों कौवे आपस में ख़ुशी मनाने लगे कि चलो अब हमसे कोई टकराने की सोचता भी न । उन्हें ख़ुशी मनाते देख बाज ने कहा   देखो चारों कौवे कितने खुश हैं । उन्होंने अवश्य ही उस बहेलिए को इस पेड़ पर बैठे मुझे और तुम्हें मारने को कहा होगा ।
भूरे कौवे ने कहा ऐसा कहा होगा ? कितने बुरे निकले मेरे पुराने साथी । पर आज इन्हें पता चलेगा कि मैं चीज क्या हूँ । आज मैं अकेला ही इस बहेलिए को भगा दूँगा साथ ही आपके लिए ताजा माँस भी लाऊँगा ।
बाज ने कहा विजय भवः ।
बहेलिया बाज वाले पेड़ के निकट जाने लगा तभी कौवा उड़ते हुए गया और जाकर बहेलिए के कान पर हमला कर दिया । बहेलिए ने भी तीर-कमान जमीन पर फेंककर तुरन्त कौवे को पकड़ लिया ।
फिर बहेलिया बोला आज पकड़ ही लिया । तू ही होगा वो कौवा जिसने पहले भी मेरे कान पर हमला बोला होगा । पर आज मैं तुझसे बदला लेकर रहूँगा । तेरी गर्दन मेरे हाथों में है आज तो तुझे मसलकर ही रहूँगा ।
भूरे कौवे को मुसीबत में देखकर चारों कौवे उड़ते हुए आक्रमण करने आए । उन्होंने मिलकर बहेलिए पर आक्रमण कर दिया । परिणामस्वरूप बहेलिया भूरे कौवे को वहीं छोड़कर भाग गया । पर भूरा कौवा बहुत अधिक घायल हो चुका था । मरणासन्न स्थिति में पहुँच गया था ।
चारों कौवे बोले देखा हमसे दूर होने का परिणाम । इस बाज ने तुम्हें मरवा ही दिया न । हमने तुम्हें कितना समझाया था कि एक ही तरह से मत लड़ा करो । नए पैंतरे आजमाओ पर तुम न माने और बहेलिया तुम्हारे पैंतरों का आदि हो गया तो उसने तुम्हें आराम से दबोचकर मार दिया ।
बाज बोला देखा तुम्हारे पुराने मित्र कैसे हैं । अब जब तुम आधे मर ही गए थे तो तुम्हें पूरा ही मर जाने देते । ताकि तुम्हें ज्यादा तकलीफ तो न होती पर उस बहेलिए को इन्होंने इसलिए भगाया ताकि तुम तड़पकर मरो ।
भूरा कौवा बोला आप सही कह रहे हैं गुरुजी । मुझे असहनीय पीड़ा हो रही है । ये मेरे मित्र नहीं शत्रु हैं ।
अंत समय में भी बाज की चाटुकारिता करते देखकर चारों कौवे निराश होकर वापिस चले गए ।
बाज ने कहा आज तुम्हें इस बात की भी पीड़ा हो रही होगी कि तुम मेरे लिए माँस का इंतजाम नहीं कर पाए ।
भूरे कौवे ने कहा हाँ गुरुदेव आपकी इच्छा पूरी न कर पाने का बड़ा दुःख है मुझे ।
बाज ने कहा पर मैंने तुम्हारी दोनों पीड़ा हर लेता हूँ । तुम्हें मारकर खा जाता हूँ । इससे एक ओर तुम्हें इस असहनीय शारीरिक पीड़ा से मुक्ति मिलेगी दूसरे मुझे माँस मिल जाएगा तो तुम्हारी मानसिक पीड़ा भी समाप्त होगी ।
भूरे कौवे ने कहा अवश्य गुरुदेव आपसे महान कोई नहीं । शीघ्र ही मेरी पीड़ा हरिए ।
बाज ने एक झपट्टा मारा और कौवे की गर्दन अलग करके उसे खा गया । बाद में ऊपर की ओर देखकर बाज बोला हे ऊपरवाले बस एक कृपा करना । ये कौवा था तो स्वादिष्ट । बस इसे खाया है तो इसके जैसी अंधस्वामीभक्ति मेरे अंदर न समा जाए ।
बाज ने मीठे आम वाले पेड़ के ऊपर से उड़ान भरी और कहता हुआ निकल गया वैसे तुम चारों में से एक  की पूँछ औरों से सुंदर है ।
चारों कौवे ने एक दूसरे को विस्मय से देखा फिर बोले जिन्दा रहना है तो  आईने से बचना होगा ।


लेखक
प्रांजल सक्सेना 
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