रविवार, 24 मई 2015

क्यों छुट्टियों में विद्यालय बुला रहे हो

क्यों छुट्टियों में विद्यालय बुला रहे हो ,
क्यों छुट्टियों में विद्यालय बुला रहे हो ।
एक साल पहले जहाँ पड़ा था सूखा ,
अब दिख रहा तुम्हें वहाँ का भूखा ।
विद्यालय खोलने का आया आदेश ,
न खोलने पर कार्यवाही के निर्देश ।
कहती सरकार मिड-डे-मील बनवाओ ,
100 ग्राम से इनका कुपोषण मिटाओ ।
काहे तुगलकी फरमान निकाले जा रहे हो ,
क्यों छुट्टियों में विद्यालय बुला रहे हो ।


2010 में भी ऐसा आदेश आया था ,
तेज लू और गर्मी ने बड़ा सताया था ।
अब फिर वही इतिहास दोहराते हो ,
क्यों तुम मास्टरों की वाट लगाते हो ।
मास्टर क्या बच्चों को भी सताते हो ,
छुट्टियों में भी विद्यालय बुलाते हो ।
क्यों हमारी बद्दुआएँ लेना चाह रहे हो ,
क्यों छुट्टियों में विद्यालय बुला रहे हो ।


हमसे कहते बनाओ भयमुक्त वातावरण ,
स्वयं ही कर रहे हो मानसिक शोषण ।
छुट्टियों में तो इन्हें स्कूल न बुलवाओ ,
हमारे खड़ूस चेहरे से निजात दिलाओ ।
इन्हें भी छुट्टियों का मजा उठाने दो ,
नानी , मामा , बुआ के घर को जाने दो ।
क्यों बच्चों का बचपना छीने जा रहे हो ,
क्यों छुट्टियों में विद्यालय बुला रहे हो ।


हम मास्टर हैं कि बन्धुआ मजदूर ,
छुट्टी में आने को करते मजबूर ।
हमारा भी एक घर है , एक द्वार है ,
छोटा मगर प्यारा सा , परिवार है ।
क्यों इस परिवार से दूर कराते हो ,
छुट्टियों पर क्यूँ ग्रहण लगाते हो ।
क्यों छुट्टियों पर लातें मारे जा रहे हो ,
क्यों छुट्टियों में विद्यालय बुला रहे हो ।


हममें से कई परिवार से दूरी सहते हैं ,
500 , 800 किमी घर से दूर रहते हैं ।
वर्ष भर घर जाने के लिए तरसते हैं ,
इन्हीं छुट्टियों की प्रतीक्षा करते हैं ।
न उपार्जित दोगे न 13 माह का वेतन ,
तो क्यों करा रहे हो इस गर्मी में लेथन ।
हमारी खुशियों को क्यों लीले जा रहे हो ,
क्यों छुट्टियों में विद्यालय बुला रहे हो ।


कहते हो एक समय भोजन बँटेगा ,
क्या इससे सूखे का सन्ताप हटेगा ।
8-10 के परिवार में एक बच्चा खाएगा ,
तो क्या भुखमरी का नामोंनिशां मिट जाएगा ।
एक समय के 100 ग्राम से क्या पेट भरता है ,
मुझे तो तुम्हारी नीयत में खोट लगता है ।
व्यर्थ का झूठा दिखावा किए जा रहे हो ,
क्यों छुट्टियों में विद्यालय बुला रहे हो ।


रचनाकार
प्रांजल सक्सेना 
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